शनिवार, 31 जुलाई 2021

मटकी, माखन और दिल्ली

 मथनी की तरह घूम घूम कर वे दिल्ली को मथ रही थीं . विश्वास ये कि माखन निकलेगा . दिल्ली को मथने से माखन निकलता है ये मिडिया से भी पता चलता है . जिसने ठीक से मथा नवनीत उसे ही मिला . कृष्ण ग्वालबालों की टोली के साथ होते थे और कंकरियां मार के मटकी फोड़ दिया करते थे . छींकों में ऊपर बंधी मटकी भी ग्वालों की सहायता से उतार लेते थे . मतलब ये कि कृष्ण ने शिक्षा दी है कि मिल कर प्रयास किये जाएँ तो मटकी फोड़ी जा सकती है . कृष्ण भी उनकी तरह काले थे सो वे एक स्याह  आत्मविश्वास से भरी हुई खुद कृष्णा हो रही थीं .

“कृष्णा जी विपक्ष की एकता का विचार अच्छा है लेकिन माखन कैसे बंटेगा इस पर कोई चर्चा नहीं हो रही है ! “ पुरातन दल के नवांकुरित दलपति ने अपनी बात रखी .

“ये बताइए कि सारा माखन आपको दे दें तो आप हजम कर लोगे दलपति जी ?” उन्होंने फायरब्रांड सवाल दागा .

“दो मिनिट रुको, मम्मी से पूछ कर बताता हूँ .”

“ऐसी कौन सी मम्मी है जो दुनिया का सारा माखन अपने बच्चू को नहीं देना चाहेगी !? वो तो हाँ ही कहेंगी .”

“फिर दीदी से पूछ लेता हूँ ...”

“अभी रक्षाबंधन आने वाला है . बहन भी सारा माखन भाई को ही देगी .”

“फिर किससे पूछूं ! और किसी पर मुझे भरोसा नहीं है .”

“मैं हूँ ना, मुझसे पूछो . देखो अपन पिरामिड बनायेंगे और सब मिल कर मटकी फोड़ेंगे तो थोड़ा थोड़ा माखन सबको मिल जाएगा .”

“पिरामिड में सबसे ऊपर किसको रखोगे ? गोविंदा किसको बनाओगे ?”

“मैं दिल्ली मथ रही हूँ तो साफ है गोविंदा मैं बनूँगी .”

“लेकिन हमारा दल राष्ट्रिय है और सबसे बड़ा है तो गोविंदा हमारा होगा और सबसे ज्यादा माखन भी हमें देना होगा .”

“सच्चाई को देखिये, आपका दल बूढ़ा हाथी है, खाता ज्यादा है और हिलता कम है . ऐसे में खेला कैसे होगा ?”

“कृष्णा जी ... मईंड योर लेंग्वेज प्लीज, हम जानते हैं अपने हाथी को, वह बूढ़ा नहीं है .”

“आप ठीक से जानते हैं ?... अच्छा बताइए कि हाथी की सूंड किधर होती है और पूंछ किधर ?”

“सिंपल है, हाथी जिधर से खाता है उधर सूंड और जिधर से निकालता है उधर पूंछ होती है .”

“ये तो हमारे बंगाल में केजी के बच्चों को भी पता होता है . पोलिटिक्स में हाथी अलग होता है .”

“तो आप ही बताएं कृष्णा जी ... मतलब दीदी ...आप बताएं .”

“जिधर से वादे किये जाते हैं, घोषणाएँ की जाती हैं उधर सूंड होती है और जिधर से वादों घोषणाओं की हवा निकल जाती है उधर पूंछ होती हैं .” 

इस बीच मम्मी आ जाती हैं, उन्हें भी सामूहिक प्रयास के बारे में बताया जाता है .

“माखन का इशू पहले साल्व करना पड़ेगा. यू नो सिक्सटी परसेंट माखन हमारा गुड्डू के लिए जरुरी है .”

“देखिये मैडम, हमारा गोल मटकी फोड़ना है, एक बार मटकी फूट जाये माखन का इशू बाद में हल हो जायेगा . “

“चलिए फिफ्टी वन परसेंट हमको दीजिये, बाकी का बाकी को . दूसरे क्या बोल रहे हैं ?”

“जितनी भी पार्टियों से मिली हूँ सारे फिफ्टी वन परसेंट मांगते हैं !”

“आपकी अपनी क्या राय है .“

“मुझे भी फिफ्टी वन परसेंट होना ... आखिर दिल्ली तो मैं ही मथ रही हूँ .

