इनदिनों अपनी फोटो पर मेरा ध्यान
बार बार जाता है । हर किसी के हाथ में कैमरे वाला फोन है और फोटो ऐसे धड़धड़ खेंचे
जाते हैं मानों पीछे डंडा ले कर पुलिस खड़ी हो कि खींच अपनी फोटो । इसी तुकतान में सेल्फियाए
रहते हैं कि कोई फोटो ऐसी आ जाये जो उनकी हो लेकिन उनके जैसी न हो । रोज अख़बार में
फोटो हो चुके लोगों की सूचना मिलती है । कुछ के यहाँ जाना भी पड़ता है । देखते हैं
कि फोटो बढ़िया है । आजकल तकनिकी का जमाना है । आदमी से बेहतर उसकी फोटो होती है । पहले
स्टूडियो और फोटो आर्टिस्ट होते थे । मेरे माथे पर चेचक और चोट के दो निशान हैं । गलों
पर भी मुंहासों के छूटे हुए निशान हैं काफी सारे । जब भी फोटो खिंचवाई आर्टिस्ट ने
तमाम निशान गायब कर दिए । इससे पहचान का संकट तो बना पर अच्छा लगा । एक बार फोटो इतना साफ सुथरा
बना कि मुझे जरुरी लगा कि नीचे अपना नाम भी लिख दूँ । लेकिन आज भी मेरी पसंदीदा
फोटो वही है ।
कालेज के दिनों में फोटो को लेकर
दिल कुछ ज्यादा ही हूम हूम करता है । एक ऐसी घटना हुई जो भूलती नहीं है । आइडेंटिटी-कार्ड
यानी परिचय-पत्र पर फोटो लगता है । फोटो चिपका कर प्रिंसिपाल के पास हस्ताक्षर के
लिए पहुंचे तो उनका सवाल था कि ये कौन है !? बताया कि मेरी ही है सर । वे बोले जैसी
शकल है वैसी फोटो लाओ । इसमें तुम्हें कौन पहचानेगा, आई.एस. जौहर लग रहे हो । मजबूरन
एक ख़राब फोटो लगाना पड़ी । इसके बाद जब भी परिचय-पत्र दिखाना पड़ा ऐसे दिखा कर तुरंत
छुपाया जैसे आठवीं-फेल की मार्कशीट हो ।
अब जरा उम्र हो गयी है और बीमार भी रहने
लगे हैं तो बीमारी से ज्यादा फोटो को लेकर चिंता होती है । शक्ल खुद पहचान से
मुकरने लगी है । आइने के सामने जाओ तो लगता है जाने कौन है ! खुद को जानते हैं
लेकिन पहचानने का मन नहीं करता है । काश कि जवानी में शकल देख के बैंकें लोन देती,
कुछ तो फायदा होता बदशक्ली का । आधार-कार्ड और वोटर-कार्ड पर भी ऐसी फोटो होती है
जिसे कह सकते हैं रियल जानलेवा । कर सकता हो तो आदमी खुद अपने को रिजेक्ट कर दे । गलती
से पहले आधार दिखा दो तो लड़का लड़की बेचारों की शादी ही न हो । आप समझ सकते हैं इस
चिंता को । छुप छुप कर सेल्फी लेते हैं तमाम पुराने निशानों के साथ झुर्रियां ब्रेक
डांस करती दिखाई देती हैं । ऐसी हालत में मर जाने का मन भी नहीं करता है । अगर
अंतिम दर्शन ऐसे हैं तो लोग क्या सोचेंगे । कुछ दिनों बाद आखिर भगवान ने सुन ली । किसी
दावा का रिएक्शन हुआ और चेहरे पर सूजन आ गयी । डाक्टर को थेंक्यू कहा तो मायूस हो
गए, उन्हें लगा कि व्यंग्य कर रहा हूँ । बोले सूजन दो तीन दिन में अपने आप उतर
जाएगी, या कहो तो इंजेक्शन दे दूँ । अन्दर की ख़ुशी का क्या कहें, सूजन नहीं थी
सौगात थी । बूढ़े शरीर पर जवान चेहरा किसे अच्छा नहीं लगेगा । दनादन सेल्फी भरी फोन
में । अच्छा किया, सूजन कमबख्त दो दिन में ही फ़ना हो गयी, लेकिन तमाम फोटो पीछे
छोड़ा गयी । कुछ को फ्रेम करवा कर सामने दीवार पर टांग दिया है । अब आगंतुकों की प्रतिक्रिया नयी जरुरत
बन गयी है । आप कभी आयें ... कभी क्यों एक बार जरुर आयें, स्वागत है आपका ।
एक ढंग की मन पसंद फोटो हो जो अख़बार
में छपे तो लगे कि आदमी कितना अच्छा था । देखते ही लोगों के मन में अच्छी भावनाए
आयें । कबीर के ज़माने में फोटो नहीं होते थे सो वे लिख गए कि ‘ऐसी करनी कर चलो कि हम
हँसे जग रोये’ । अब करनी का क्या कहें ! सबकी एक जैसी है । लगता है ईश्वर ने सबको
पाप करने के लिए ही भेजा है । करम तो अब छुपाने की चीज हो गए हैं । वो तो अच्छा है
कि जाने वाले के बारे में बुरा नहीं बोलने की परंपरा है । हो भी क्यों नहीं, किसी का बुरा देखो तो वह अपना ही लगने लगता है ।
अच्छी फोटो सामने हो, आदमी फूल चढ़ा दे बस । आदमी करम ऊपर ले जाता है, फोटो नीचे
छोड़ जाता है ।
अचानक उस फोटोग्राफर की याद आई जिसने
कभी मुझे आई.एस. जौहर बना दिया था । देखा कि माला और फ्रेम के बीच फंसे मुस्करा
रहे हैं । लडके से पूछा – “आखरी तक ऐसे ही दीखते थे क्या ?” लड़का बोला – “दिखने से
क्या होता है, पासबुक में निल बटा सन्नाटा थे “। उसे समझाते हुए कहा - बेटा सिकंदर
गया तब उसके दोनों हाथ खाली थे । उसने गौर से देखा, जिसे करीब करीब घूरना भी कहा
जा सकता है । बोला – हाथ सबके खाली ही रहते हैं, लेकिन पासबुक (खजाना) में तो कुछ
होना चाहिए ना । पीछे जो रह जाते हैं उनका काम सिर्फ फोटो से चलता है क्या ?
-----
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें