गुरुवार, 23 जून 2022

झूठ का सच


 

               

       माँ कसम चारों तरफ अमन चैन है . लगता है प्रभु आँखें बंद किये बांसुरी बजा रहे हैं और प्राणी मंत्रमुग्ध फुर्सत में बैठे हैं . आम आदमी रोने की बात पर भी हँस रहा है . लोग उछल उछल कर फटाफट नए पुराने टेक्स दे रहे हैं . संपत्तियों के ऊँचे दाम मिल रहे हैं. बैंकें पकड़ पकड़ कर बिनदेखे भरभर-के कर्ज दे रही हैं . सायकिल की हैसियत वाले कारों से नीचे पाँव नहीं रख रहे हैं. पेट्रोल पानी की तरह छलक रहा है . पांच छः फुट रस्सी के सहारे लोग उस स्वर्ग में पहुँचे  जा रहे हैं जहाँ रावण सीढी बना कर पहुँचने की मंशा रखता था . मुआवजे की राशि करोड़ से ऊपर पहुँच कर मोहक होने लगी है . लाभार्थियों को बुजुर्गों में झुर्रियों के साथ सम्भावना की लकीरें भी दिखने लगी हैं . गैस सिलेंडर को नए जंवाई की तरह हर बार पहले से ज्यादा मुँह दिखाई मिल रही है . जो दर्द समझे गए अब दवा बनते जा रहे हैं . ... और इधर कुछ नामुराद, मनहूस, शहरी किस्म के जाहिल दीदे बंद किये बैठे  हैं !   ऐसे ही एक अभागे का इलाज होना है . “इनकी आँखें समस्या हो गयी हैं बैधराज जी . जाँच कर बताइए क्या करना है ? इलाज हम करेंगे .” उन्होंने एक अदद मुंडी सामने करते हुए बैध जी से कहा .

              पूछने पर मुंडी ने बताया - “आँखों की समस्या है वैधराज जी . सब साफ साफ दिखने लगा है . जो चीजें, जो बातें लोग छुपाना चाहते हैं वो भी दिखने लगती हैं . झूठ के पीछे का सच झूठ से पहले सामने आ जाता है . कोई साधू का स्वांग रचता है तो शैतान नजर आता है . नौकर चाकर सेवकों को देख कर डर लगता है . पुलिस जनसेवक कहते हुए मुस्कराती है तो खतरनाक लगती है . कुछ कीजिये वैधराज जी कि झूठ सच की तरह दिखे और सच तो दिखना ही बंद हो जाये .” उसने हाथ जोड़ कर वैधराज दयाराम ‘काव्यप्रेमी’ को अपना रोग बताया .

             इनदिनों माहौल बढ़िया है . लोगों में वैधराज जी की साख है कि सभी तरह की पैथी से इलाज करवा चुके निराश रोगी गैरंटी के साथ ठीक किये जाते हैं .  नस नस पर उनकी पकड़ है .  एक बार नब्ज पर हाथ रखते हैं तो अन्दर बैठा रोग काँप जाता है . आधा रोग तो वे अपनी बातों से ही ठीक कर देते हैं, बाकि आधे के लिए पुड़िया देते हैं . कुछ देर आँख बंद कर विचार करने के बाद बोले – “संसार में सच दुःख का कारण है . इसलिए हर आदमी को सच से बचना चाहिए . झूठ में जो आनंद है वो दरअसल स्वर्ग का आनंद है . शिक्षा, समझ और ज्ञान स्वर्ग का आनंद लेने के लिए व्यक्ति को सक्षम बनाते हैं . कुछ लोग शिक्षा का दुरूपयोग करते हैं और सच देखने की कोशिश करते हैं . यह अच्छी बात नहीं है . खूब टीवी देखा करो, अख़बार भी पढ़ा करो, साधू संतों के प्रवचन सुना करो, योग भी करा करो . धीरे धीरे सच दिखना बंद हो जायेगा . सच बहुत ढीठ किस्म का रोग है . किसी को इसकी आदत पड़ जाये तो उसे ठीक करना बहुत कठिन होता है . समाज में नशामुक्ति केन्द्रों से अधिक सत्यमुक्ति केन्द्रों की आवश्यकता है किन्तु समाजसेवी संस्थाओं का ध्यान इस और नहीं है . सरकारें अपनी तरफ से पूरे प्रयास करती हैं लेकिन बहुत से काम होते हैं जो बिना जनसहयोग के अपेक्षित परिणाम नहीं देते हैं . खैर ... विपक्षी दलों के बहकावे में तो नहीं रहते हो ?” बैध जी ने आँखों में आँखे डालते हुए पूछा .

