बुधवार, 27 दिसंबर 2023

वो आधा काम करता है आधा भूल जाता है ।



 



“देखो साहब ऐसा है कि समय जो है एक सरीखा पड़ा नहीं रहता है । वह करवट ले रहा है । करवट करवट होती है, इसमें आगे पीछे नहीं देखा जाता है । करवट हमेशा आगे नहीं ले जाती है, पीछे भी लाती है । हमें समय के साथ चलना होता है । रख सको तो उसकी चाल पर नजर रखो । कब किसकी उड़ कर लग जाए कहा नहीं जा सकता है । जब हवाएं चलती हैं, तूफान सा उठता है तो प्रायः जमीन की धूल उड़ कर गुम्बद पर बैठ जाती है । व्यवस्था है प्रकृति की, सिस्टम भी कह सकते हैं इसे । गहरा सोचने वाले विद्वान् लोग लोकतंत्र भी कह देते हैं कभी कभी । बोध कथा में कहा गया है कि जब तक झाड़ पोंछ नहीं होती वो धूल वहीं  बैठी रहेगी । और सिस्टम में झाड़ पोंछ कोई रोज का काम थोड़ी है, कोई निमित्त हो, कोई मुहीम चले तभी साफ सफाई की जाती है । लेकिन सफाई होती जरुर है । जैसे दीवाली के समय हर आदमी सफाई कर्मी हो जाता है तब कहीं जा कर उजाला एक पर्व बनता है ।  तब तक इंतजार करो, आयेंगे अच्छे दिन भी । “ जगतराम बोले ।

भगतराम जरा व्यावहारिक हैं, वे समझाते हैं -  “भाई साहब खांमखां चिंता का टोकरा सर पर उठाए रहते हैं आप ! आपका क्या लेना देना सरकार से या लोकतंत्र से ! हवाओं से या तूफ़ान से !! वोट देना था दे दिया, समझो हेडेक ख़तम, आराम से बैठो । अब ब्लड प्रेशर की गोली लो और लगो अपने काम धंधे से । इसके आलावा कोई चारा नहीं  है समझदार आदमी के पास । आपको राजधानी की तरफ देखने की जरुरत ही क्या है । जिन्हें चुना गया है वो अपना का करेंगे आप अपना करो मजे में । राजनीति है भाई कोई मामूली चीज नहीं । समझो कि इन्सान के बस की तो बात ही नहीं है , देवताओं का काम है ये । पढ़े सुने नहीं हो क्या कि कितनी राजनीति करना पड़ती थी उन्हें देवता बने रहने के लिए । कितना गिरना उठना पड़ता है हम आप क्या जानें । आम आदमी इसमें मगजमारी करने लगेगा तो अपनी रोजी रोटी ख़राब कर लेगा । लोग कमाते तो खूब हैं  लेकिन जाता किधर है ये नहीं पता पड़ता हैं । सोचना है तो इस पर सोचो । कमाई का पचास साठ परसेंट तो टेक्स में देना पड़ता है । विश्वास न हो तो जोड़ लेना किसी दिन । माचिस की डिबिया जैसी मामूली चीज खरीदते हो उस तक में टेक्स देना होता है । पिछले साल आपने स्कूटर खरीदा है तो अच्छा ख़ासा टेक्स दिया है । अब उसे चलाने का, मतलब ड्राइविंग लायसेंस, सड़क पर चलने का रोड़ टेक्स, पेट्रोल का टेक्स, टूटफूट यानी पुर्जों पर टेक्स, पार्किंग शुल्क, दायें बाएं मुड़ गए तो तरह तरह के फ़ाईन ! तनखा पर इनकम टेक्स, रोटी, कपड़ा, दवाई, मिठाई कुछ भी लिया तो सब पर खासा टेक्स है । लेने वाला श्री भगवान । बड़ी जिम्मेदारी और महंगा काम है एक ईमानदार नागरिक होना । पहले जिल्लेसुभानी को चुनों, फिर डायरेक्ट इनडायरेक्ट उनके गाड़ी घोड़े, सूट शेरवानी, जेकेट जूते सबकी व्यवस्था करो । देखा जाये तो इतना सब देने वाला नागरिक किसी शहंशाह से कम नहीं है । किन्तु वोट समर्पण के बाद कौन मानता है उसे  ! मेरे तो गिरिधर गोपाल, दूसरो न कोई ; जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई । खुद ही मान लो, कोई खुशफहमी तो जरुरी है जीने के लिए । “

“ठीक है जी, मान लेते हैं । कहने वाले कहते हैं कि भगवान सब देखता है । उसकी मर्जी से ही पत्ता खड़कता है । वो चाहे तो रंक को राजा बना दे या राजा को रंक ।  देखिये ना वो आधा काम करता है आधा भूल जाता है ।  चलिए कोई बात नहीं, यही मान लेते हैं कि भगवान के घर देर है पर अंधेर नहीं । ... किस किस को याद कीजिये, किस किस को रोइए, आराम बड़ी चीज है, मुंह ढंक कर सोइये । मुंह ढँक कर सोने का मौसम है ।  “

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हम इन्सल्ट न्यू इयर मना लेंगे



“देखो यार राम परसाद अभी हमने सोचा नहीं है कि नया साल कैसे मनावें । पिछली बार जो तुम्हारे साथ मनाया था उसे आज तक हम भूले नहीं हैं । हालाँकि हमने कोशिश बहुत की कि भूल जाएँ पर सफल नहीं हुए । गलत मत समझ लेना, हमारा मतलब है कि तुमने खूब इंज्वॉय किया यह हम नहीं भूल पाते हैं । इंज्वॉय तो हमने भी किया था, जब तक कि बिल नहीं देना पड़ा था जीएसटी के साथ । नए साल की ख़ुशी में तुम पर्स घर पर ही भूल आये थे ... याद है ना ? उस दिन लगा कि कमबख्त हमारी यादाश्त अच्छी क्यों है । हम मूरख हैं बैठे बिठाये हेप्पी न्यू ईयर हो गया हमारा । वो तो अच्छा हुआ घर में किसी को पता नहीं चला वरना किस किस को बताते कि हम पर क्या गुजरी नए साल में । ... चलो वो बात तो आई गयी हुई । वो क्या है ना अपने यहाँ रिवाज है कि नया साल आता है तो सब लोग अपना भविष्यफल पढ़ते हैं ।  कल हमने भी पढ़ लिया । हमारे लिए साफ लिखा था कि पिछली गलतियाँ नहीं दोहराएँ । पीने-खाने के मामले में सावधान रहें और मुफ्तखोर यार दोस्तों से बच कर रहें । सो इस बार मजबूरी है राम परसाद । अव्वल तो हम मना ही कर रहे हैं सबको, लेकिन नहीं माने तो इस बार पूरी याद से हम पर्स भूलने वाले हैं । क्या कहते हो ?”

