बुधवार, 30 जून 2021

नये अंधों का हाथी


 

अंधे वे भी होते हैं जिनकी आंखे होती हैं . जैसे खोपड़ी होने का यह मतलब नहीं कि आदमी में दिमाग भी होगा ही . कहते हैं अनुभव से आदमी सीखता है . अंधे स्पर्श से अनुभव करते हैं . इस समय आपको अंधों का हाथी याद आ रहा होगा . लेकिन अब हाथी देखने को नहीं मिलते हैं . बहुत पहले जंगल में हुआ करते थे फिर सर्कस में सूंड उठाने लगे अब सुना है राजनीति में आ गए हैं . राजनीति में सारे हाथी नहीं होते हैं, घोड़े, गधे, लोमड़, सियार ही नहीं मेंढक भी होते हैं. राजनीति अगर ठीक से खेली जाए तो मेंढक ही आगे चल कर हाथी हो जाता है . ऐसे में दो तरह की समझ वाले लोग हमें मिलते हैं . एक वे जो हाथी होने के बावजूद हाथी को मेंढक ही मानते हैं . दूसरे वे जो राजनीति में टर्रा रहे मेंढकों को हाथी मान कर उस पर अड़े रहते हैं . वे सम्भावना से भरे होते हैं और संगठित हो कर मेंढकीयत का अभ्यास करते रहते हैं . आज विशेष दिन है जिसमें अंधों को अपने हाथी यानी लीडर को जानना है . सबको बताना है कि आप अपने लीडर को कैसे और कितना जानते हैं .

पहला अँधा हाथी को दीवार की तरह महसूस कर बोला – मेरा लीडर बड़े बड़े पोस्टर में होता है . कहीं वो दो उंगली दिखाता है कहीं एक . मन का मार्केट एक का दो, एक का दो होने लगता है . पेट्रोल पम्प हो या किराने की दुकान पोस्टर देखते ही दिल में टर्र-टर्र का संगीत गूंजने लगत है और महंगाई का पता ही नहीं चलता है. आकाशवाणी होती है कि महंगाई एक तरह का वहम है . लीडर का स्मरण करो तो वहम के सारे भूत भाग जाते हैं . मन उमंग की हुमक में फुदकता रहता है तो समझ जाता हूँ कि यही मेरा लीडर है .

दूसरा अँधा हाथी के पाँव से टिका फोन में घुसा था . हिलाया जगाया तो बोला – मेरा लीडर इंटरनेट मिडिया में चलने वाला खनकता सिक्का है . इधर से आलू-मेसेज डालो तो उधर से समर्थन का सोना निकलता है . वाट्सएप की हर पोस्ट उसके इरादों, कारनामों का बूस्टर डोज है . अगर दस मिनिट अपने लीडर की नई पोस्ट नहीं देखूं तो बीमार पड़ने लगता हूँ . जब कोई पोस्ट  कहती है ‘जागो जागो, देखो अंधों देखो’ तो मुझे ऐसा लगता है जैसे सब दिख रहा है . कैसे लोग तरक्की कर रहे हैं दनादन . कैसे आक्सिजन और दवा के बिना भी बहादुरी से जिन्दा बच रहे हैं. नौकरियां जाने के बाद भी कैसे सीना चौड़ा किये आत्मनिर्भर बने खड़े हैं . यही मेरा लीडर हाथी का पैर है नहीं हिलेगा .

तीसरा अँधा सूंड पकड़े टीवी देख रहा था . बोला - हर चैनल पर चौबीस घंटे जो खबरों में रहे वही मेरा लीडर है . उसका दृढ़ विश्वास है कि टीवी झूठ नहीं दिखाता है . मेरा लीडर तो देश में एक ही है बाकी सब दाढ़ी के बाल हैं जो जरुरत के हिसाब से काटे-छांटे या ट्रिम किये जा सकते हैं . नागरिकों को मनोरंजन का अधिकार है और सपने देखने का भी . मेरा लीडर जब बोलता है तो ये दोनों काम हो जाते हैं . इसलिए मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो न कोई .