           “हाँ, उनकी बातें सुनता तो हूँ . वे ऑंखें खोलने और खुली रखने को कहते हैं .”

           “तुम्हारे रोग का यह भी एक कारण है . जनता की सच्ची सेवा तो यह है कि उस तक सुख पहुँचाया जाये. बल्कि बढ़ा चढ़ा कर पहुँचाया जाये . विद्वान् लोग कहा गए हैं कि वो झूठ सच से बड़ा होता है जो व्यक्ति को दुःख से बचाता है . इस समय सारा वातावरण जनता को दुःख से बचाने की जी तोड़ कोशिश कर रहा है . सबको इसका लाभ लेना चाहिए ... अब कैसा लग रहा ? ...सुखद ? पहले से ठीक है ना ?” वैधराज जी ने पूछा .

            “जी हाँ, पहले से अच्छा लग रहा है . एक उम्मीद सी जाग रही है .”

             “ये कुछ पुड़िया हैं, इन्हें सुबह दूध से, दोपहर को पानी से, और शाम को शहद से लेना . और यह ध्यान रखो कि ईश्वर ने ऑंखें बंद रखने के लिए भी दी हैं . आँखें बंद रखने का अभ्यास नियमित करो . बंद आँखों से ईश्वर के दर्शन होते हैं . ईश्वर से बड़ा कोई सच है ? नहीं ना ? तो जहाँ तक संभव हो आँखें बंद रखो, भक्त बनो. ”

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शुक्रवार, 17 जून 2022

ड्राइंग रूम में कबीर


 



         “आइये बैठिये, ... और .. हाँ, इनसे मिलिए, ग्रेट पोएट कबीर, आवर फॅमिली मेंबर नाव” . सोफे पर बैठने का इशारा करते हुए उन्होंने किताब के बारे में बताया .

          गौर से देखा, वाकई कबीर ही हैं . सोफे पर खुले हुए, कुछ बिखरे हुए से एसी में पड़े हैं . वे समझ गए, सफाई देते हुए बोले, - “बच्चे बड़े शैतान हैं, खेल रहे थे . इनके लिए कबीर की पिक्चर बुक भी है लेकिन फाड़ फ़ूड दी होगी .”

               “हुसैन नहीं दिख रहे !?” मैंने पूछा . पिछली बार आया था तो उस दीवार पर टंगे थे . तब भी उन्होंने कहा था कि – ‘ दिस इस हुसैन ... द ग्रेट आर्टिस्ट,  अवर फॅमिली मेंबर नाव. यू नो हमारे पास काफी सारे विडिओ और फोटोग्राफ्स भी हैं इनके.’

             इस वक्त अपना कहा शायद वे भूल गए थे, बोले – “हुसैन !! वो क्या है अभी जरा माहौल ठीक नहीं है . ... यू नो ... सोसाइटी है ... सब देखना समझना पड़ता है .  स्टोर रूम में हैं  ... अभी तो कबीर हैं ना, ... नो ऑब्जेक्शन के साथ .”

             “लेकिन कबीर में तो बहुत डांट फटकार और कान खिंचाई है ! ... आप बड़े बिजनेसमेन ! आपको कैसे सूट कर गए ?”

                “देखिये दो बातें हैं, एक तो आजकल पढ़ता ही कौन है ! ऐसे में किसको पता कि कबीर ने फटकारा भी है .  ब्राण्ड वेल्यू होती है हर चीज की . यू नो ब्राण्ड का जमाना है . सोसायटी अब चड्डी बनियान भी ब्रांडेड पसंद करती है . दूसरी बात खुद कबीर ने भी कहा है कि ‘निंदक नियरे राखिये, आंगन कुटी छबाय’ तो हमने ‘ड्राइंगरूम शोकेस में सजाय’ कर लिया है” .

