शनिवार, 17 सितंबर 2022

करम ऊपर गये, फोटो नीचे रह गया


 


             इनदिनों अपनी फोटो पर मेरा ध्यान बार बार जाता है । हर किसी के हाथ में कैमरे वाला फोन है और फोटो ऐसे धड़धड़ खेंचे जाते हैं मानों पीछे डंडा ले कर पुलिस खड़ी हो कि खींच अपनी फोटो । इसी तुकतान में सेल्फियाए रहते हैं कि कोई फोटो ऐसी आ जाये जो उनकी हो लेकिन उनके जैसी न हो । रोज अख़बार में फोटो हो चुके लोगों की सूचना मिलती है । कुछ के यहाँ जाना भी पड़ता है । देखते हैं कि फोटो बढ़िया है । आजकल तकनिकी का जमाना है । आदमी से बेहतर उसकी फोटो होती है । पहले स्टूडियो और फोटो आर्टिस्ट होते थे । मेरे माथे पर चेचक और चोट के दो निशान हैं । गलों पर भी मुंहासों के छूटे हुए निशान हैं काफी सारे । जब भी फोटो खिंचवाई आर्टिस्ट ने तमाम निशान गायब कर दिए । इससे पहचान का संकट तो  बना पर अच्छा लगा । एक बार फोटो इतना साफ सुथरा बना कि मुझे जरुरी लगा कि नीचे अपना नाम भी लिख दूँ । लेकिन आज भी मेरी पसंदीदा फोटो वही है ।  

              कालेज के दिनों में फोटो को लेकर दिल कुछ ज्यादा ही हूम हूम करता है । एक ऐसी घटना हुई जो भूलती नहीं है । आइडेंटिटी-कार्ड यानी परिचय-पत्र पर फोटो लगता है । फोटो चिपका कर प्रिंसिपाल के पास हस्ताक्षर के लिए पहुंचे तो उनका सवाल था कि ये कौन है !? बताया कि मेरी ही है सर । वे बोले जैसी शकल है वैसी फोटो लाओ । इसमें तुम्हें कौन पहचानेगा, आई.एस. जौहर लग रहे हो । मजबूरन एक ख़राब फोटो लगाना पड़ी । इसके बाद जब भी परिचय-पत्र दिखाना पड़ा ऐसे दिखा कर तुरंत छुपाया जैसे आठवीं-फेल की मार्कशीट हो ।

             अब जरा उम्र हो गयी है और बीमार भी रहने लगे हैं तो बीमारी से ज्यादा फोटो को लेकर चिंता होती है । शक्ल खुद पहचान से मुकरने लगी है । आइने के सामने जाओ तो लगता है जाने कौन है ! खुद को जानते हैं लेकिन पहचानने का मन नहीं करता है । काश कि जवानी में शकल देख के बैंकें लोन देती, कुछ तो फायदा होता बदशक्ली का । आधार-कार्ड और वोटर-कार्ड पर भी ऐसी फोटो होती है जिसे कह सकते हैं रियल जानलेवा । कर सकता हो तो आदमी खुद अपने को रिजेक्ट कर दे । गलती से पहले आधार दिखा दो तो लड़का लड़की बेचारों की शादी ही न हो । आप समझ सकते हैं इस चिंता को । छुप छुप कर सेल्फी लेते हैं तमाम पुराने निशानों के साथ झुर्रियां ब्रेक डांस करती दिखाई देती हैं । ऐसी हालत में मर जाने का मन भी नहीं करता है । अगर अंतिम दर्शन ऐसे हैं तो लोग क्या सोचेंगे । कुछ दिनों बाद आखिर भगवान ने सुन ली । किसी दावा का रिएक्शन हुआ और चेहरे पर सूजन आ गयी । डाक्टर को थेंक्यू कहा तो मायूस हो गए, उन्हें लगा कि व्यंग्य कर रहा हूँ । बोले सूजन दो तीन दिन में अपने आप उतर जाएगी, या कहो तो इंजेक्शन दे दूँ । अन्दर की ख़ुशी का क्या कहें, सूजन नहीं थी सौगात थी । बूढ़े शरीर पर जवान चेहरा किसे अच्छा नहीं लगेगा । दनादन सेल्फी भरी फोन में । अच्छा किया, सूजन कमबख्त दो दिन में ही फ़ना हो गयी, लेकिन तमाम फोटो पीछे छोड़ा गयी । कुछ को फ्रेम करवा कर सामने दीवार पर टांग  दिया है । अब आगंतुकों की प्रतिक्रिया नयी जरुरत बन गयी है । आप कभी आयें ... कभी क्यों एक बार जरुर आयें, स्वागत है आपका ।

             एक ढंग की मन पसंद फोटो हो जो अख़बार में छपे तो लगे कि आदमी कितना अच्छा था । देखते ही लोगों के मन में अच्छी भावनाए आयें । कबीर के ज़माने में फोटो नहीं होते थे सो वे लिख गए कि ‘ऐसी करनी कर चलो कि हम हँसे जग रोये’ । अब करनी का क्या कहें ! सबकी एक जैसी है । लगता है ईश्वर ने सबको पाप करने के लिए ही भेजा है । करम तो अब छुपाने की चीज हो गए हैं । वो तो अच्छा है कि जाने वाले के बारे में बुरा नहीं बोलने की परंपरा है । हो भी क्यों नहीं,  किसी का बुरा देखो तो वह अपना ही लगने लगता है । अच्छी फोटो सामने हो, आदमी फूल चढ़ा दे बस । आदमी करम ऊपर ले जाता है, फोटो नीचे छोड़ जाता है ।

            अचानक उस फोटोग्राफर की याद आई जिसने कभी मुझे आई.एस. जौहर बना दिया था । देखा कि माला और फ्रेम के बीच फंसे मुस्करा रहे हैं । लडके से पूछा – “आखरी तक ऐसे ही दीखते थे क्या ?” लड़का बोला – “दिखने से क्या होता है, पासबुक में निल बटा सन्नाटा थे “। उसे समझाते हुए कहा - बेटा सिकंदर गया तब उसके दोनों हाथ खाली थे । उसने गौर से देखा, जिसे करीब करीब घूरना भी कहा जा सकता है । बोला – हाथ सबके खाली ही रहते हैं, लेकिन पासबुक (खजाना) में तो कुछ होना चाहिए ना । पीछे जो रह जाते हैं उनका काम सिर्फ फोटो से चलता है क्या ?

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