‘दुनिया चले अगाड़ी तो मैं चलूँ पिछाड़ी’, चौथा अँधा हाथी के कान पर धिन ता-ता ता करने में मस्त है . उसे चार सौ साल पीछे जाना है . अभी शुरुवात है . उसका लीडर कार की हेड लाईट जला कर रास्ता आगे का दिखाता है और गाड़ी रिवर्स में चलता है . इस काम में उसे लीडर का विराट रूप दिखाई देता है जैसा अर्जुन को दिखा था . अगर स्वर्ग पीछे है तो आगे बढ़ने का मतलब पीछे जाना है . जिसने यह रहस्य जान लिया है वही मेरा लीडर है .

हाथी की पूंछ पकड़ उसे चाबुक समझ रहा पांचवा अँधा डरने वाला और जरा भावुक किस्म का है . मानता है कि मेरा लीडर कभी झूठ नहीं बोलता है . अगर बोलना ही पड़े तो सच की तरह बोलता है . जिसका झूठ भी सच लगे वही सच्चा लीडर होता है . जब वह कहता है कि सब अच्छा है तो सबको मान लेना चाहिए कि सब अच्छा है . जो शंका करके शगुन बिगाड़ेगा वह देशद्रोही माना जाएगा . लोग कहते हैं कि लीडर निपूता ही अच्छा होता है . पांचवा बिना किसी सवाल के मान लेता है . वह बैल को बाप भी मान लेता है और बन्दर को मामा . चाबुक से उसे डर लगता है .

शिक्षा – लोकतंत्र में अंधों का बहुमत हो तो हाथी अपनी पहचान बदल बदल कर लम्बे समय तक राज कर सकता है .

 

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शनिवार, 26 जून 2021

भरोसे की भैंस


 

भगोड़ा आदमी सही मायने में भरोसेमंद आदमी होता है . बैंक से लेकर बाज़ार तक सब उस पर भरोसा करते हैं . इसलिए हम भगोड़ा को भगोड़ाजी कहेंगे . उम्मीद है आपको कोई आपत्ति नहीं होगी, और होगी तो होगी आप सभ्यता और संस्कृति से बड़े थोड़ी हो . भरोसा भगोड़ाजी के लिए च्यवनप्राश होता है . भरोसा जितना दमदार होता है भगोड़ाजी उतना मेराथन भागते हैं  . भगोड़ाजी के पीछे बैंक भागती है, बाज़ार भागता है, पुलिस और अगर मिडिया कवर कर रहा हो तो नेता भी भागते हैं . अंत में शरमा शरमी सरकार भी भागती है . सब भागते हैं लेकिन भगोड़े जी किसी को नहीं मिलते हैं . वह सिर्फ मिडिया को मिलते हैं और ‘राष्ट्रहित सबसे ऊपर है’ कह कर फिर भाग जाते हैं . वह खुद को बैंक, बाज़ार और यहाँ तक कि देश का चौकीदार कहते हैं . उनके हाथ में मास्टर-चाबी होती है, वह हर तरह का ताला खोलना जानते  हैं  . वह चिराग का जिन्न हैं  लेकिन चिराग अपनी बगल में दबाये रहते हैं . मौकों पर हुकुम मेरे आका कहते  हुए हाजिर होते हैं और कुछ हजार करोड़ समेट कर भाग जाते हैं . वह उड़ने वाला डायनोसार हैं, लोग बताते हैं देखते देखते उड़ जाते हैं . उन्हें गायब होने का जादू आता है . कई बार पुलिस की आँखों के सामने से गायब हुए हैं . वह सब कुछ कर सकते हैं . सरकार बना सकते हैं और सरकार की योजनायें भी . योजनाओं में वे इस तरह होते हैं कि उनके गायब होते ही योजनायें भी गायब हो जाती हैं .

