शनिवार, 10 सितंबर 2022

पैदल आदमी का चालान


 

        “एई ... रुको ... इधर आओ ...किनारे की तरफ । हाँ ... बेल्ट क्यों नहीं पहना है ? “ ड्यूटी-पुलिस ने पूछा ।

        “पजामा पहना है साहब ... नाडा बंधा हुआ है ।“ पैदल आदमी बोला ।

         “पजामा हो या लुंगी बेल्ट लगाना अनिवार्य है । चालान बनेगा । “  ड्यूटी पुलिस ने डायरी निकलते हुए निर्णय सुनाया ।

        “लेकिन मैं तो पैदल हूँ ! मेरा चालान कैसे !?”

        “पैदल ही सही, सड़क पर तो हो । जो भी सड़क पर आता है यातायात कानून के दायरे में आता है । चलिए दो सौ रुपये निकालिए । “

        “दो सौ रुपये !! किस बात के साहब ? मैं पैदल हूँ, मेरी गलती क्या है ?”

         “बहुत सी गलतियाँ हैं ... पहली तो यही कि रांग साइड हो ।“

          “रंग साईड कैसे ! बाएं हाथ चल रहा हूँ, बाएं चलने का नियम है ।”

           “पैदल आदमी को दाएँ हाथ चलने का नियम है । उसके लिए बाएं चलना रंग सईड है ।“

           “दाहिने हाथ कौन चलता है सर ... सब बाएं से चलते हैं । और पैदल के लिए दायें-बाएं का क्या मतलब है !”

           “यातायात के नियमों की जानकारी नहीं होना दूसरी गलती है ... दो सौ पचास निकालिए ।“

           “आप टारगेट पूरा कर रहे हो और कुछ नहीं है । देखिये साहब यातायात पुलिस पैदल का चालान नहीं बना सकती इतना तो मैं भी जानता हूँ । “

           “एक और गलत जानकारी । सड़क पर जो भी आयेगा, नियमों का पालन नहीं करेगा तो उसका चालान बनेगा । ... अभी तुमने लाल बत्ती होने के बावजूद चौराहा पार किया । बताओ किया या नहीं किया ?  “ ड्यूटी पुलिस ने आवाज सख्त की ।

           “किया है सर ... लेकिन मैं तो पैदल हूँ ।“

           “तो क्या ट्रेफिक के नियमों से ऊपर है ! “

           “वोट देता हूँ, सरकार बनाता हूँ, मालिक हूँ देश का तो क्या लाल बत्ती भी क्रास नहीं कर सकता हूँ !?”

           “मालिक !! ... तीन सौ निकाल ।“

           “अरे बात को समझो सर ... मैं मुख्यमंत्री का जीजा हूँ ...”

           “तुम मुख्यमंत्री के जीजा कैसे हो !?”

           “मेरे बच्चे उनके भांजा-भांजी हैं तो मैं जीजा हुआ या नहीं ? अब जान गए तो रिश्तों की लाज रखो प्लीज । ”

          “अपना आधार कार्ड बताओ ।“

          “आधार कार्ड तो नहीं है इस वक्त, घर पर रखा है ।“

          “सड़क पर निकल आये और पेपर भी नहीं है ! तीन सौ पचास निकालिए ।“

          “पैदल चलने का भी लायसेंस बनता है क्या !? कमाल करते हो आप तो ! “

          “बीमा दिखाओ, बीमा तो होगा ?”

          “इतनी महंगाई में कौन बीमा करवाता है साहब । आप तो अपना प्रीमियम ‘रांग-साइड’ से भर देते होगे, हम कहाँ से लायें !”

          “उधर देखो ... वो साहब खड़े हैं कमर पर हाथ रखे । ... दिखे ?”

          “नहीं दिखे ... दूर की नजर कमजोर है ।“

           “तो चश्मा क्यों नहीं पहना ? जब साहब नहीं दिख रहे हैं तो सामने से आ रही गाड़ी कैसे देखोगे ! चलो टोटल चार सौ रुपये निकालो  ।“

            “अरे आप तो रकम बढ़ाते ही जा रहे हो !! मैं कम्प्लेन करूँगा आपकी ।“

            “कर देना । हार्न है ?”

            “पैदल आदमी में हार्न कहाँ होता है !?”

            “ब्रेक भी नहीं होंगे ?”

             “हाँ नहीं हैं ।“

             “हेड लाईट ?”

             “नहीं है ।“

              “ हूँ ... पांच सौ निकालो ।“

              “नहीं हैं ... और नहीं दूंगा । जब्त कर ले मुझे ।“

               “इतना टाइम ख़राब करा ... चल छोड़ ... पचास दे दे और भाग जा ।“

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