               “फिर भी आपको लगता तो होगा कि आपका कामकाज और कबीर में टकराहट हो रही है . वे संत हैं, कहते हैं  ‘कबीर इस संसार का झूठा माया मोह‘ . कैसे बचाते हैं इस टकराहट से अपने आप को ?”

              “टकराहट कैसी !! हमने तो अपने दफ्तर में लिखवा रखा है, ‘काल करे सो आज कर, आज करे सो अब; पल में परलय होयेगा, बहुरि करेगा कब’ . इससे मेसेज जाता है कि कबीर ने फेक्ट्री वर्कर्स को फटाफट काम करने के लिए कहा है . इसके आलावा एक और बढ़िया बिजनेस टिप है उनकी – ‘ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय; औरन को सीतल करे, आपहु सीतल होए’ . इस फार्मूले से क्लाइंट को डील करो तो बिजनेस बढ़ता है . आदमी कोई बुरा नहीं होता  है उसको वापरना आना चाहिए .”

              “फिर भी धंधे में देना-लेना, ऊंच-नीच, अच्छा-बुरा सब करना पड़ता है . कबीर इनके पक्ष में नहीं हैं . इसलिए कहीं न कहीं चुभते होंगे .”

             “जी नहीं, ... उन्होंने कहा है –‘दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय ; जो सुख में सुमिरन करे तो दुःख काहे होय ‘. इसका मतलब है कि फंसने पर तो सब मुट्ठी गरम करते हैं बिना फंसे जो मुट्ठी नरम करता रहे तो मुट्ठी गरम करने की नौबत ही नहीं आये . दरअसल आप जैसे कच्चे पक्के लोगों ने कबीर को किताबों से बाहर निकलने ही नहीं दिया . उन्हें तो बाज़ार में होना चाहिए था . सुना होगा, ‘कबीर खड़ा बाज़ार में, सबकी मांगे खैर; न कहू से दोस्ती न कहू से बैर’. व्यापारी का न कोई दोस्त होता है न बैरी, बस  वो होता है और ग्राहक होता . –‘ जब गुन को गाहक मिले, तब गुन लाख बिकाई ; जब गुन को गाहक नहीं, तब कौड़ी बदले जाई ‘. यानी ग्राहक पटाना सबसे बड़ी बात है .” वे बोले .

               “बाज़ार में कुछ वसूली वाले भी तो होते हैं, उनका क्या ? भाइयों को हप्ता देना पड़ता होगा, पुलिस को महीना, किसी को सालाना ! पार्टियों को भी चंदा-वंदा देना पड़ता होगा ?”

                 “हाँ देते है, ... ‘चलती चाकी देख के, दिया कबीरा रोय ; दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोय ‘. यहाँ  क़ानूनी और गैर क़ानूनी दोनों तरह के पाट हैं. सब देते हैं, सबको देते हैं, कोई साबुत नहीं बचता है . ”

               “लगता है कबीर को आपने अपना वकील बना लिया है !”

               “ऐसा नहीं है,  कबीर में सब हमारे काम का तो है नहीं . उन्होंने ही कहा है ‘सार सार को गहि लेय, थोथा देय उड़ाय’ . तो इसमें बुरे क्या है ?”

                “ईश्वर से डर तो लगता ही होगा ?” उठते हुए हमने सवाल किया .

                 “ईश्वर से किसीका आमना सामना कहाँ होता है . सब भ्रम है . वे कह गए हैं – ‘जब मैं था हरि नहीं, अब हरि है मैं नहीं’ . आप अपना बनाओगे तभी कबीर अपने लगेंगे . ‘सैन बैन समझे नहीं, तासों कछु न कैन’, यानी आदमी को इशारा समझना चाहिए, जो नहीं समझे उससे कुछ नहीं कहना.”