पिछली बार उन्होंने कहा था कि वे देश की मिट्टी में जिये हैं और इसी में मरेंगे . यह भी कि माँ से बड़ी मातृभूमि होती है तो उनकी बातों का बड़ा असर हुआ था . भरोसे की जड़ें और गहरी हो गयी थीं . बैंकों ने खुद डम्परों से भर भर कर रुपया उनके गोदामों में भर दिया था . आप कह सकते हैं कि इसमें भगोड़ेजी की कोई गलती नहीं है . सरकार ने भी कह रखा है कि बैंकें विवेक को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए निर्णय लें . लेकिन विवेक ने काफी समय हुआ वीआरएस ले लिया था . भगोड़ेजी को यह बात पता चली तो उन्होंने विवेक को अपने यहाँ नौकरी पर रख लिया . अब विवेक भगोड़ेजी का नौकर है और पेंशन बैंक से लेता है .

भगोड़ाजी अभी कहाँ हैं पता नहीं . घोटाले के हजारों करोड़ रुपये कहाँ हैं ये भी किसी को मालूम नहीं . इधर की सरकार उधर की सरकार से पूछती है कि हमारा भगोड़ा क्या तुम्हारे पास है ? जवाब मिलता है कि हमारे पास हमारा नागरिक है तुम्हारा भगोड़ा नहीं . उनसे कहा जाता है कि घोटाले की रकम ही दे दीजिये . वे कहते हैं भूल जाओ रकम को, उसीसे तो नागरिकता और सुरक्षा ली है उसने . जैसे ही यह खबर फैलती है बाज़ार ‘हाय तेरा नास जाए’ टाईप आक्रोश व्यक्त करता है, कुछ छाती कूटते हैं कुछ रोते हैं और कुछ बाबा बंगालियों से काला जादू और छू-छा करवाते हैं . पता चलता है कि भगोड़ा जी उनसे बड़े जादूगर हैं और छू-छा के मामले में बाबाओं के बाप हैं . इधर बैंकों को ज्यादा चिंता नहीं है . क्योंकि बैंक में जनता का पैसा जमा होता है . लोकतंत्र में एक दिन को छोड़ कर जनता को कोई कुछ समझता नहीं है . जनता गाँव की गरीब जवान विधवा है . उस पर सैकड़ों पाबंदियां और हजारों निगाहें हैं . इसके साथ वो भाभी भी सबकी है, जिसका मन जब भी हो होली खेल लेता है . बैंक में पैसा जमा करने के बाद थकी हारी जनता भी सो जाती है . भगोड़ा जी कर्मयोगी हैं, जागते रहते हैं . यही नहीं वे लोरी भी खूब गाते हैं . जो नहीं सोए हैं वो भी सो जाते हैं . अख़बारों में हेड लाइन छपती रहती है, सरकारें आती जाती रहती हैं, और सुना हैं भगोड़ा जी भी आते जाते रहते हैं .

 

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बुधवार, 9 जून 2021

वेक्सिन का सीज़न है ... भर लो



 

                         


लोग सुख-दुःख बांटे न बांटे, ज्ञान को गति तो मिलती ही है . वे बोले –“ वो क्या है भाई साब, अपने तो बाप-दादे के ज़माने से येई चला आ रहा है . यों समझ लो कि परंपरा है खानदानी . सामान सीजन में अच्छा और सस्ता मिलता है तो सब भर लेते हैं अपन . गेंहूँ के सीज़न में साल भर का गेंहूँ, चावल, दाल, तेल, शकर, मिर्च-मसाले सब . बाद का कोई टेंशन नहीं . ... सोना जब बीस-बावीस के भाव का था तब अपन ने भर लिया था . आज देखो ... जिन्ने नहीं भरा वो पछता रहे हैं . “

“पुराने लोग बहुत सोच समझ कर चलते थे .” हमने सहमति जताई .

