शनिवार, 26 जून 2021

भरोसे की भैंस


 

भगोड़ा आदमी सही मायने में भरोसेमंद आदमी होता है . बैंक से लेकर बाज़ार तक सब उस पर भरोसा करते हैं . इसलिए हम भगोड़ा को भगोड़ाजी कहेंगे . उम्मीद है आपको कोई आपत्ति नहीं होगी, और होगी तो होगी आप सभ्यता और संस्कृति से बड़े थोड़ी हो . भरोसा भगोड़ाजी के लिए च्यवनप्राश होता है . भरोसा जितना दमदार होता है भगोड़ाजी उतना मेराथन भागते हैं  . भगोड़ाजी के पीछे बैंक भागती है, बाज़ार भागता है, पुलिस और अगर मिडिया कवर कर रहा हो तो नेता भी भागते हैं . अंत में शरमा शरमी सरकार भी भागती है . सब भागते हैं लेकिन भगोड़े जी किसी को नहीं मिलते हैं . वह सिर्फ मिडिया को मिलते हैं और ‘राष्ट्रहित सबसे ऊपर है’ कह कर फिर भाग जाते हैं . वह खुद को बैंक, बाज़ार और यहाँ तक कि देश का चौकीदार कहते हैं . उनके हाथ में मास्टर-चाबी होती है, वह हर तरह का ताला खोलना जानते  हैं  . वह चिराग का जिन्न हैं  लेकिन चिराग अपनी बगल में दबाये रहते हैं . मौकों पर हुकुम मेरे आका कहते  हुए हाजिर होते हैं और कुछ हजार करोड़ समेट कर भाग जाते हैं . वह उड़ने वाला डायनोसार हैं, लोग बताते हैं देखते देखते उड़ जाते हैं . उन्हें गायब होने का जादू आता है . कई बार पुलिस की आँखों के सामने से गायब हुए हैं . वह सब कुछ कर सकते हैं . सरकार बना सकते हैं और सरकार की योजनायें भी . योजनाओं में वे इस तरह होते हैं कि उनके गायब होते ही योजनायें भी गायब हो जाती हैं .

पिछली बार उन्होंने कहा था कि वे देश की मिट्टी में जिये हैं और इसी में मरेंगे . यह भी कि माँ से बड़ी मातृभूमि होती है तो उनकी बातों का बड़ा असर हुआ था . भरोसे की जड़ें और गहरी हो गयी थीं . बैंकों ने खुद डम्परों से भर भर कर रुपया उनके गोदामों में भर दिया था . आप कह सकते हैं कि इसमें भगोड़ेजी की कोई गलती नहीं है . सरकार ने भी कह रखा है कि बैंकें विवेक को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए निर्णय लें . लेकिन विवेक ने काफी समय हुआ वीआरएस ले लिया था . भगोड़ेजी को यह बात पता चली तो उन्होंने विवेक को अपने यहाँ नौकरी पर रख लिया . अब विवेक भगोड़ेजी का नौकर है और पेंशन बैंक से लेता है .

भगोड़ाजी अभी कहाँ हैं पता नहीं . घोटाले के हजारों करोड़ रुपये कहाँ हैं ये भी किसी को मालूम नहीं . इधर की सरकार उधर की सरकार से पूछती है कि हमारा भगोड़ा क्या तुम्हारे पास है ? जवाब मिलता है कि हमारे पास हमारा नागरिक है तुम्हारा भगोड़ा नहीं . उनसे कहा जाता है कि घोटाले की रकम ही दे दीजिये . वे कहते हैं भूल जाओ रकम को, उसीसे तो नागरिकता और सुरक्षा ली है उसने . जैसे ही यह खबर फैलती है बाज़ार ‘हाय तेरा नास जाए’ टाईप आक्रोश व्यक्त करता है, कुछ छाती कूटते हैं कुछ रोते हैं और कुछ बाबा बंगालियों से काला जादू और छू-छा करवाते हैं . पता चलता है कि भगोड़ा जी उनसे बड़े जादूगर हैं और छू-छा के मामले में बाबाओं के बाप हैं . इधर बैंकों को ज्यादा चिंता नहीं है . क्योंकि बैंक में जनता का पैसा जमा होता है . लोकतंत्र में एक दिन को छोड़ कर जनता को कोई कुछ समझता नहीं है . जनता गाँव की गरीब जवान विधवा है . उस पर सैकड़ों पाबंदियां और हजारों निगाहें हैं . इसके साथ वो भाभी भी सबकी है, जिसका मन जब भी हो होली खेल लेता है . बैंक में पैसा जमा करने के बाद थकी हारी जनता भी सो जाती है . भगोड़ा जी कर्मयोगी हैं, जागते रहते हैं . यही नहीं वे लोरी भी खूब गाते हैं . जो नहीं सोए हैं वो भी सो जाते हैं . अख़बारों में हेड लाइन छपती रहती है, सरकारें आती जाती रहती हैं, और सुना हैं भगोड़ा जी भी आते जाते रहते हैं .

 

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