“हम पर्स भूल आये थे क्या !? अच्छा !!” राम परसाद बोले ।

“वैसे देख लो इस बार चौतरफा माहौल ये है कि एक जनवरी हमारा नया साल नहीं है । दुनिया का हो तो हो उससे हमको क्या है । दुनिया से हमें क्या लेना देना, मेड इन चाइना, मेड इन जापान अलग बात है । ये इकोनामिक्स का मामला है संस्कृति का नहीं । हम दुनिया के साथ नहीं देस के साथ रहेंगे, संस्कृति बड़ी चीज है भाई । तो राम परसाद जान लेओ कि इस बार नया साल सेलिब्रेट नहीं करने वाले हैं । हमारा तो तुम्हारे लिए भी यही सुझाव है कि नए साल के नाम पर कुछ मत मनाओ । पीयो-खाओ मजे में और लोगों बताओ कि ये जो आ रहा है ना नया साल वो हमारा नहीं है । हम इसे नहीं मानते हैं, और इसकी बेइज्जती के लिए पी-खा रहे हैं । लोग भले ही हेप्पी न्यू इयर मना रहे हों पर हम इन्सल्ट न्यू इयर मना लेंगे । दूसरो की इन्सल्ट करने में कितना आनंद आता है यह टीवी के लोकप्रिय सीरियलों से सबको पता है । तो राम परसाद, करो यार तुम भी नए साल की इन्सल्ट का जश्न । तो बताओ किधर आ जाएँ ? आखिर तुम्हारी बात तो रखना ही पड़ेगी, लंगोटिया हो ना हमारे ।  और फिर लिए दिए का हिसाब यहीं होता है संसार में । अपने दिए को ले लेना तो व्यवहार है समाज का ।  तुम तो जानते हो कोई प्रेम से बुलाये तो हम मना नहीं कर पाते हैं ।“

 राम परसाद बोले – “ अरे यार हम तो वैसे ही पूछ रहे थे । दरअसल इस बार हम भी राष्ट्रवादी बन गए हैं । नया साल नहीं मनाने वाले हैं । चिकन अलग चीज है, अंडे वाला केक खा कर हेप्पी न्यू इयर बोल कर अपने को भ्रष्ट थोड़ी करेंगे । किसी को पता पड़ गया तो कैसे शुद्धिकरण हो जाएगा पता नहीं । हमारे मोहल्ले में भजन संध्या रखी है और भंडारा भी है । इधर ही आ जाओ, भजन-भंडारा हो जायेगा और तुम्हारा लेन देन भी बराबर हो जाएगा ।“ ­                                    ----X ----- 

बुधवार, 13 दिसंबर 2023

तुम बस चलते रहो छोटू जी


 


छोटू जी छोटे हैं और बड़कू जी बड़े । बड़कू जी आगे चल रहे हैं और छोटू जी पीछे पीछे । दोनों में मित्रभाव कभी कभी सर उठा लेता है लेकिन जल्दी ही वे भूल सुधार लेते हैं । वे  एक साथ भी चल सकते हैं लेकिन अनुशासन से बंधे हुए हैं । दोनों दिल्ली जाने के लिए निकले हुए हैं ।  “तुम्हें पता है दिल्ली कहाँ है ?” अचानक छोटूजी ने बड़कूजी से पूछा ।

“ इसमें पता करने की क्या बात है । दिल्ली दिल्ली में ही होगी और कहाँ जाएगी !!” बड़कू ने अपने बड़प्पन के साथ कहा ।

“मेरा मतलब है बड़कूजी कि हम लोग दिल्ली जा रहे हैं तो हमें ठीक से पता होना चाहिए कि दिल्ली कहाँ है । इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि हमारी दिशा गलत तो नहीं है । “

“दिशा विशा की चिंता छोड़ो छोटू जी । बस इतना याद रखो कि हमारी दिशा सुनिश्चित है । ... मात्र दिल्ली के लिए हम अपनी दिशा नहीं बदल सकते हैं ।“

“मैंने तो समान्य सी बात पूछी है ।  दिल्ली पहुँचने के लिए हमें दिल्ली की दिशा में ही तो चलना होगा ! वरना पहुंचेंगे कैसे ?!”

“नेतृत्व बड़ी चीज होती है छोटू जी । नेतृत्व पर भरोसा रखो । जरूरत पड़ी तो वे हमारी दिशा में कई दिल्लियां बनाते चलेंगे । हमें केवल चलने और चलते रहने के निर्देश हैं । इसलिए चलते चलो, चलते चलो ।“ बड़कूजी ने अपना अनुभव रखा ।

“फिर भी मैं सोचता हूँ कि एक बार किसी से दिल्ली का पता पूछ लेने में कोई हर्ज नहीं है ।“ छोटू को समाधान चाहिए था ।

“छोटू जी तुम सोचते हो ! ... अभी तक !! ... इसका मतलब यह है कि तुम्हारा संस्कार नहीं  हुआ ठीक से । सोचना बंद करो तुरंत ...  वरना थर्ड डिग्री संस्कार के लिए तैयार रहो ... और हाँ एक बात साफ समझ लो, हमारी दिल्ली इतिहास में है । हमें इतिहास में जाना पड़ेगा । मानो कि इतिहास ही हमारी दिशा है ।“

“कुछ समझा नहीं ! हमें इतिहास में क्यों जाना पड़ेगा बड़कूजी !!?”

“क्योंकि हम इतिहास में नहीं हैं और लोग बार बार हमें इतिहास में ढूंढते हैं । आधुनिक शिक्षा ने लोगों की समझ और सोच को विकृत कर रखा है । जो इतिहास में नहीं हैं उन्हें वर्तमान में भी नकार रहे हैं । ऐसे लोगों को गोली मार कर हे-राम कर देना चाहिए । “

“लेकिन जब हम इतिहास में हैं ही नहीं तो इतिहास में जाएंगे कैसे ?!!”

“इतिहास में सेंध मार कर । हमें इतिहास बदलना होगा और अपने लिए जगह बनानी होगी । याद रखो, जगह बनाने से ही बनती है । नेतृत्व पर विश्वास रखो और तुम बस चलते रहो ।“

“मैं चल तो रहा हूँ बड़कू जी । लेकिन पथ समझ में नहीं आ रहा है ..।“

“समझने की कोशिश करोगे तो चलोगे कैसे छोटू जी !! ... लक्ष्य चलने से मिलता है, समझने के प्रयास से केवल भ्रम पैदा होता है । ... चलो कि जैसे बिना गाड़ीवान के बैल चलते रहते हैं गाड़ी में ।“

“बड़कू जी तुम्हें विश्वास है दिल्ली आ जाएगी ?”

“दिल्ली नहीं आएगी छोटू जी ... हमें दिल्ली चल कर जाना होगा । तुम बस चलते रहो ।“

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चिड़ियाघर में भालू से एक मिडिया बाईट


 



जिसके हाथ में चैनल का माइक हो उसके पास किसी के भी मुंह में घुस जाने का नेशनल परमिट होता है । माइक आगे करके वे इतना बोल दें कि खुल जा सिम सिम ... बस काफी है । बंद मुंह खुल जाता है । प्रिंस सीनियर बेरोजगार है, अभी अभी उसने माइक पकड़ा है और चैनल ने प्रेक्टिस के लिए उसे राष्ट्रीय चिड़ियाघर में भेजा है । उसे कुछ सीखना हैं, जानवरों से बात करना है ।

सबसे पहले भालू का मुंह सामने आया । खुलते ही उसने आपत्ति जताई कि ये चिड़ियाघर क्यों है ! इसमें ज्यादातर जानवर उड़ने वाले नहीं हैं । चाहे तो जन्तुवार-गणना करवा ले सरकार । थोड़े से तोते कबूतरों के कारण पूरा इलाका चिड़ियाघर कैसे हो गया ।  इसका नाम बदलना चाहिए । लोगों के सामने चलेफिरें, उनका मनोरंजन करें हम और नाम चिड़ियाघर !! सरकार को इस मामले को संवेदनशील मुद्दों में शामिल करना चाहिए ताकि सख्ती के साथ कदम उठाया जा सके ।

“अगर नाम नहीं बदला तो आप लोग आन्दोलन करोगे क्या ?” प्रिंस ने पूछा ।

“लगता है तुम नए नए माइक पकड़े हो । जानवर आन्दोलन नहीं करते हैं , वे सिर्फ मांग रखते हैं । सिस्टम में मांग रखने का अधिकार सबको है, जानवरों को भी । तुम देख लो यहाँ नब्बे प्रतिशत बिना पंख वाले हैं ।“

“अगर आपकी मांग नहीं मानी गयी तो ?”