“अभी वेक्सिन का सीज़न चल रहा था तो वेक्सिन भर लिए . स्टाक तो कर नहीं सकते थे इसलिए लगवाना पड़े .”

“दोनों डोज लगवा लिये आपने ? ... ये अच्छा किया .”

“दो नहीं चार डोज लगाव लिए हें अब्बी तक . घर में भी सबको तीन तीन डोज हो गए हैं .” उन्होंने छाती चौड़ी करते बताया.

“तीन तीन चार चार !! ये तो संभव ही नहीं है !? कैसे लगवा लिए !?! ... और क्यों लगाव लिए ?”

“जिनके इरादे पक्के होते हैं ना भाई साब उनके लिए कुछ भी असंभव नहीं हैं अपने देश में . रहा सवाल कि क्यों लगवाए,  तो हमारे यहाँ परंपरा है भरने की .“

“अरे नियम-कायदा, सरकार किसी का तो ख्याल किया होता !!”

“सरकार तो खुद ही कहती है कि लोग परम्पराओं का सम्मान करें .”

“वो दूसरी परम्पराओं के बारे में कहती है ... लेकिन वेक्सिन !! ... आप महान हैं .”

“हमने तो रेमडीसिविर भी भर लिए थे . और टोसी भी .” वे महानता पर मोहर लगते हुए बोले .

“रेमडीसिविर कितने भरे थे !?”

“घर में तेरह मेंबर हैं . सौ इंजेक्शन थे अपने पास .”

“अगर तेरह को ही कोविड हो जाता तो भी आपके लिए अस्सी काफी थे . फिर सौ क्यों !?”

 “हमारे दादा कहते थे कि हमेशा जरुरत से थोडा ज्यादा ही भरना चाहिए . बरकत रहती है घर में . गेंहूँ मैं पंद्रह क्विन्टल भरता हूँ, जरुरत से दो तीन ज्यादा . इसलिए रेमडीसिविर भी थोड़े ज्यादा ही रखे. आदमी को पूरी सावधानी रखना चाहिए . “

“सावधानी रखना ही तो अच्छी बात है . मास्क और सेनेटाईजर का उपयोग करें तो डरने की कोई बात नहीं है .”  

“तो आप क्या समझ रहे हो हमने इस पर ध्यान नहीं दिया !? भाई साब दस हज़ार मास्क की पेटी ले ली थी हमने और सेनेटाईजर के तीन ड्रम भरे पड़े हैं अभी भी . अपन तो बेफिक्र हैं अब तीसरी लहर आए या चौथी ... कोई टेंशन नहीं .”

“भगवान न करे आपको कुछ हो, लेकिन अगर कुछ हो ही गया तो ...”

“तो आक्सीजन के सिलेंडर भी भरे हैं, तीन बेड भी हैं हाईटेक वाले. और क्या चाहिए ?”

“अब तो बस थोड़े डाक्टर और नर्स भर लेते तो कोई कसर बाकी नहीं रहती.”

“अरे ये तो सोचा ही नहीं मैंने !! अभी देखता हूँ कहीं से मिल जाएँ . सुना है कुछ डाक्टर नर्सों को सस्पेंड किया है सरकार ने “.


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सोमवार, 7 जून 2021

सरकारी तोप से भी बड़ी होती है कोपभवन की तोप


 