“तो दिल्ली आपका बस की नहीं है मैडम ... नमस्कार .”

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सोमवार, 26 जुलाई 2021

प्रजातंत्र की भ्रमित प्रजा

जो लोग अपने घर-परिवार का भार उठाने में असफल हो जाते हैं वे प्रायः देश का भार उठाते देखे जाते हैं . चूँकि पढ़े लिखे प्रजातंत्र की रक्षा के प्रति उदासीन होते हैं और अक्सर वोट भी डालने नहीं जाते हैं . ऐसे में प्रजातंत्र की रक्षा का यह दायित्व अपढ़, कुपढ़ और अंधभक्तों की झोली में चला जाता है . ये वो लोग हैं जो अपने को प्रजा समझते, मानते और गर्व करते हैं . प्रजातंत्र के हक़ में यह जरूरी है कि मानने वाले मजबूत और संतुष्ट हों . प्राण जाये पर वचन न जाये टाईप . शिक्षितों और समझदारों के भरोसे आप विकास जैसा कोई काम नहीं कर सकते हैं . विकास के लिए एक खास किस्म का विश्वास होना चाहिए . जानकर कहते हैं कि शिक्षा बाल की खाल निकलने का औजार है . सबसे पहले तो ये लोग प्रजातंत्र को लोकतंत्र कह कर राज करने का सारा मजा किरकिरा कर देते हैं . जैसे कोई सर का कोहिनूर-ताज उतर कर टोपी पहना दे . अगर किसी राज्य में जनसेवक अपने को राजा या महाराजा मानता है तो लोग अपने को प्रजा मान कर प्रापर बेलेंस कर सकते हैं . उन्हें करना ही चाहिए क्योंकि कोई भी व्यवस्था संतुलन से चलती है . लेकिन जब भी विश्वास करने का मौका आता है शिक्षित लोग आँखे बंद नहीं करते हैं, जैसे कि बाकी  देशभक्त कर लेते हैं . और जब आँख खोलते हैं तो संदेह और अविश्वास की दीवार खड़ी कर लेते हैं  ! इसलिए शिक्षा व्यवस्था में सुधार की बहुत जरुरत है . जब तक इनमें व्यावहारिक ज्ञान नहीं होगा ये न अपना भला कर सकते हैं न देश का . शिक्षा ऐसी होना चाहिए कि आदमी शिक्षित हो कर निकले पर शिक्षितों जैसा व्यवहार न करे . समझदार हो पर ज्यादा समझदार न बने . जब भी देखे अच्छा देखे, राजनीति के फटे में नजर डालना और उसके बाद हाय हाय करना उसका काम नहीं है . इसे शासकीय काम में दखलंदाजी या देशद्रोह भी माना जा सकता है . चाहे कोई कितना भी शिक्षित या समझदार क्यों न हो कानून से ऊपर नहीं है, सिवाय सरकार के .

देखिये लाइफ जो है दो तरह की होती है . एक होती है भगवान की दी हुई भूख,प्यास, निद्रा, मैथुन वाली बेसिक लाइफ और दूसरी होती है सभ्य समाज की प्रेक्टिकल लाइफ  . यह बात गंवार से गंवार आदमी जानता है कि प्रेक्टिकल लाइफ से ही व्यक्ति अच्छा और सफल नागरिक बनता है . शिक्षित आदमी अड़ियल किस्म का होता है इसलिए बेसिक लाइफ जीता है . पढ़े हैं सो बार बार संविधान की तरफ दौड़ते हैं . उसमें लिखा है कि देश सेक्युलर है तो सेक्युलर की रट लगाये रहेंगे . चाहे आधा दर्जन आदमी भी सेक्युलर नहीं मिलें पूरे देश में . अरे भई जनता धर्मों में बंटी है, धर्मों को ले कर अड़ जाती है, चुनाव, वोट, मंत्रिमंडल सब जाति-धर्म के हिसाब से होता है . इस पर प्रेक्टिकल नजरिया ये है कि हम सेक्युलर नहीं हैं लेकिन प्रजातंत्र में किताबों में लिखा हुआ अच्छा लगता है इसलिए हैं भी . तो भईया पढ़ो लिखो, कोई हरज नहीं हैं, बस आँखें बंद और कान खुले रखो, सवाल मत करो, जेब कटे या गरदन अपना फरज समझो . जियो तो भक्ति, मरो तो मुक्ति .