“दरअसल हमारी मांग मांग नहीं एक आइडिया है विकास का । सरकार का ध्यान खींचना चाहते हैं । आखिर पशु संग्रहालय का भी योगदान होना चाहिए इतिहास के नए संस्करण में ।  हमें ख़ुशी होगी ।“

“आपको ख़ुशी होती है !? यहाँ कैद हो, पिंजरों में रहते हो, पता नहीं खाने को ठीक से मिलता है या नहीं !”

“हम खुश हैं । कैद हुए तो क्या हुआ मुफ्त का राशन मिल रहा है । काम का कोई बर्डन नहीं है । मजे में खाते रहो और पड़े रहो । बस जिन्दा रहो ताकि वक्त जरुरत देने वालों के काम आ सको ।“

“और ये पिंजरे ? इसमें बंद कर देते होंगे आप लोगों को ?”

“पिंजरे नहीं ये व्यवस्था है, घर हैं हमारे । मुफ्त मिले तो पिंजरे भी सुख देते हैं । मजा ही मजा है । “

“ऐसा पता चला है कि ये पिंजरे नहीं विचारधारा है कोई । जिसमें आपको कैद किया जा रहा है । धीरे धीरे आदत पड़ जाएगी आप लोगों को । फिर इसके बिना रह नहीं सकोगे ?” प्रिंस ने गहरा सवाल किया ।

“जानवरों की कोई विचारधारा नहीं सिर्फ भूख होती है । दिन में पेट भरने की व्यवस्था हो जाए तो और कुछ नहीं चाहिए । रात में मस्त सो जाओ मजे में । “

“और देश ?”

“गरीबों के लिए क्या देश और क्या दुनिया । क्या जाति और क्या धरम । जो भी है बस राशन है । गेट खोल भी दो तो भी हम बाहर नहीं जाने वाले हैं । हम अमीरों, बड़े लोगों के लिए हैं । वे माई बाप, प्रभु, भगवान हमारे । वे आते हैं हमें देखते हैं, कुछ खाने को देते हैं । और हमें क्या चाहिए देश से या सरकार से । हमारा भी फर्ज बनता है कि जब जब भी मौका मिले उनके काम आ जाएँ । वो हमारे लिए हों न हों हम उनके लिए हैं ।“

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मंगलवार, 28 नवंबर 2023

फंस गए फजीयत में फूफाजी

 




बड़े दिनों के बाद डब्बू का फोन है, बड़े साले साहब का मंझला बेटा ।  बोला – “हेल्लो फूफाजी, कैसे हैं आप ? तबियत तो ठीक है न ?”

“हाँ डब्बू, छत पर धूप ले रहे हैं, और तबियत भी ठीक ही है । बस जोड़ों में दर्द रहता है । गठिया बताया है डाक्टर ने । लेकिन तुम्हारी बुआ को लगता है कि नौटंकी है । कहती हैं कुछ काम घाम नहीं करता हूँ इसलिए जोड़ों में सूजन चढ़ गयी है । अब बताओ कल जबरदस्ती छत की झाड़ू लगवाई । बुआ तो खुश है पर घुठने और कमर नाराज चल रहे हैं । समझ में नहीं आता किसकी सुनूँ, डाक्टर की या बुआ की । डाक्टर तो दस मिनिट देखता है, इनके पंजे में तो चौबीस घंटे रहना पड़ता है । आज बिलकुल चला नहीं जा रहा है और ये सामने झोला पटक गयी हैं कि बाज़ार जाओ और सब्जी भाजी ले आओ । समझ में नहीं आ रहा है कि इलाज किसका करावाऊँ । पड़ौस में अगरवाल साहब रहते हैं । बोलते हैं गठिया का ही करवा लो, ठीक हो जाने के चांस भी रहते हैं । अभी जाऊंगा सब्जी लेने लेकिन मुझे पता है कि मेरी लाई सब्जी इनको पसंद नहीं आएगी । बहाना चाहिए इन्हें । डांट डपट कर पूरी खर्च हो लें तब ही औरत से इन्सान बन पाती हैं । तुम तो जानते हो इनकी दिमागी ताकत । कहती है हमारी अम्मा ने बचपन में बादाम खूब खिलाई है । अब देखो भाई किया धरा अम्मा का भुगत हम रहे हैं । दिमाग इनका पजल गेम से ज्यादा जटिल है । एक तरफ से मिलाओ तो दूसरी तरफ से बिगड़ जाता है । हालत ये है कि न पूरे पूरे कमजोर हो पाते हैं न ही ताकतवर । न जीने में न मरने में, अनारकली बना के रखा है हमें । दूध से सारी मलाई खेंच कर घी बना लेती हैं । तीन बार एक चम्मच घी मांगों तो एक बार आधा चम्मच देती हैं । सारा घी भगवान के दीपक को जाता है । थोड़े से घी के चक्कर में भगवान भी तुम्हारी बुआ की तरफ हैं । कभी हिम्मत की भी कि आज जरा डपट दें उनको, तो बुखार पहले चढ़ जाता है । मामला उलट जाता है , दिन में तीन बार उनकी डांट के साथ पेरासेटामाल खाना पड़ जाती है । अब तुम तो जानते हो कि पांडव के साथ भगवान थे तो सौ भाई और बड़ी सेना भी हार गयी थी । इधर हम तो अकेले हैं । रोज गीता पढ़ते हैं लेकिन युद्ध के लिए जरुरी हिम्मत पैदा नहीं हो पाती है । अब सोच रहे हैं कि घी का दिया हम भी लगाया करें । लेकिन किचन में घी पता नहीं कहाँ रखा रहता है कि ढूंढते रहो मिलता ही नहीं । एक बार घी ढूंढते रंगे हाथ पकड़ लिया तो तीन दिनों तक जमानत नहीं मिली । थाने में होते तो तीन घंटे में मिल जाती । पिछले दिनों सरकार ने महिलाओं के पक्ष में बिल पास करके उन्हें और ताकतवर बना दिया । इधर राज्य सरकार रिश्तेदारी बना रही है सो अलग । अब स्थिति देखो, भगवान इनके  सरकारें भी इनकी ! ऐसे में एक बेचारा फूफा क्या कर सकता है सिवा गरल पीने के । ... तुम बताओ , तुमने कैसे फोन किया ?”