            कोपभवन घर के उस स्थान को कहा जाता है जहाँ कोप को खाद-पानी दे कर पुष्पित पल्लवित किया जा सकता है . हमारी कुछ किताबों में, किस्सों वगैरह से यह गलतफहमी जड़ें जमा चुकी है कि कोपभवन केवल स्त्रियों की जरुरत का स्थान है . कुछ जानकार और अनुभवी कोपभवन को स्त्रियों का हथियार तक कह देते हैं . वे यह शायद नहीं जानते कि स्त्रियों को प्रायः हथियार की जरुरत नहीं होती है . उनकी जुबान छूरी से तेज होती है और कभी कभी तलवार से भी अच्छा काम करती है . दरअसल कोपभवन स्त्रियों का अहिंसक असहयोग आन्दोलन है . जिसके जरिये गाँधी जी ने जालिमों को कई बार झुकाया है तो एक पालतू बन्दे को सूर्य नमस्कार के लिए आढ़ा-टेढ़ा करना कौन सा बड़ा काम है . हिम्मत-ए-जानना, मदद-ए-जमाना . कोशिश करने वालों की कानून भी मदद करता है . लोग गबन-घोटाले, यहाँ तक कि हत्या करके भी बाइज्जत बरी हो जाते हैं . कोपभवन कल्चर की एक खास बात यह है कि मामला कितना ही बिगड़ा क्यों न हो एक दो दिन में सुलट जाता है . क्योंकि स्त्रियाँ कुदरती तौर पर समझदार होती हैं . वे कोप उतना ही करती हैं जितने में उनकी सुन्दरता को आंच नहीं आए . इसलिए सुविचारित कोपभवन में आइना नहीं होता है . कोपभवन वास्तु-विशेषज्ञ के अनुसार फलदायी कोपभवन के लिए आग्नेय कोण यानि पूर्व-दक्षिण कोने पर गद्दा लगा बिस्तर होना चाहिए जिसमें साधिका अपने केश खोल कर और यथासंभव फैला कर औंधी पड़ी रह सके . पूर्व दिशा में कोई खिड़की हो तो उसके पट बंद हों और गहरे रंग के परदों से पटे हों, ताकि सूर्य देवता की परछाई भी न पड़े . अच्छा है कि इन दिनों घरों में रौशनदान नहीं होते हैं इससे कोप के दृढ़ निश्चय भाव को लम्बे समय तक स्थिर बनाए रखने में सहायता मिलती है . दृढ़ निश्चय कोप को तोप में बदल देता है . अकबर इलाहाबादी ने कहा है “खींचों न कमानों को, न तलवार निकालो ; जब तोप मुकाबिल हो तो अख़बार निकालो. “ यहाँ जिस तोप का जिक्र है उसे छोटी तोप समझें पाठक, यानी तोप की छोटी बहन ‘साली तोप’ . जो अख़बार में अपना फोटो देख कर पट सकती है  . कोपभवन की तोप सरकारी तोप से भी बड़ी होती है . एक बार सरकारी तोप फुस्स हो सकती है लेकिन कोपभवन की तोप के गोलों में डबल बारूद भरी होती है .

                 कई बार केस बिगड़ जाते हैं और मामला फेमिली कोर्ट तक पहुँच जाता है . इस तरह के मौकों पर मोहल्ले के एक नीलेपीले नाम के वकील साब मददगार बन कर हाजिर होते हैं . हालाँकि महीने में दो तीन बार खुद उन्हें कोपभवन की जरुरत पड़ती है . नीचे श्रीमती नीलेपीले का अपना निजी कोपभवन है लेकिन लेडीज कोपभवन में जाना एडवोकेट नीलेपीले की शान के खिलाफ है . एक दो बार किसी होटल के कमरे में कोपशांति कर आए लेकिन ज़माने का मुंह खुलने लगा . सो घर की दूसरी मंजिल पर छत खाली पड़ी थी, सोच अपना भी एक निजी कोपभवन हो तो कोप का मस्त मजा आ जाए . सो उन्होंने एक बढ़िया सा कमरा तैयार करवाया . सब अंदर ही बनवाया यानी अटैच्ड टॉयलेट, किचन, क्रोकरी, गैस टंकी, मसाले, बियर-विस्की, टीवी, फ्रिज, म्यूजिक सिस्टम वगैरह वगैरह . एक लेंड लाइन फोन भी, क्योंकि कोप काल में प्रोटोकोल के हिसाब से मोबाईल फोन स्विच ऑफ रखना जरुरी है . कोप पीड़ित के लिए कोई चेक-इन चेक-आउट टाइम तो होता नहीं . एक बार गए तो गए . तीसरी मंजिल का कोपभवन हवादार होता है जिससे फेफड़े भांगड़ा करने लगते हैं और छाती जो है छप्पन-सत्तावन इंच के बीच ठुमकने लगती है . कोपभावनों को स्टार देने की न तो परंपरा है न इजाजत, पर नीलेपीले साहब ने अपने इस निर्माण को ‘पांच सितारा नवजीवन कक्ष’ नाम दिया है .

