शनिवार, 3 मार्च 2018

भांग के पकौड़े


भांग के पकौड़ों की खास बात यह होती है कि इसमें भांग होती है और यह बात सिर्फ बनाने वाला जानता है. जैसे बजट में क्या है यह बजट बनाने वाला जनता है. भांग का ऐसा है कि इसका सेवन करने वाला मस्त रहता है. जीएसटी के चिमटे से चाहे कोई उसके कपड़े तक खेंच ले जाये उसे कोई फर्क नहीं पड़ता है. राजनीतिशास्त्र के फुटनोट में कहीं लिखा है कि जनता को भांग पिला कर राख लपेट दे और राजा  मस्त राज करे. भांग की खासियत है कि यह पिलाई जा सकती है और खिलाई भी जा सकती  है. पीना तो खैर पीना है, जैसे राजेश खन्ना ने जै जै शिवशंकर करते हुए पी डाली थी. लेकिन खाने का मामला थोड़ा अलग है. जो खिलाई जाती है उसे गोली कहते हैं. दक्ष मुखिया जानता है गोली कैसे देना है. ना ना, गोली से आप वो गोली मत समझ लेना जो आजकल हमारे गुंडे भाई भरे बाजार किसी को भी ठों से मार कर देश की जनसंख्या नियंत्रण नीति को अपना समर्थन और सहयोग देते हैं. ये गोली भांग की गोली है जो अंटी यानी कन्चे की तरह होती है. सफल नेता छाती चौड़ी करके मिडिया के मार्फ़त रोज एक गोली देश को खिला देता है.  भोलेनाथ के इस परसाद से भक्त झूमते रहते हैं. लेकिन चुनाव के पहले जनसभाओं में जो बांटा जाता है उसे भांग का अंटा कहते है. यों समझिये कि अंटा अंटी का पति होता है और पेकेज की तरह भरापूरा और मोटा होता है. अंटी व्यवस्था बनवाती है और अंटा बहुमत दिलवाता है. 
 युवा शक्ति इनदिनों पकौड़ों के माध्यम से अपना गौरवशाली इतिहास लिख रही है. शिक्षित व्यक्ति जो भी काम करता है सलीके से करता है. वह कम तेल में ज्यादा पकौड़े तल सकता है. आकार-प्रकार और मिर्च मसले का अनुपात तय कर वह पकौड़ों के चार वर्ण बना सकता है. हरा-पीला डाल कर हिन्दू-मुसलमाँ पकौड़े बना सकता है. उसे बताया गया है कि जब चाय बेचने से ये हो सकता है तो पकौड़ा बेचने से वो क्यों नहीं हो सकता है. भांग कई तरह की होती है, यानी ‘ये’ भी होती है और ‘वो’ भी हो सकती है.  भांग के पकौड़ों का मजा तलने वाले को आता है और खाने वाले को भी. कहते हैं कि राजनीति के कुंओं में भांग पड़ी हुई है. सुना है कि  दिल्ली का पानी ऐसा है कि उसे पीते - नहाते रोम रोम से लुच्चापन टपकने लगता है. अब आप नाराज मत हो जाइये प्लीज. जब धर्म को अफीम कहा गया तब भी उसका कुछ नहीं हुआ तो राजनीति को भांग कह देने से कुछ होना जाना नहीं है. डिब्बी और बोतल पर लिखा है कि ‘स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है’ फिर भी न सिगरेट छूटती है न शराब. भांग के पकौड़ों की वेरायटी बहुत है, इधर विकास का पकौड़ा है, उधर बुलेट ट्रेन पकौड़ा, पकौड़ा मंदिर, पकौड़ा महंगाई, पकौड़ा भ्रष्टाचार, पकौड़ा कलाधन, पकौड़ा पाकिस्तान, पकौड़ा तीन तलाक, और भी बहुत कुछ. और खुश खबर, भांग के पकौड़ों को आधार से नहीं जोड़ा है, इसलिए बारबार खाते रहो, मस्ती भरे तराने गाते रहो. अंटा है, गोली है. बुरा न मानो होली है.
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