“कुछ नहीं फूफाजी । बस आपके हालचाल पूछना थे । “

“डब्बू एक तुम्हीं हो हमारी ससुराल में जो हाल पूछ लेते हो । बाकी तो सारे मजे लेने के लिए फोन करते हैं । जवाई हैं सो अपनी दुर्गति बताने में लाज आती है । इसी का फायदा उठाया जाता है । बोलें भी तो क्या फायदा, उधर से कोई सहायता तो मिलना नहीं है । उल्टा अगर तुम्हारी बुआ जान गयीं कि क्या कुछ बोला है तो उनके पास अपनी ईडी है पक्के बाँस की । तुम्हारे भाई चिंटू की शादी में जो हम रूठे थे तो आज बता दें तुमको, बुआ का ही आदेश था । बोली थीं ससुराल में शादी है थोडा मुंह फुला कर बैठना तो नेग एक सौ एक मिलेगा वरना ग्यारह में निबटा देंगे । बोलीं मैं खूब जानती हूँ अपनी भौजाइयों को, एक से एक छंटी हुई हैं । तीन चार साल हुए सावन में मैके गयीं थीं । बुलवा लिया था तुम्हारे पापा ने । इधर क्या तो वक्त गुजरा बिंदास । हमारे भी कोपलें फूट आयीं, रेगिस्तान में हरियाली छाई, कुछ फूल भी खिले । लेकिन बादाम खाया दिमाग हैं न बुआ का । अपनी भौजाइयों से रूठ आयीं किसी बात पर । अब भाइयों की हिम्मत नहीं कि दोबारा बुला लें । हरियाली फिर रेत रेत हो गयी और आज तक एक बीज अंकुरित नहीं हुआ । अब क्या कहें, हम तो किसी से कुछ कहते नहीं । तुम चिंता नहीं करना बेटा । गब्बर से हमें एक ही आदमी बचा सकता है खुद गब्बर । ... अब फोन रखें कि कुछ और सुनोगे ?”

“अब रख ही दो फूफाजी । हम नीचे कमरे से बोल रहे हैं, फोन स्पीकर पर है और बुआ पास ही बैठी हैं ।“

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मकई राम का भुट्टा हो जाना






मकई राम की कथा सुनाने से पहले आपको बता दूँ कि मैं ऊंच-नीच नहीं मानता हूँ । जात-पांत भी नहीं । यही बात मिठाई पर भी लागू होती है । जो मीठा है वो मिठाई है मेरे लिए । और जो मिठाई है उसका दिल से स्वागत है चाहे वो सोन पापड़ी ही क्यों न हो । हालाँकि इनदिनों सोन पापड़ी बड़ी बदनाम चल रही है । कोई घर में घुसने नहीं दे रहा बेचारी को ।  अगर किसी तरह घुस गयी तो जल्द से जल्द निकाल बाहर करने की जुगत में लग जाता है । कोई कितने ही प्यार से लेकर आये लेने वाले के कलेजे से धुंवा उठता ही है । दोस्त हो, रिश्तेदार हो या कोई प्रिय पात्र, सोन पापड़ी सभी के किये धरे पर पानी फेर देती है ।

बीस वर्षों से दफ्तर में त्रियुगी नारायण ‘हाजिर-सेवक’ लगे हुए हैं । हाजिर-सेवक वही जिसको चालू भाषा में लोग चपरासी कहते हैं । पहले तो दिक्कत थी, खुद उन्हें भी अच्छा नहीं लगता था । लेकिन वेतनमान बदले तो अच्छी तनख्वाह हाथ लगने लगी । तब समझ में आया कि जमाना पद को नहीं पैसे को देख कर इज्जत देता है । उनके पास भी बार त्यौहार सोन पापड़ी घर आने लगी । और वे भी मौका अवसर देख कर दूसरों को देने लगे ।

इसी बीच दफ्तर में मकई राम अफसर हो कर आए । हप्ता पंद्रह दिन नरम रहे लेकिन जैसे जैसे हवा लगी भुट्टा होने लगे । लोग चपेट में आये तो दफ्तर में सबको आश्चर्य हुआ । कुछ को गुस्सा भी आया । मरने वाले का हाथ पकड़ा जा सकता है , बोलने वाले की जुबान नहीं । आपसी बातचीत में साथी भरोसे का हो तो मकई राम के लिए गलियां भी चलने लगीं । लेकिन त्रियुगी नारायण इस मामले में अलग धारणा रखते थे । उनका कहना है कि मकई राम का कोई दोष नहीं है । दोष दफ्तर की हवा का है । किसी किसी को ये हवा सूट नहीं करती है । यहाँ की हवा की तासीर ऐसी है कि अच्छे भले आदमी का दिमाग खराब हो जाता है । त्रियुगी की इस धारणा का एक कारण यह भी है कि मकई राम उन्हें जब भी कोई काम कहते हैं ‘जी’ लगा कर कहते हैं । जैसे – “त्रियुगी नारायण जी, ये फ़ाइल गुप्ता को दे आओ और कह देना शाम तक कम्प्लीट कर दें ।“  त्रियुगी ने इस ‘जी’ को दिल से लगा किया है । गरीब का दिल हमेशा बड़ा होता है, मकई राम को भगवान का अवतार मानने में उन्हें अभी भी संकोच नहीं है ।

दिवाली आ गयी । दफ्तर ने तय किया कि कोई मकई राम को घास नहीं डालेगा । अगर मज़बूरी गले पड़ ही गयी हो तो एक ‘हेप्पी दिवाली’ फैंक कर आगे बढ़ जाया जाये । इस मोर्चे में त्रियुगी नारायण शामिल नहीं हुए । उन्होंने समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन जमाना अब अच्छे लोगों की बात कान पर कहाँ रखता है । दफ्तात में जिसके भी सामने मौका आया ‘टच एंड गो’ फार्मूले के तहत हेप्पी दिवाली बोल कर रॉकेट हो लिया ।

जैसा कि बताया है त्रियुगी नारायण का दिल बड़ा है । उसने देखा कि मकई राम के लिए यह समय चुनौती पूर्ण है । बात को सम्हालने के लिए उसे ही कुछ करना चाहिए । अगली सुबह वह सोन पापड़ी का पेकेट ले कर मकई राम के घर पहुँच गए । मकई राम शायद दफ्तर वालों की बेरुखी को महसूस किये बैठे थे । ऐसे में सोन पापड़ी के पेकेट को देख कर सुतली बम की तरह फट गए । उन्होंने पेकेट हाथ में नहीं लिया उस पर थप्पड़ की तरह मार दिया । पेकेट टूट गया और सोन पापड़ी अपने बिखराव के साथ दूर जा गिरी । त्रियुगी नारायण इस घटना के लिए तैयार नहीं थे । तभी मकई राम कड़के – “ ये क्या त्रियुगी !! तुम सोन पापड़ी ले कर आ गए ! क्या तुम्हें पता नहीं कि बड़े अधिकारियों के यहाँ मातहतों को सोन पापड़ी ले कर नहीं जाना चाहिए ! अपमान करते हो !!” त्रियुगी नारायण के लिए खून का घूंट था । चुपचाप चले आए ।

दीवारों के कान होते ही हैं । दूसरे दिन बात दफ्तर में पहुँच गयी । आखिर साथियों ने त्रियुगी नारायण को घेरा । ये तुम्हारी बेइज्जती नहीं है हम सबका अपमान है । धूल में मिला आये सारी इज्जत कर्मचारियों की ! त्रियुगी भला आदमी तो है ही, बोला – “ हमारा या हम लोगों का कोई अपमान नहीं हुआ है । दरअसल अपमान तो सोन पापड़ी का हुआ है । हाँ यह बात जरुर है कि मकई राम जी को सोन पापड़ी के साथ ऐसा नहीं करना चाहिए । वो तो अच्छा है कि सोन पापड़ी में जान नहीं होती है वरना आत्महत्या कर लेती ।“ सारे लोग उनका मुंह देखते रह गए । किस मिटटी का बना है यार ये आदमी !!  बोले – भईया त्रियुगी, मरने वरने की बात मत करो ... रुलाओगे क्या ।“

 

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शनिवार, 14 अक्तूबर 2023

बायीं आँख की फड़कन और दही शकर का शगुन


 


अभी स्नान आदि करके तैयार हुए ही थे कि हरगोविंद प्रसाद ‘चकोर’ को पत्नी ने ‘सुप्रभात’ कह दिया । उन्होंने चौंक कर देखा तो अर्धांगिनी मुस्करा भी दीं । चकोर जी ने अपनी नब्ज टटोली । नब्ज की तरफ से एनओसी मिली तो उन्होंने अपने को समेट कर  पूछा – “क्या बात है देवी ! आज करवा चौथ है क्या ?”