                      पैसा बहुत लग गया है निर्माण में लेकिन किसी पार्टी के भक्त होने के कारण उनके लिए महंगाई स्वीकारना ऐसा है जैसे अपने हाथों, अपने जूते से अपना सर पीटना . कोप के मजे लेने निकले थे अब दुखने लगा . पैसा बड़ी कुत्ती चीज होता है, ज्यादा खर्च हो जाए तो आदमी कटाने दौड़ता है . लेकिन संसार में ऐसी कोई समस्या नहीं जिसका कोई हल नहीं . एडवोकेट नीलेपीले ने एक परचा छपवा कर आसपास के मोहल्लों तक में बंटवा दिए हैं कि ‘लक्जरी कोपभवन उपलब्ध है ‘ . साथ में एक शेर भी छपवाया है की ‘जब तोप मुकाबिल हो तो एक पर्सनल कोपभवन में आइए’ . सी द डिफ़रेंस . मरदाना कोपभवन तीसरी मंजिल पर होता है .  

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*जवाहर चौधरी 

BH26, सुखलिया (भारतमाता मंदिर के पास )

इंदौर- 452 010  


शनिवार, 5 जून 2021

जिन्हें चिंता है हिंदी की



जिन लोगों को चिंता-डायन खाये जा रही है कि हिंदी और हिंदी साहित्य का आगे क्या होगा, उन्हें जान कर शायद अच्छा लगे कि हिंदी में अब लेखकगण गरम कढ़ाही में बूंदी की तरह ‘छन’ रहे हैं . एक घान खपता नहीं है कि दूसरा लाल-पिला हो कर झारे में झूलने लग जाता है . जिधर देखो उधर ज्ञान के लड्डुओं की लुड़कन है, इतनी कि साहित्य प्रेमियों को खिड़की खोलने से पहले इंसूलीन याद आ जाए . था कोई जमाना जब लेखक गूलर के पेड़ पर फूला करते थे . अब अभिमन्यु कविता का व्याकरण जान-समझ कर पैदा हो रहे हैं . पुराने समय की बात और थी साठ साल आदमी हिन्दी-सेवा का संकल्प लेने में खर्च कर देता था . सेवानिवृत के बाद वे इसलिए लिखने लग पड़ते थे कि उन्हें एक तो कलम घिसने की  आदत रही होती है, दूसरे दफ्तर से पार की गई स्टेशनरी का कुछ तो भी कर लेना उनकी जिम्मेदारी थी वरना अपराधबोध होता . साठ वर्ष का तपा-पगा आदमी दो चार साल में पांच-दस बोतल स्याही बर्बाद करके मुक्तिधाम गामी हो जाता है तो हिंदी प्रेमियों का चिंता होना स्वाभाविक है . लेकिन अब ऐसा नहीं है, बच्चा मानो शेर कहता हुआ पैदा होता है . अपने राजकुमार होते तो कहते – ‘आपके पैर बहुत सुन्दर हैं, इन्हें जमीन पर मत रखियेगा वरना दस बीस लड्डू पिचक जाएँगे .