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बुधवार, 14 जुलाई 2021

कठिन डगर दलित के घर की

आज सुबह से साहब का मूड ख़राब है . सोच रहे हैं कि नेतागिरी साला दो कौड़ी का काम है . कहने को लीडर हैं, मालिक हैं अपने एरिया के, लेकिन क्या हैं ये आत्मा ही जानती है जब ऐरे गैरों के हाथ जोड़ते वोट मांगते फिरना पड़ता है . जिनको कभी फूटी आँख देखने का मन नहीं करता है उन्हीं बुड्ढे ठुड्डों के पैर छूना पड़ जाते हैं . थू है साला ऐसी जिंदगी पे ! इसी काम के लिए लीडर बने हैं क्या ! पिछले हप्ते हाईकमान का आदेश था कि दलित के यहाँ खाना खा कर आईये ! आज पार्टी ने कार्यक्रम भी बना दिया ! बाप दादों ने जिनकी छाया तक अपनी गाय-भैंसों पर नहीं पड़ने दी अब उनके घर जा कर खाना खाएं हम !! कहते हैं मैसेज अच्छा जाएगा, वोट मिलेंगे . आत्मा जो है धिक्कार रही है उसका क्या ? क्या करेंगे ऐसे वोटों का ! लोकतंत्र है, राजनीति है तो इसका मतलब ये नहीं कि जात-कुजात भी देखना छोड़ दें ! आज पूरी रात ठीक से सो नहीं सके हैं साहब . बार बार बाथरूम जाना पड़ा हल्के होने के लिए . दिमाग पहले से ख़राब था और ख़राब हो गया . तीन चार बार निर्णय लिया कि नहीं खायेंगे दलित के घर लेकिन पता नहीं कैसे कैसे गांधीछाप विचार आते रहे . पार्टी अनुशासन हो तब भी सब हाईकमान की मर्जी से नहीं होना चाहिए . लोकतंत्र में हमारी इच्छा, स्वतंत्रता भी कोई मायने रखती है या नहीं ! उन्होंने तो कह दिया कि जरा सा नाटक करना है, मिडिया वाले फोटो ले लें, खबर बना लें उसके बाद नहा-धो लो, या सेनेटायीज कर लो अपने को, बस हो गया . दलित को सर पे तो बैठना नहीं है, न ही रोज रोज गलबहियां करना है . कहते हैं पार्टी की छबि का सवाल है, आखिर वोट बैंक हैं दलित . हमारा लोकतंत्र है क्या, बाय द वोट बैंक, फॉर द वोट बैंक, ऑफ़ द वोट बैंक ही न .

नहा-धो कर दालान में आ गए हैं लेकिन साहब का मन बेचैन है . अगर खा लिए तो खुद उनकी छबि का क्या होगा ! बिरादरी के लोग कहेंगे कि वोटों के लिए इतना गिर गए ! बिरादरी तो जनम मरण से ले कर पीढ़ियों तक होती है . राजनीतिक पार्टियों का क्या है, आती जाती रहती हैं . पिछले चुनाव में दलित मोहल्ले की एक नयी बहु को गले लगा कर सम्मानित कर दिया था तो दूसरों की क्या कहें खुद उनकी पत्नी यह बोलते महीनों नाराज रही कि जिन बाँहों में दलित दब ली उसमें हम अपना बदन अपवित्र नहीं करेंगे . ताने ऊपर से देती रही कि वोटों के लिए कुछ भी कर लोगे क्या !! आखिर प्रयाग जा कर संगम में स्नान किया और दो किलो सोने के जेवर बनवा कर चढ़ाये तब कहीं जा कर बोलीं कि –‘ दिल भी तेरा, हम भी तेरे’ .

नौकर ने चाय नाश्ता ला कर रख दिया . रोज वे नाश्ते का इंतजार करते हैं लेकिन आज याद ही नहीं आई . नौकर से पूछा – “दोपहर होने में कितनी देर है ?”

“बस होने ही वाली है हुजूर, चार पांच घंटे में .”

रात हवा हो गई तो चार पांच घंटे निकलने में कितनी देर लगेगी . उन्होंने डाक्टर को फोन लगाया  –“ डाक्साब जी मिचला रहा है सुबह से . रात को ठीक से नींद नहीं हुई, बीपी भी बढ़ा बढ़ा सा महसूस हो रहा है . आप आ जाइये जरा .”