“अब साल में दो दो करवा चौथ की उम्मीद तो रखो मत मुझसे । शाम को दोस्तों के साथ बैठकी जमाना छोड़ दोगे तो उम्र वैसे ही लम्बी हो जाएगी तुम्हारी ।“ देवी ने मौलिकता की और कदम बढ़ते हुए कहा ।

“बैठकी जमाते हैं पर पीते नहीं हैं ... मेरा मतलब है कि मैं नहीं पीता हूँ । वो क्या है ना ये लोग कविता सुन लेते हैं । आदत पड़ गयी है उन्हें पीते समय कविता सुनने की और मुझे सुनाने की । तुम तो जानती हो आजकल कविता सुनने वाले मिलते कहाँ हैं ।“ चकोर ने सफाई दी ।

“क्यों ! तुम्हारे वो ‘पुलकित’ जी तो खूब सुनाते हैं ।“

“पगली वो कचोरी समोसा खिला खिला कर सुनाते हैं । सातवाँ वेतनमान ले रहें हैं, उनकी बात अलग है । ... तुम तो अपनी बताओ ... आज सुप्रभात कैसे !!”

“मेरी बायीं आँख फड़क रही है । देख लेना कुछ अच्छा होने वाला है आज ।“ वे फिर मुस्करायीं ।

“क्या अच्छा हो सकता है । दो चार सुनने वाले मिल जाएँ बस । कोई छपा वापा तो पड़ेगा नहीं कि फ्रंट पेज पर बिना कविता छप जाएँ और दन्न से फेमस हो जाएँ और चर्चा में भी आ जाएँ ।“

“मैं दही शक्कर लाती हूँ । शगुन पक्का हो जायेगा । और हाँ ... दोपहर में पूरणपोली खा लोगे ?”

“ !! .. हाँ हाँ, क्यों नहीं ... दिन अच्छा है, तुम्हारी बायीं आँख फड़क रही है साथ में सुप्रभात भी है ... खा लूँगा ।“

“शाम को पिच्चर भी चलेंगे ।“

“शाम तक फड़केगी क्या ! तब तक तो सुप्रभात भी एक्सपायर हो चुकेगा ।“

“लौटते हुए धमाका सेल भी होते आएंगे । बड़ा डिस्काउंट चल रहा है ।“ बिना कुछ सुने वे बोलीं ।

“मेरा दिल धड़क रहा है ....”

“रुको जरा अभी ... पहले दही शकर खिला देने दो ।“

उन्होंने दही शकर ला कर चकोर के मुंह में टपका दिया ।

“चकोर जी हैं क्या ?” बाहर से आवाज आई । देखा ब्रीफकेस के साथ एक निहायत शरीफ, काटन कुरताधारी पांच फूटी दैन्यमूर्ति सामने है । हाथ जोड़ते हुए वे बोले – “चकोर जी से मिलना है ।“

“जी मैं ही हरगोविंद प्रसाद चकोर हूँ ।  कहिये ?”

“बड़ी ख़ुशी हुई आपके दर्शन हुए । मैं मेट्रो साहित्य सेवी संस्थान का अध्यक्ष हूँ । प्रवीण पल्लव, नाम तो सुना ही होगा ?“

“आइये ... अन्दर आइये । कहिये कैसे आना हुआ ?”

“आपका बड़ा नाम है जी साहित्य की दुनिया में । लोग भले ही नहीं जानते हों लेकिन मेट्रो साहित्य सेवी संस्थान को सब पता रहता है कि कौन सच्चा सेवी सक्रियता से काम कर रहा है । ... दरअसल आपकी कविताओं को कोर्स में लगवाना चाहते हैं हम ।“

“अरे साहब ! किन शब्दों में धन्यवाद दूँ आपको । जरुर लगइये । क्या सेवा करूँ आपकी ... चाय काफ़ी कुछ ...”

“कुछ नहीं सर ... पहले आपको मेट्रो साहित्य सेवी संस्थान की और से सम्मानित किया जाएगा । निवेदन है कि आप अपनी स्वीकृति प्रदान करें प्लीज ।“

“अरे इसमें क्या निवेदन ... स्वीकृति है जी ।“

“जी बहुत अच्छा । पहले आपको मेट्रो साहित्य सेवी संस्थान की सदस्यता लेना होगी । मात्र ग्यारह सौ ... केवल ।“

“ग्यारह सौ ! ... चलिए ठीक है ।“  रुपये ले कर पल्लवी जी ने रसीद काटी ।

“सम्मान कब करोगे ?” चकोर जी से रहा नहीं गया ।

“अभी ... अभी करेंगे । हाथोहाथ । थोड़ा सा जल मंगवाइये ।“

चकोरी जी  जल ले कर आयीं । पल्लव जी ने ब्रीफकेस से कंकू चावल निकाल कर चकोर जी को तिलक किया । चकोर कुछ समझ पाते इसके पहले उनके हाथ में श्रीफल था, गले में गोटा लगा दुपट्टा और पूर्व हस्ताक्षरित एक प्रमाणपत्र इस निर्देश के साथ कि अपना नाम भर लीजियेगा । बोले – “बधाई हो आप सम्मानित हो चुके हैं । मोबाईल निकालिए और कुछ फोटो ले लीजिये । आपके काम आएंगे ।“

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मंगलवार, 29 अगस्त 2023

डेवलपमेंट इसी को कहते हैं





 


         “विकास के बम चौतरफा फूट रहे हैं और आप जनाब अभी ‘भारत एक खोज’ पढ़ने में लगे हैं !!” अंदाज उनका ऐसा था मानों उन्होंने हमें कालर से रंगेहाथों पकड़ लिया । हम खिसियानी हँसी के साथ पेश होने के आलावा और क्या कर सकते थे । वे जारी रहे – नेहरू नेहरू सुनाने का यह मतलब नहीं कि लोग नेहरू दर्शन में घुस जाएँ । समय-काल का ध्यान रखना चाहिए, खासकर उनको जो जनता केटेगिरी के हैं । देखो आगे, चलो पीछे । यही नीति है, यही मन्त्र है, इसी में नया विकास छुपा हुआ है । देश को प्रेम करने के लिए यह सब करना आना चाहिए । याद रखो यह कला है, सबसे बड़ी है । कला से प्रेम यानी देश से प्रेम ।