चलिए एक बाबा-लड्डू की बात बताते हैं . वे सुबह पौने चार बजे उठ जाते हैं और फारिग हो कर बाकायदा लम्बी वाक पर निकल जाते हैं . उनकी साहित्य साधना में ‘सुबह का’ मार्निंग वाक बड़ा सीरियस मैटर है . इसलिए कि सुबह के अँधेरे में देसी कुत्ते और देसी गुंडे कब लपक लें पता नहीं . लेकिन बाबा अपनी पर्सनल सेहत के लिए नहीं लेखन की सेहत के लिए कुछ भी करेगा, मतलब करता है . मान लीजिये उन्हें सड़क के किनारे उच्चशिक्षा वाली प्रसिद्द कुतिया सोई पड़ी मिली तो उसे दन्न से पत्थर मार देंगे . पहले लात मारा करते थे लेकिन अब अपनी सरकार है, विकास फटाफट हो रहा है तो अब वे हर कहीं स्वदेशी पत्थर को प्राथमिकता देते हैं . बहरहाल, पत्थर लगते ही कुतिया ‘कविता...आ-कविता...आ’ चिल्लाती दुम दबा कर भाग जाती है . बस बाबा का मैटर तैयार सट्ट से, आज की साहित्य साधना बिंदास नक्की . घर पहुँचते ही कुतिया की आह से उनका गान निकल पड़ेगा जैसे बड़े बड़े वादों के पेट से सॉरी निकल पड़ता है . एक बार उनको मरी गाय दिखाई दे गई . बाबा को झटका लगा, मरी गाय को देखता सोचता खड़ा रहा . आधा घंटे में उनके साहित्यिक बाड़े में मरी गाय विचार बन कर जिन्दा हो गई . अब बाबा दिन भर इसको दुहते रहेंगे और शाम तक पनीर तैयार कर लेंगे . किसी की हो न हो गाय आज बाबा की माता है . बाबा आल सीजन कुछ भी करेगा, गोबर उठाना  पड़े तो उठाएगा . जय माता दी .

लड्डू गोल होता है, धरती गोल होती है, अमीरी गोल होती है, कानून गोल होता है, रूपया गोल होता है, लड्डू के चक्कर में बड़े बड़े गोल होते हैं .  .... तो ... सो जा राजकुमारी सो जा ... चांदी का बंगला ... सोने का जंगला ... सो जा राजकुमारी सो जा . ...

 

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मंगलवार, 1 जून 2021

हरिया को डर लगता है !


 

“ अबे तू कायको किच किच करता है रोज रोज सूबे सूबे !! गरीब हे तो गरीब के माफिक रेना चईए ना तेरे को ! रोज भेजा खाता हे एकी बात के लिए कि नेतेलोग ईमानदार होना चईए ! कायको होना चईए रे ईमानदार ?!  तेरे को मुनीम रखना है क्या अपनी फेक्टरी में ? “ पेलवान हरिया पे सटक लिए ।

“आपी लोग केते हो पेलवान जी कि देस के लिए अच्छा सोचो तो मेने सोचा कि इस्से अच्छी बात ओर क्या हो सकती हे कि नेतेलोग  ईमानदार हों ।“

“ तेरे को क्या लगता हे कि नेतेलोग ईमानदार नि हें !?”

“ मेरे को क्या मालूम ! वो इसको चोर बोलता हे ये उसको ! अब तो लोग डाकू तक बोल रे हें ! “

“ तू मगज़मारी मत कर । तेरे को क्या मतलब ऊंची पोलटिक्स से ? तू वोट दे देना, बस । ... समजा कि नि समजा ?

“ पेलवान कल को अगर इन्ने देस लूटा तो पुलिस हमको पकड़ के अंदर कर देगी कि तुमने गलत आदमी को वोट दिया । ... फिर !?

“ अबे ! ऐसा कहीं होता है !!”

“ होता हे ना .... एक बार मेरा छोरा छोटी सी चोरी कर के भाग गया तो पुलिस ने हमको अंदर कर दिया । बोले छोरा खराब निकला तो ज़िम्मेदारी तुमारी भी हे !! ...डर लगता हे पेलवान ।“


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