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मंगलवार, 14 जून 2022

शांतिपूर्वक तमतमाता देश


 

बयान करोना की तरह फैला . आठ दस दिन में एक के बाद एक कई मुल्क चपेट में आते  गए . संक्रमितों में आरंभिक लक्षण तेजी से उभरे . पता चला कि दिमाग में गरमी और बुखार के चलते हर चपेटित तप रहा है . आँखों के आगे काले के साथ लाल भी छाने लगता है . जिनके पास दिमाग है उनकी नसें चटकने लगी हैं . मन चीखने चिल्लाने का होता है लेकिन मौका नहीं मिल रहा है . रूस और यूक्रेन का युद्ध क्या हुआ तमाम मुल्क सदमें और शांति की लपेट में आ कर दुबक गए लगते हैं . लग रहा है सबने शांति को छाती से बांध कर अपना हिस्सा बना लिया  है . बावजूद इसके लोग तमतमा रहे हैं लेकिन शांतिपूर्वक .

इधर सोशल मिडिया में भारी तमतमाहट मची हुई है . डेढ़-दो जीबी का कोटा है तो जिद भी है रात होने से पहले खर्च करने की . लगता है फोन में लगे रहना ही सच्ची देश सेवा है . दिक्कत ये हैं कि लोगों की सोच नहीं बदल रही है . सोच बदले तो देश आगे बढे . सोचना भी सही दिशा में होना चाहिए . वरना रिस्क ये है कि सोचें इधर वाले और आगे बढ़ जाएँ उधर वाले . दीवारों के कान होते ही थे अब पत्थरों के पांव भी होने लगे हैं . जोखिम हर काम में होता है. देशभक्त होने के नाते मुझे भी लगता है कि मेरे आलावा सब सो रहे हैं . और अगर लोग सोते रहे तो गजब हो जाने वाला है . इस समय सोये हुओ को जगाना एक तरह की क्रांति है . काम असान भी बहुत हो गया है, बस एक बटन दबाया और फट से तमाम लोगों को जगा दिया . बैटरी चार्ज हो और डेढ़ जीबी डाटा हो तो संडास में बैठे बैठे भी जनजागरण किया जा सकता है . देशभक्ति के इससे अच्छे दिन और क्या हो सकते हैं !  

बलदेव बादलवंशी जी कई ग्रुप्स में जुड़े हुए हैं. उनका सारा दिन बरसते हुए बीतता है . शुरू शुरू में कुछ समय शांत भी रहते थे . लेकिन बाद में जैसे जैसे स्कोप दिखा फुल टाइम तमतमाने लगे . सुबह बिस्तर बाद में छोड़ते हैं, तमतमाते पहले हैं . डाक्टर ने कहा इतना तमतमाओगे तो किसी दिन भी लम्बे निकल जाओगे . कोविड काल के बाद से शोकसभा का चलन भी कम हो गया है . महंगाई इतनी ज्यादा है कि अख़बार में फोटो वाला शोक विज्ञापन भी नहीं देते हैं लोग . यह समय लम्बे निकल लेने के लिए ठीक नहीं है . इसलिए सोच समझ के शांति से तमतमाया करो . कठिन काम नहीं है . किसी कवि ने कहा है ‘करत करत अभ्यास के जड़ मति होत सुजन;  रसरी आवत जात के सिल पर पड़त निसान ‘ . कोशिश करोगे तो सिख जाओगे, यह भी अनुलोम विलोम जैसा ही है .

बलदेव बदलवंशी जी टीवी, बहस, समाचार और सोशल मिडिया सब पर भिड़े हुए हैं और बीपी की गोली खा खा कर तमतमा रहे हैं . शांतिपूर्वक तमतमाने की कला को साध लिया है उन्होंने . किसीने दंगे का विडिओ भेजा, देखा लोग नारे लगा रहे हैं, पत्थर फैंक रहे हैं, चट से दो घूंट ठंडा पानी पिया  और पट से तमतमा लिए .  किसी ने भड़काऊ भाषण दिया, नेताओं को गरियाया, कोसा, चुनौतियाँ दी, देखा और मुँह से दो चार गाली निकल कर शांतिपूर्वक तमतमा लिए . सारा देश शांतिपूर्वक तमतमा रहा है, उन्होंने मुझे भी तमतमाने के लिए कहा है .उनके कहे से मुख्यधारा में आने के लिए मैं भी अब ज्यादा पानी पीने लगा हूँ .