          हम एक नयी व्यवस्था देने जा रहे हैं । लोगों को जान कर खुश होना पड़ेगा कि नये लोकतंत्र में विपक्ष नहीं होगा । क्या जरुरत है विपक्ष की । बिना मतलब की रस्साकशी । अभी जनता विपक्ष को मरने नहीं दे रही है और हम जीने नहीं दे रहे हैं । दोनों का काम हल्का हो जायेगा । जरुरी हुआ तो संसद की शोभा के लिए विपक्ष की कुर्सियों पर पुतले रख देंगे, चीन में सस्ते बनते हैं । बहस की जगह भजन कीर्तन चलेगा और देश में दैवीय ऊर्जा बहेगी । रेल के डब्बे में सब अपने वाले हों तो यात्रा कितनी सुखद और सुरक्षित हो जाती है । अभी सारा भ्रष्टाचार वोट के कारण होता है । विपक्ष नहीं होगा तो वोट का झंझट ख़त्म । किसको वोट दें किसको नहीं, यह सोचने के तनाव से जनता भी मुक्त हो जाएगी । देश मजबूत हाथों में है यह मिडिया,टीवी, इडी वगैरह से सबको पता चल चुका है । सरकार के लिए न कोई लाड़ला होगा न लाड़ली ।  जो पैसा बचेगा उससे एक नयी बुलेट ट्रेन खरीदेंगे, विकास तेज होगा । आपाधापी में कुछ लोग छूट जाते हैं । हमारे लाड़ले विधायकों, सांसदों ने बड़े त्याग किये हैं । आपातकाल में जेल गये थे । उनके प्रति सरकार का यानी देश कुछ कर्तव्य बनता है । आगे आप समझदार हैं । अच्छे सुझाव दोगे तो मान भी लेंगे ।

          हाँ हमें पता है कि विपक्षियों के बहकावे में आ कर आप लोग महंगाई का रोना रोने लगते हो । कम अक्ल हो, उनकी बातों में आ जाते हो । दरअसल महंगाई विकास का थर्मामीटर है । महंगाई से ही पता चलता है कि लोगों की पर्चेसिंग पावर कितनी बढ़ गई है । गरीब से गरीब भी खरीद रहा है, खा-पी रहा है और क्या चाहिए । महंगाई तो मात्र एक नारा है विपक्ष का । शर्म आनी चाहिए उन्हें । जनता बड़े मजे में भजन-भंडारों में लगी है और ये छाती कूट उनके आनंद-आस्था में खलल पैदा करते हैं ! उन्हें बेरोजगारी का नाम ले कर डराते हैं । विपक्ष के आलावा कौन बेरोजगार है, बताइए । सबके हाथ में डाटा है, सब काम में लगे पड़े हैं । किसी के पास घड़ी भर की फुर्सत हो तो बताओ ? बेरोजगारी होती तो लोग आन्दोलन करते, नारे लगाते, काले झंडे दिखाते । सब मजे में हैं । किसी को कोई शिकायत नहीं है । हर सप्ताह एक विश्वविद्यालय खोल रहे हैं और हर दूसरे दिन एक कालेज ।  डिग्री का महत्त्व जानती है सरकार । रोजगार से ज्यादा नाक बचाने में डिग्री का महत्त्व होता है । डिग्री सबको मिलेगी, एक नहीं दो दो तीन तीन मिलेगी । भर भर के लो । बाज़ार में निकलो कभी देखने के लिए । सब्जी-भाजी वाले, गोलगप्पे वाले, चाय वाले, जूता पालिश वाले, सब डिग्रीधारी मिलेंगे । और कितने नीचे तक विकास चाहिए । पन्द्रह साल पहले छोटे छोटे काम करने में लोगों को शरम आती थी, अब देखो, सब कर रहे हैं मजे में । डेवलपमेंट इसी को कहते हैं ।

 

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रविवार, 27 अगस्त 2023

पॉश कालोनी में जिन्दा लेखक





  

             कल बड़ी हलचल रही, कालोनी वालों ने पहली बार जिन्दा लेखक देखा । पहले तो किसी को विश्वास नहीं हुआ कि इतने पॉश इलाके में जिन्दा लेखक कहाँ से निकल आया !! कालोनी अध्यक्ष ने कहा कि हाथ लग गया है तो देख लो सब लोग शाम को । कालोनी पॉश है, समस्या कुछ है नहीं, लेकिन कुछ न कुछ तो करना ही पड़ता है । लक्ष्मीनारायण शाह जब से कालोनी के अध्यक्ष बनें हैं लगातार कुछ न कुछ नया दिखाते रहते हैं । पिछले महीने कठपुतली का प्रोग्राम रखा था, उसके पहले बन्दर और मदारी का । इसकी खास बात यह थी कि बन्दर मदारी को नचा रहा था जैसे आजकल नेता जनता को नचाते हैं । शाह साहब के पास हमेशा नए नए आइडिया रहते हैं । नए साल पर उन्होंने पानी-पूरी के साथ विस्की-पूरी का स्टाल भी लगवाया था । लोगों को उनके कार्यक्रमों का शिद्दत से इंतजार रहता है । उन्होंने वादा कर रखा है कि अबकी भालू दिखायेंगे । एक बार मौका आ भी गया था यानी भालू मिल गया था । लेकिन पिछले चुनाव में मात्र पांच वोटों से हारे भूतड़ा साहब ने अपने समर्थकों के साथ आपत्ति ली कि जब पॉश कालोनी में गाय प्रतिबंधित है तो भालू बन्दर कैसे अलाऊ हो सकते हैं !  हालाँकि मिसेस भूतड़ा अन्दर ही अन्दर पति के विरोध का विरोध कर रही थीं । दरअसल उन्हें भालू के साथ सेल्फी लेनी थी । यह भी एक मजबूत कारण था कि भूतड़ा साहब भालू को कालोनी में नहीं आने देना चाहते थे । ड्राइंग रूम में भालू के साथ उनकी बीबी का फोटो लगे इसकी कल्पना से खुद उनके रोंगटे भालू जैसे हो जाते हैं ।

             हाँ तो कालोनी के वाट्सएप ग्रुप में खबर आई कि आज शाम को सब लोग कम्युनिटी हाल में लेखक को लाइव देख  सकते हैं । लोग चौंक गए । मैसेज के जवाब में कई जिज्ञासाएं आईं । लोग पूछ रहे थे “लेखक क्या होता है !?’ 'दीखता कैसा है ?' यह भी जानना चाहते थे कि सेफ्टी मेजर क्या हैं ? पिछली बार बन्दर देखते हुए मिसेस जन्जीरवाला पास चली  गयीं थीं और उन्हें बन्दर ने नोच लिया था । अब ऐसा नहीं होना चाहिए । पहले से ही सबको बता दीजिये कि कितनी दूर से देख सकते हैं ? महिलाओं ने पूछा ड्रेस कोड क्या है । मिसेस भूतड़ा एंड ग्रुप ने जानना चाह है कि सेल्फी लेने देंगे क्या ? बेहतर हो कि लेखक की फोटो और साईज ग्रुप में डाल दें, बच्चे पूछ रहे हैं कि लाइव लेखक कैसा होता है । लेखक अगर दाढ़ी वाला हो तो पहले बता दें, लोग अपनी रिस्क पर आयेंगे । बहुत से लोग हैं जो दाढ़ी वालों को पसंद नहीं करते हैं । 

                 शाम को लक्ष्मीनारायण शाह कम्युनिटी हाल में लेखक के साथ प्रवेश करते हैं । लोग चौंकते हैं ‘ अरे !! ये तो आदमी है !!’ लेखक कम से कम एलियन जैसा तो होना चाहिए वरना उसमें देखने का क्या है !  ये तो गरीब जैसा दिख रहा है ! इससे अच्छा तो अपना हीरालाल माली दिखता है । मिसेस जन्जीरवाला ने चिल्ला कर पूछा हम छू कर देखेंगे । एक आवाज आई कि इनका आधार कार्ड बताओ । भूतड़ा बोले ये असली लेखक है इस बात का क्या प्रमाण है ? ऐसे तो कोई भी किसी को भी पकड़ लायेगा कि लो भई लेखक को देखो । पीछे से सिंग साहब तैश में उठे, ओजी बेवकूफ बना रहे हो ! किसने बोला कि लेखक ऐसा होता है ! चलो ओए चलो, इसके तो सींग भी नहीं हैं ! इसमें देखने का क्या है । सब उठ कर जाने लगे । 