सामने पड़े अख़बारों पर उनकी नजर पड़ी . अपनी खबर देख कर वे हमेशा खुश होते थे, आज लग रहा है किसी ने कील ठोक दी पैरों में . चाह कर भी भागना मुश्किल है . डाक्टर से पहले पार्टी कार्यकर्त्ता आने लगे . गाड़ियाँ, झंडे, लाऊडस्पीकर और हट्ठे कट्ठे पट्ठों का हुजूम . क्षण भर के लिए उनके अन्दर उत्साह और उमंग का रूटीन करंट दौड़ गया . लेकिन दलित का घर याद आते ही फट्ट से फ्यूज उड़ गए . मन में यह कामना जोर मारने लगी कि भगवन बचा लो इस चीरहरण से, चमत्कार कर दो प्रभु और लंच पर किसी और को बैठा दो . अभिनेताओं के बॉडी डबल होते हैं तो नेताओं के क्यों नहीं होते . कैमरों से वहाँ जब सच छुपाया जा सकता है तो यहाँ क्या तकलीफ है ! कुछ देर अनमने से खड़े रहने के बाद वे यंत्रवत तैयार होने लगे .

डाक्टर ने बीपी चेक किया, धड़कन सुनी, आँखों में झाँका और गले में भी . लाल रंग का एक इंजेक्शन भरा और आचमन करवा दिया . वे बोले - “क्या इस इंजेक्शन से थोड़ी देर के लिए मैं कम्युनिस्ट हो पाऊंगा ?” डाक्टर ने मना किया और बताया कि –“इससे आप अन्दर से मजबूत हो जायेंगे एकदम कट्टर टाईप”. उल्टी ना हो इसलिए दो गोली जेब में रखवा दी, कहा कि गोली पावरफुल हैं, गोबर भी खाना पड़ जाए तो बाहर नहीं आएगा . पास खड़े पीए को पता चला तो उसने कहा कि –“ बिलकुल चिंता न करें सर, नगर निगम से दलित मोहल्ले की स्पेशल साफ सफाई करवा दी है . गरीब की झोपड़ी डेटोल से धुलवा दी है . जब आप पहुंचेंगे तब आसपास सुगन्धित अगरबत्तियां जल रही होंगी . उन लोगों को कल ही साबुन और पानी के टेंकर पहुंचा दिए थे, अच्छे से नहाने धोने की हिदायत दे दी गयी है . इस काम को हमारे कार्यकर्त्ता अपनी निगरानी में रखे हुए हैं . सामने पड़ने वाले दलितों पर परफ्यूम पावडर भी कार्यकर्त्ता खुद लगवा देंगे . खाना और दोना पत्तल आपकी पसंदीदा होटल से आ रहा है . आपको बस आंखे बंद करके कुछ निवाले खा लेने हैं . दोपहर का समय होगा सो आप काला चश्मा लगा रखेंगे . इससे आपको झोपड़ी के अन्दर का ज्यादा कुछ दिखाई नहीं देगा सिवा दोना पत्तल और भोजन के . मिडिया के सामने आपको दो बच्चों के सर पर हाथ रखना है और एक छोटे बच्चे को गोद में ले कर चूमना है” .

“नहीं ... ये नहीं हो सकता है . किसी कीमत पर बच्चे को गोद में नहीं लूँगा, चूमूँगा नहीं .कार्यक्रम सिर्फ खाना खाने का है .” वे बिफर गए .  

“हाईकमान ने गोद लेने और चूमने को लाल स्याही से अंडरलाइन करके भेजा है सर, लिखा हुआ है . दूसरी पार्टी वाले न सिर्फ बच्चों को नहला रहे हैं बल्कि पॉटी करवा कर पिछवाडा भी धो रहे हैं . उनका वीडियो वायरल है सर . ... फिर जैसा आप चाहें ...” पीए ने जोर दिया .

“बच्चा बासता हुआ न हो ... “

“नहीं  होगा सर ... डीओ लगाव रहे हैं और गलों पर नीविया भी . आपको लगेगा किसी काले अंग्रेज के बच्चे को चूम रहे हैं .”

उन्होंने मौन से अपनी सहमति दी और उस सजे हुए वाहन में बैठ गए जो इस मौके के लिए तैयार किया गया है . नारे लग रहे हैं, झंडे लहरा रहे हैं, गले में माला है, जुलूस आगे बढ़ रहा है . लोगों में जोश इतना कि जैसे बैंक लूटने जा रहे हों .  उन्हें पुलकना चाहिए लेकिन दिल डूबता सा लग रहा है . पीए से पानी की बोतल ले कर उन्होंने जेब में रखी दोनों गोलियां मुँह में डाल लीं और आँखों को काले चश्मे से ढँक लिया .

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