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गुरुवार, 9 जून 2022

आग उगलखोर



                   वे दोनों एक दूसरे के खिलाफ आग उगलते रहे हैं . कुछ खास अवसरों पर जहर भी उगलने से उन्होंने परहेज नहीं किया है . जनता के सामने जब वे दूसरे पर कुपित हो रहे होते हैं तो लोगों को लगता है अंगार पंडवानी गायी जा रही है . लोकतंत्र का मजा ये हैं कि जब भी चुनाव टाईप खास माहौल बनता है आग और जहर उगलने वाले एक्सपर्ट टिड्डियों की तरह प्रकट हो जाते हैं . इंतजार होता है कि कब आचार संहिता लगे और कब एक दूसरे के चरित्र की चिन्दियाँ करने में लग पड़ें . कोई चोर कहे, कोई लुटेरा कहे, धोखेबाज़ या झूठा कहे, कोई दिक्कत नहीं है . नेतागिरी की तो डरना क्या ! मतदान तक नेताओं का कहना कहना नहीं है, और सुनना भी सुनना नहीं है . समाज सेवा के लिए कोई सर पर टोपी नहीं रखता है . सब जानते हैं कि राजनीति और भ्रष्टाचार एक ही चीज है . फर्क टेकनीकल है, जब तक पकड़े नहीं जाओ तब तक राजनीति है, जिस दिन पकड़े गए तो भ्रष्टाचार . मिडिया भी मनी और मजे के लिए दोनों के बयान बारी बारी से चलाता है और बेगराउंड में दो सांडों को लड़ते हुए भी दिखाता है . इससे जनता में सन्देश यह जाता है कि राजनीति को गंभीरता से लेने की जरुरत नहीं है, सांड कोई सा भी हो अपनी वाली पे आ जायेगा तो खेत आपका ही उजड़ना है . बावजूद इसके लोगों को लगता है कि अगर ये दोनों आग उगलखोर किसी दिन आमने सामने पड़ गए तो जूता ले कर भिड़ जायेंगे . और फिर इनके गुंडे यानी समर्थक एक दूसरे का लाठी डंडा सम्मान करेंगे इसमें संदेह का कोई कारण नहीं है . आपसी लेन देन का सुसंस्कृत माहौल बनेगा, देश आगे बढेगा .

                      इस बीच एक मंत्री के बेटे के विवाह समारोह में दोनों आग उगलखोर आमने सामने हो गए . जैसे ही नजर मिली दोनों एक दूसरे की तरफ लपके . लोगों की साँस थमने का इरादा कर ही रही थीं कि ये क्या !! दोनों गले लग गए, जैसे राजनीति में मेले में बरसों पहले पिछड़े हुए भाई हों ! सबसे पहले हालचाल की ले-दे हुई फिर परिधान प्रशंसा के साथ कन्धा सहलाई . इसके बाद घर परिवार में सब कुशल-मंगल ली गयी और अंत में ‘माता जी को चरणस्पर्श कहना’ से मुलाकात किनारे लगी . जिन्होंने देखा वे समझ नहीं पाए कि क्या देखा ! जाने ये सच है या भ्रम या फिर वो जो होता रहा है सच था या भ्रम !! सोशल मिडिया और टीवी पर यह दृश्य फ़ौरन से पेश्तर दौड़ गया और फिर इस फोन से उस फोन दौड़ता ही रहा . दूसरे दिन अख़बारों में भी राम-भारत मिलाप के फोटो छपे . पक्षधारों ने साफ किया कि राजनीति में कोई स्थाई दोस्त या कोई स्थाई शत्रु नहीं होता है . सच तो ये है कि सब मित्र होते हैं . लोकतंत्र की आदर्श परंपरा नूरा कुश्ती से जिन्दा है . भाईचारा जनता में हो न हो, राजनीति के गलियारों में खूब फल फूल रही है . और यह छोटी बात नहीं है .

 

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