           मिसेस भूतड़ा एंड ग्रुप पास आ कर बोलीं – ‘एक सेल्फी ले लें प्लीज ‘ ।

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रविवार, 16 जुलाई 2023

लोकतंत्र की दरियादिली में




 


एक बात हमेशा ध्यान रखो, देवताओं का मूत्र मूत्र नहीं होता है । कोर्ट कचहरी के इस ज़माने में मूत्र कह कर उसका अपमान नहीं करे कोई । यह विशिष्ट उत्पाद है । अगर दो विज्ञापन छपवा दें तो चीन इम्पोर्ट करने को उतावला हो जायेगा । वो तो हमारी नीति है कि चीन से कुछ खरीदेंगे नहीं, इसलिए मज़बूरी है कि बेचेंगे भी नहीं ।  बात को पहले ठीक से समझ लें सब लोग, उसके बाद कोई राय बनाएं । जल्दी न मचाएँ, पहले चुनाव हो जाने दें । लोकतंत्र संविधान की ही नहीं भगवान की भी देन है । पांच साल में एक बार गरीब भगवान से भी बड़ा होता है । उसे फल, फूल और नगद चढ़ाना होता है, आरती उतरना होता है । ये लोकतंत्र का पूजन काल चल रहा है । आज पूजा करोगे तभी न कल पूजन करवाओगे । देखा ना, एक का सिर गीला हुआ तो दूसरे के पांव धो दिए फटाफट । आदमी से क्या लेना देना, आदमी होता क्या है !  भावना बड़ी होती है । लेकिन बात सुदामा से आगे बढ़ने नहीं दी । इसीको पोल्टिक्स कहते हैं । असल भगवान कौन है यह राज्य और केंद्र के बीच विवाद का विषय हो सकता है । लेकिन चुनाव के समय सुदामा को लेकर कोई संदेह नहीं हैं । ईश्वर चाहेगा तो पर प्रदेश सुदमाओं से भर जाएगा ।

अब असल मुद्दे पर आ जाओ । कुछ चीजें ‘नेचुरल काल’ के अंतर्गत आती हैं । वो जब आती है तभी आती है । और जब आती है तो कोई रोक नहीं सकता है । कुत्तों के आलावा यह काम कोई सूंघ समझ के अपनी इच्छा से नहीं कर सकता है । मनुष्य को तो यह सुविधा कतई नहीं है । जब उसे आती है तो वह पहले मूत्रालय देखता है, कमोड देखता है तब फारिग होता है । नेचुरल काल पर सभ्यता हावी रहती है । पशु पक्षियों में सभ्यता वभ्यता का कोई चक्कर नहीं होता है । जगह मुकाम देखे बगैर वे कहीं भी फट्ट से कर देते हैं । मुझे अक्सर किताबों पर से छिपकली की लेंड़ियाँ और बालकनी से कबूतर की बीट साफ करना पड़ती है । पता नहीं कबूतर और छिपकलियाँ शराब पीती हैं या नहीं । एक बार मालूम पड़ जाए कि पीती हैं तो उनके किये को नशे के खाते में डाल कर भूल जाऊँ ।

 शराब का मामला ऐसा है कि वो आधुनिकता की पहचान है । देश तेजी से आधुनिक हो रहा है । प्रदेश का तो कहना ही क्या, यहाँ कोई कितना भी संस्कारी हो शाम को आधुनिकता से लबरेज हो जाता है । पीने के बाद उसे आदमी के सर और कमोड में फर्क करने की जरुरत नहीं होती है । इसमें गलती किसकी है ! पीने वाले  की नहीं है, शराब की भी नहीं है । गलती सड़क पर अपना कामोड जैसा खाली सिर लिए बैठे गरीब की है । सोचो अगर ओले गिर रहे होते तो !? या किसी उल्लू ने बीट कर दी होती तो  !? चुनाव का समय नहीं होता तो कानून भी अपना काम करता । लेकिन अभी तो मज़बूरी है । आपको पता है दुनिया भर के वैज्ञानिक कह रहे हैं कि पानी की एक एक बूंद कीमती है । बरबाद मत करो । लेकिन लोकतंत्र की दरियादिली देखो, पाँव धो दिए । अब किसीको शिकायत नहीं होना चाहिए ।  

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सोमवार, 26 जून 2023

हमारे लाड़ले बेवड़े





 

दुनिया जानती है कि आज की डेट में जितना त्याग पीने वालों ने किया है समाज के लिए उतना किसी ने नहीं । इस बात को नोट किया जाए सर, कि सरकार का खजाना भरने में वे भले ही खुद मामू हो गए लेकिन कभी उप्फ़ नहीं की । शाम को पी तो सुबह थकेला कलेजा ले कर फिर हाजिर । तुमने पुकारा और हम चले आये । पॉइंट टू बी नोटेड अगेन सर, जिम्मेदारी एक आदत होती है, जो सब में नहीं होती है । सेवाभाव खून  में होना चाहिए और नसों में बहना चाहिए । एक जिद की तरह कि समाजसेवा करना है तो करना ही है । अब सर फूटे या माथा मैंने देशसेवा से यारी कर ली । लेकिन ये ड्राय-डे सिस्टम बंद होना चाहिए । कहने वाले कहते रहते हैं कि देश के लिए जान हाजिर है, लेकिन देने की बात आती है तो फूटी कौड़ी नहीं निकलती । और इधर जिगरा देखो, प्रदेश के लिए आल टाईम टुन्न ! जितना कमाते हैं, चखना के लिए रख कर पूरा ख़ुशी ख़ुशी दे आते हैं- लेलो मुल्क के हकिमों तुम भी क्या याद रखोगे जिदारों से पाला पड़ा है । लेकिन ये ड्राय-डे सिस्टम बंद होना चाहिए । पीने वालों का सोच इतना ऊँचा होता है कि अपने नीचे, अपने पीछे कौन कौन है यह तक नहीं देखते हैं । मधु-मानव मानते हैं कि कर्म किये जा, फल की आशा मत कर । हमारे कर्म की महानता देखिये, कर्म हम करते हैं फल सरकार को मिलता है । सरकार साकी है लेकिन बीच में कमबख्त खाकी है । पिलाने वाला दिलदार, पीने वाला जिगरदार बीच डंडा दीखता है थानेदार !!  ये भी चलेगा, लेकिन ये ड्राय-डे सिस्टम बंद होना चाहिए ।

आज ड्राय-डे था । कवि करुण ‘कमाल’  को कहीं शराब नहीं मिली । पौउवा वियोग में उससे रोटी भी नहीं खायी गयी । ड्राय जिगर को बहलाने के लिए वह न जाने क्या क्या सोच रहा है । ... विकास महंगा हो गया है । जनता से विकास का वादा था इसलिए मजबूरी थी, शराब के दाम बीस प्रतिशत बढ़ाए कोई दिक्कत नहीं है लेकिन ये ड्राय-डे सिस्टम बंद होना चाहिए । मजाक देखिये, नहीं पीने वालों ने हायतौबा मचाई लेकिन पीने वालों ने चूं तक नहीं की । इसे कहते हैं जिद्दी देशप्रेम । अगर कहीं पीने वालों ने हाथ ऊँचे कर दिए तो सोचो सरकार क्या होगा । हक़दार तो हम बड़े बड़े सम्मानों के हैं लेकिन देखिये रजिस्टर उठा कर, किसी मधु-मानव को आज तक एक मामूली पद्मश्री भी नहीं मिली ! लेकिन मन में दुर्भावना नहीं है हमारे । जब तक जिगरे में है जान, छलकते रहेंगे जाम । ... सोचते सोचते उसकी नींद लग गयी ।

