वे दोनों एक दूसरे के खिलाफ आग
उगलते रहे हैं . कुछ खास अवसरों पर जहर भी उगलने से उन्होंने परहेज नहीं किया है .
जनता के सामने जब वे दूसरे पर कुपित हो रहे होते हैं तो लोगों को लगता है अंगार पंडवानी
गायी जा रही है . लोकतंत्र का मजा ये हैं कि जब भी चुनाव टाईप खास माहौल बनता है
आग और जहर उगलने वाले एक्सपर्ट टिड्डियों की तरह प्रकट हो जाते हैं . इंतजार होता
है कि कब आचार संहिता लगे और कब एक दूसरे के चरित्र की चिन्दियाँ करने में लग पड़ें
. कोई चोर कहे, कोई लुटेरा कहे, धोखेबाज़ या झूठा कहे, कोई दिक्कत नहीं है .
नेतागिरी की तो डरना क्या ! मतदान तक नेताओं का कहना कहना नहीं है, और सुनना भी
सुनना नहीं है . समाज सेवा के लिए कोई सर पर टोपी नहीं रखता है . सब जानते हैं कि
राजनीति और भ्रष्टाचार एक ही चीज है . फर्क टेकनीकल है, जब तक पकड़े नहीं जाओ तब तक
राजनीति है, जिस दिन पकड़े गए तो भ्रष्टाचार . मिडिया भी मनी और मजे के लिए दोनों
के बयान बारी बारी से चलाता है और बेगराउंड में दो सांडों को लड़ते हुए भी दिखाता
है . इससे जनता में सन्देश यह जाता है कि राजनीति को गंभीरता से लेने की जरुरत
नहीं है, सांड कोई सा भी हो अपनी वाली पे आ जायेगा तो खेत आपका ही उजड़ना है .
बावजूद इसके लोगों को लगता है कि अगर ये दोनों आग उगलखोर किसी दिन आमने सामने पड़
गए तो जूता ले कर भिड़ जायेंगे . और फिर इनके गुंडे यानी समर्थक एक दूसरे का लाठी
डंडा सम्मान करेंगे इसमें संदेह का कोई कारण नहीं है . आपसी लेन देन का सुसंस्कृत
माहौल बनेगा, देश आगे बढेगा .
इस बीच एक मंत्री के बेटे के विवाह
समारोह में दोनों आग उगलखोर आमने सामने हो गए . जैसे ही नजर मिली दोनों एक दूसरे
की तरफ लपके . लोगों की साँस थमने का इरादा कर ही रही थीं कि ये क्या !! दोनों गले
लग गए, जैसे राजनीति में मेले में बरसों पहले पिछड़े हुए भाई हों ! सबसे पहले
हालचाल की ले-दे हुई फिर परिधान प्रशंसा के साथ कन्धा सहलाई . इसके बाद घर परिवार
में सब कुशल-मंगल ली गयी और अंत में ‘माता जी को चरणस्पर्श कहना’ से मुलाकात
किनारे लगी . जिन्होंने देखा वे समझ नहीं पाए कि क्या देखा ! जाने ये सच है या
भ्रम या फिर वो जो होता रहा है सच था या भ्रम !! सोशल मिडिया और टीवी पर यह दृश्य
फ़ौरन से पेश्तर दौड़ गया और फिर इस फोन से उस फोन दौड़ता ही रहा . दूसरे दिन अख़बारों
में भी राम-भारत मिलाप के फोटो छपे . पक्षधारों ने साफ किया कि राजनीति में कोई
स्थाई दोस्त या कोई स्थाई शत्रु नहीं होता है . सच तो ये है कि सब मित्र होते हैं .
लोकतंत्र की आदर्श परंपरा नूरा कुश्ती से जिन्दा है . भाईचारा जनता में हो न हो,
राजनीति के गलियारों में खूब फल फूल रही है . और यह छोटी बात नहीं है .
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