माँ कसम चारों तरफ अमन चैन है . लगता है
प्रभु आँखें बंद किये बांसुरी बजा रहे हैं और प्राणी मंत्रमुग्ध फुर्सत में बैठे
हैं . आम आदमी रोने की बात पर भी हँस रहा है . लोग उछल उछल कर फटाफट नए पुराने
टेक्स दे रहे हैं . संपत्तियों के ऊँचे दाम मिल रहे हैं. बैंकें पकड़ पकड़ कर बिनदेखे
भरभर-के कर्ज दे रही हैं . सायकिल की हैसियत वाले कारों से नीचे पाँव नहीं रख रहे
हैं. पेट्रोल पानी की तरह छलक रहा है . पांच छः फुट रस्सी के सहारे लोग उस स्वर्ग में
पहुँचे जा रहे हैं जहाँ रावण सीढी बना कर पहुँचने
की मंशा रखता था . मुआवजे की राशि करोड़ से ऊपर पहुँच कर मोहक होने लगी है . लाभार्थियों
को बुजुर्गों में झुर्रियों के साथ सम्भावना की लकीरें भी दिखने लगी हैं . गैस
सिलेंडर को नए जंवाई की तरह हर बार पहले से ज्यादा मुँह दिखाई मिल रही है . जो दर्द
समझे गए अब दवा बनते जा रहे हैं . ... और इधर कुछ नामुराद, मनहूस, शहरी किस्म के जाहिल
दीदे बंद किये बैठे हैं ! ऐसे ही एक अभागे का इलाज होना है . “इनकी
आँखें समस्या हो गयी हैं बैधराज जी . जाँच कर बताइए क्या करना है ? इलाज हम करेंगे
.” उन्होंने एक अदद मुंडी सामने करते हुए बैध जी से कहा .
पूछने पर
मुंडी ने बताया - “आँखों की समस्या है वैधराज जी . सब साफ साफ दिखने लगा है . जो
चीजें, जो बातें लोग छुपाना चाहते हैं वो भी दिखने लगती हैं . झूठ के पीछे का सच
झूठ से पहले सामने आ जाता है . कोई साधू का स्वांग रचता है तो शैतान नजर आता है .
नौकर चाकर सेवकों को देख कर डर लगता है . पुलिस जनसेवक कहते हुए मुस्कराती है तो
खतरनाक लगती है . कुछ कीजिये वैधराज जी कि झूठ सच की तरह दिखे और सच तो दिखना ही
बंद हो जाये .” उसने हाथ जोड़ कर वैधराज दयाराम ‘काव्यप्रेमी’ को अपना रोग बताया .
इनदिनों
माहौल बढ़िया है . लोगों में वैधराज जी की साख है कि सभी तरह की पैथी से इलाज करवा
चुके निराश रोगी गैरंटी के साथ ठीक किये जाते हैं . नस नस पर उनकी पकड़ है . एक बार नब्ज पर हाथ रखते हैं तो अन्दर बैठा रोग
काँप जाता है . आधा रोग तो वे अपनी बातों से ही ठीक कर देते हैं, बाकि आधे के लिए
पुड़िया देते हैं . कुछ देर आँख बंद कर विचार करने के बाद बोले – “संसार में सच
दुःख का कारण है . इसलिए हर आदमी को सच से बचना चाहिए . झूठ में जो आनंद है वो
दरअसल स्वर्ग का आनंद है . शिक्षा, समझ और ज्ञान स्वर्ग का आनंद लेने के लिए
व्यक्ति को सक्षम बनाते हैं . कुछ लोग शिक्षा का दुरूपयोग करते हैं और सच देखने की
कोशिश करते हैं . यह अच्छी बात नहीं है . खूब टीवी देखा करो, अख़बार भी पढ़ा करो,
साधू संतों के प्रवचन सुना करो, योग भी करा करो . धीरे धीरे सच दिखना बंद हो
जायेगा . सच बहुत ढीठ किस्म का रोग है . किसी को इसकी आदत पड़ जाये तो उसे ठीक करना
बहुत कठिन होता है . समाज में नशामुक्ति केन्द्रों से अधिक सत्यमुक्ति केन्द्रों
की आवश्यकता है किन्तु समाजसेवी संस्थाओं का ध्यान इस और नहीं है . सरकारें अपनी
तरफ से पूरे प्रयास करती हैं लेकिन बहुत से काम होते हैं जो बिना जनसहयोग के
अपेक्षित परिणाम नहीं देते हैं . खैर ... विपक्षी दलों के बहकावे में तो नहीं रहते
हो ?” बैध जी ने आँखों में आँखे डालते हुए पूछा .
“हाँ, उनकी
बातें सुनता तो हूँ . वे ऑंखें खोलने और खुली रखने को कहते हैं .”
“तुम्हारे
रोग का यह भी एक कारण है . जनता की सच्ची सेवा तो यह है कि उस तक सुख पहुँचाया
जाये. बल्कि बढ़ा चढ़ा कर पहुँचाया जाये . विद्वान् लोग कहा गए हैं कि वो झूठ सच से
बड़ा होता है जो व्यक्ति को दुःख से बचाता है . इस समय सारा वातावरण जनता को दुःख
से बचाने की जी तोड़ कोशिश कर रहा है . सबको इसका लाभ लेना चाहिए ... अब कैसा लग
रहा ? ...सुखद ? पहले से ठीक है ना ?” वैधराज जी ने पूछा .
“जी हाँ, पहले से अच्छा लग रहा है . एक उम्मीद
सी जाग रही है .”
“ये कुछ
पुड़िया हैं, इन्हें सुबह दूध से, दोपहर को पानी से, और शाम को शहद से लेना . और यह
ध्यान रखो कि ईश्वर ने ऑंखें बंद रखने के लिए भी दी हैं . आँखें बंद रखने का
अभ्यास नियमित करो . बंद आँखों से ईश्वर के दर्शन होते हैं . ईश्वर से बड़ा कोई सच
है ? नहीं ना ? तो जहाँ तक संभव हो आँखें बंद रखो, भक्त बनो. ”
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