कोपभवन घर के उस स्थान को कहा जाता है जहाँ कोप को खाद-पानी दे कर पुष्पित पल्लवित किया जा सकता है . हमारी कुछ किताबों में, किस्सों वगैरह से यह गलतफहमी जड़ें जमा चुकी है कि कोपभवन केवल स्त्रियों की जरुरत का स्थान है . कुछ जानकार और अनुभवी कोपभवन को स्त्रियों का हथियार तक कह देते हैं . वे यह शायद नहीं जानते कि स्त्रियों को प्रायः हथियार की जरुरत नहीं होती है . उनकी जुबान छूरी से तेज होती है और कभी कभी तलवार से भी अच्छा काम करती है . दरअसल कोपभवन स्त्रियों का अहिंसक असहयोग आन्दोलन है . जिसके जरिये गाँधी जी ने जालिमों को कई बार झुकाया है तो एक पालतू बन्दे को सूर्य नमस्कार के लिए आढ़ा-टेढ़ा करना कौन सा बड़ा काम है . हिम्मत-ए-जानना, मदद-ए-जमाना . कोशिश करने वालों की कानून भी मदद करता है . लोग गबन-घोटाले, यहाँ तक कि हत्या करके भी बाइज्जत बरी हो जाते हैं . कोपभवन कल्चर की एक खास बात यह है कि मामला कितना ही बिगड़ा क्यों न हो एक दो दिन में सुलट जाता है . क्योंकि स्त्रियाँ कुदरती तौर पर समझदार होती हैं . वे कोप उतना ही करती हैं जितने में उनकी सुन्दरता को आंच नहीं आए . इसलिए सुविचारित कोपभवन में आइना नहीं होता है . कोपभवन वास्तु-विशेषज्ञ के अनुसार फलदायी कोपभवन के लिए आग्नेय कोण यानि पूर्व-दक्षिण कोने पर गद्दा लगा बिस्तर होना चाहिए जिसमें साधिका अपने केश खोल कर और यथासंभव फैला कर औंधी पड़ी रह सके . पूर्व दिशा में कोई खिड़की हो तो उसके पट बंद हों और गहरे रंग के परदों से पटे हों, ताकि सूर्य देवता की परछाई भी न पड़े . अच्छा है कि इन दिनों घरों में रौशनदान नहीं होते हैं इससे कोप के दृढ़ निश्चय भाव को लम्बे समय तक स्थिर बनाए रखने में सहायता मिलती है . दृढ़ निश्चय कोप को तोप में बदल देता है . अकबर इलाहाबादी ने कहा है “खींचों न कमानों को, न तलवार निकालो ; जब तोप मुकाबिल हो तो अख़बार निकालो. “ यहाँ जिस तोप का जिक्र है उसे छोटी तोप समझें पाठक, यानी तोप की छोटी बहन ‘साली तोप’ . जो अख़बार में अपना फोटो देख कर पट सकती है . कोपभवन की तोप सरकारी तोप से भी बड़ी होती है . एक बार सरकारी तोप फुस्स हो सकती है लेकिन कोपभवन की तोप के गोलों में डबल बारूद भरी होती है .
कई बार केस बिगड़ जाते हैं और मामला
फेमिली कोर्ट तक पहुँच जाता है . इस तरह के मौकों पर मोहल्ले के एक नीलेपीले नाम
के वकील साब मददगार बन कर हाजिर होते हैं . हालाँकि महीने में दो तीन बार खुद
उन्हें कोपभवन की जरुरत पड़ती है . नीचे श्रीमती नीलेपीले का अपना निजी कोपभवन है लेकिन
लेडीज कोपभवन में जाना एडवोकेट नीलेपीले की शान के खिलाफ है . एक दो बार किसी होटल
के कमरे में कोपशांति कर आए लेकिन ज़माने का मुंह खुलने लगा . सो घर की दूसरी मंजिल
पर छत खाली पड़ी थी, सोच अपना भी एक निजी कोपभवन हो तो कोप का मस्त मजा आ जाए . सो
उन्होंने एक बढ़िया सा कमरा तैयार करवाया . सब अंदर ही बनवाया यानी अटैच्ड टॉयलेट,
किचन, क्रोकरी, गैस टंकी, मसाले, बियर-विस्की, टीवी, फ्रिज, म्यूजिक सिस्टम वगैरह
वगैरह . एक लेंड लाइन फोन भी, क्योंकि कोप काल में प्रोटोकोल के हिसाब से मोबाईल
फोन स्विच ऑफ रखना जरुरी है . कोप पीड़ित के लिए कोई चेक-इन चेक-आउट टाइम तो होता
नहीं . एक बार गए तो गए . तीसरी मंजिल का कोपभवन हवादार होता है जिससे फेफड़े
भांगड़ा करने लगते हैं और छाती जो है छप्पन-सत्तावन इंच के बीच ठुमकने लगती है .
कोपभावनों को स्टार देने की न तो परंपरा है न इजाजत, पर नीलेपीले साहब ने अपने इस निर्माण
को ‘पांच सितारा नवजीवन कक्ष’ नाम दिया है .
पैसा बहुत लग गया है निर्माण में लेकिन
किसी पार्टी के भक्त होने के कारण उनके लिए महंगाई स्वीकारना ऐसा है जैसे अपने हाथों,
अपने जूते से अपना सर पीटना . कोप के मजे लेने निकले थे अब दुखने लगा . पैसा बड़ी कुत्ती
चीज होता है, ज्यादा खर्च हो जाए तो आदमी कटाने दौड़ता है . लेकिन संसार में ऐसी
कोई समस्या नहीं जिसका कोई हल नहीं . एडवोकेट नीलेपीले ने एक परचा छपवा कर आसपास
के मोहल्लों तक में बंटवा दिए हैं कि ‘लक्जरी कोपभवन उपलब्ध है ‘ . साथ में एक शेर
भी छपवाया है की ‘जब तोप मुकाबिल हो तो एक पर्सनल कोपभवन में आइए’ . सी द डिफ़रेंस .
मरदाना कोपभवन तीसरी मंजिल पर होता है .
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*जवाहर चौधरी
BH26, सुखलिया (भारतमाता मंदिर के पास )
इंदौर- 452 010
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