“प्यारे जीजाओं ... आपको चिंता करने की कोई जरुरत नहीं है । जब तक आपके बच्चों का ये मामा जिन्दा है आपके लिए किसी बात की कमी नहीं रहेगी । सरकार जल्द ही “लाड़ले बेवड़े योजना” ला रही है । आपके खातों में हर हप्ते हजार रूपये डाल दिए जायेंगे । पियो मजे में, महुए की दे रहे हैं । मुझे मालूम है कि हजार रूपये में हप्ता नहीं कटेगा लेकिन आप चिंता नहीं करें धीरे धीरे बढ़ा कर दो हजार कर देंगे । प्रदेश के लाड़ले बेवडों को सरकार कभी भी अकेला नहीं छोड़ेगी । पहले आप लोग नादान थे । तब एक एक दो दो पौउवे में सरकारें बनवा देते थे । अब महंगाई बहुत है एक दो पौउवे में सरकार नहीं बनेगी हमें पता है । प्यारे लाड़ले बेवड़ों, छोटे बड़े का भेद हम मिटायेंगे । बार-त्यौहार पर हम आपके खाते में पांच हज्जार रूपइया डालेंगे ताकि आप साल में एकाध बार ‘काला कुत्ता’ भी पी सकें । काला कुत्ता सिर्फ बड़े लोग पियें और जीजा लोग टूंगते रह जाएँ यह हमारे लिए शरम की बात है । सरकार आपकी है और आपके कीमती वोट के मर्म को समझती है ।  राजनीति के प्रोफ़ेसर लोग लोकतंत्र की नस बता गए हैं -  “बाय द बोतल, फॉर द बोतल, ऑफ़ द बोतल” । दरद कैसा भी हो, दारू एक कारगर दवा है । आप हम जानते हैं कि देवदास को नहीं मिलती तो कभी का मर जाता और देश चार-पांच अच्छी फिल्मों से वंचित रह जाता । तब अपना बालीवुड  क्या मुंह दिखाता दुनिया को ! ये ऐसी दवा है जिसमें अस्पताल, डाक्टर, केमिस्ट वगैरह का कोई चक्कर नहीं है । मजे में एक क्वाटर दबाओ और लपक के सो जाओ । दूसरे दिन ओवन फ्रेश जीजा वोटिंग लाईन में । .....”

अभी भाषण चल ही रहा था कि बाहर पानी का टेंकर आ गया और हा-हुल्ल मच गयी । शोर ऐसा उठा कि सरकारी जीजा की नींद टूट गयी । ड्राय-डे का दरद याद आ गया । नलों में पानी आने का रिवाज ख़तम चल रहा है इधर । एक बार बोले थे कि जितवाओ, दारू की पाईप लाइन डलवा देंगे, मजे में नल से पीना । अब कहते हैं जितवा दो दारू का टेंकर भेजा करेंगे । झूठे कहीं के, कभी पन्द्रा लाख कभी टेंकर भर दारू । हमको इतना बेवकूफ समझ रखा है क्या कि झांसे में आ जायेंगे, “अरे धत्त” ! लेकिन ये ड्राय-डे सिस्टम ख़त्म होना चाहिए ।"  कवि करुण बोला।

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सोमवार, 29 मई 2023

नारद ने वाट्स एप खोला


 



            सुबह आँखे खोलते ही नारद ने वाट्स एप खोला और दनादन मेसेज फॉरवर्ड करना शुरू किये । इधर का उधर, उधर का इधर । मेसेज उछालने में वो मजा आ रहा था जो सतयुग में भी कभी नहीं आया । मन ही मन वे बोले कि ईश्वर ने संसार बनाया पर वाट्स एप नहीं बनाया । काश उन्होंने बनाया होता तो आज एक गुणगान इसी बात पर करने का अवसर मिल जाता ।

अभी वे सोच ही रहे थे कि वाट्स एप की एक पोस्ट में से प्रभु निकल आये । नारद को इस चमत्कार की उम्मीद नहीं थी  । पहले चौंके, फिर लज्जित हुए, बोले - भगवन आप !!

“ये क्या नारद ! किस काम में लगे हुए हो इन दिनों !! कितनी गन्दी गन्दी पोस्ट भेजते हो ! और नफ़रत फ़ैलाने वाली पोस्टों पर इतने मेहरबान क्यों रहते हो !? देवभूमि में उत्पात करवाओगे क्या ?” प्रभु ने अपनी नाराजी व्यक्त की ।

“मैं कुछ नहीं करता भगवन, मैंने एक भी पोस्ट खुद नहीं लिखी है । न गन्दी और न ही नफरत वाली ।“

“तो फिर इधर की उधर क्यों करते हो ? रिटायर आदमी के पास यही काम बचा है क्या ?”

“ये तो मेरा पूर्णकालिक काम है प्रभु । पहले भी तो आपको इधर उधर के समाचार देता था भगवन । उस समय तो आपको भी आनंद आता था । यही सोच कर कि अगले को आनंद आएगा, मैं अब भी इधर उधर करता रहता हूँ । इसमें मेरी कोई दुर्भावना नहीं है ।“

“भोजन करते समय निवाला मुंह में डालते हो ना । बिना देखे खा लेते हो ? जो सामने आया, अच्छा-बुरा, खाद्य-अखाद्य सब खा लेते हो क्या ?”

“नहीं भगवन, ऐसा कैसे हो सकता है ! आपने हर मनुष्य को बुद्धि दी है, विवेक दिया है, आँखें दी हैं तो देखभाल कर ही खायेगा ।“

“तुम्हारे रास्ते में कीचड़ हो, मल हो, कांटे हों तो क्या करोगे ?”

“अपने पैर गंदे नहीं करूँगा प्रभु, किसी भी स्थिति में नहीं । बच के निकलूँगा ।“

“फिर गन्दी और नफ़रत फ़ैलाने वाली पोस्ट को लेकर सावधानी क्यों नहीं बरतते ? जानते हो नारद, इस तरह की पोस्ट फ़ैलाने पर चाहे सरकार तुम्हें मौन समर्थन देती रहे लेकिन तुम्हारी छबि इससे बिगड़ती है । तुम एक शिक्षित और बुजुर्ग जीव हो इस तरह की छोटी छोटी गलतियों से तुम्हारा अपरिपक्व होना, अविवेकी होना सिद्ध होता है । मुनि हो, ज्ञानी हो किन्तु अधिकतर लोग तुम्हें मूर्ख समझने लगते हैं । जो तुमने अभी तक हासिल किया उस पर कालिख पुत जाती है । कोई चाहे न बोले लेकिन चार लोगों के बीच तुम आदरणीय नहीं रह जाते हो ।“

“सारी गलती तो उनकी है जो ऐसी पोस्ट बनाते हैं । वो आपके भक्त हैं इसलिए उन्हें आप कुछ नहीं कह रहे हैं !!” नारद को अपने बचाव के लिए कुछ नहीं सूझा ।

“मेरे भक्त निष्कपट और निर्मल-मन होते हैं । वो मेरे अंधभक्त नहीं होते हैं । उन्हें जो विवेक मैंने दिया था उसे उन्होंने किसी के पास रेहान रख दिया है । ये दुष्कर्म जो करते हैं उन्हें अच्छे-बुरे की समझ नहीं है । किन्तु हे नारद ... तुम जैसे वरिष्ठ जीवों से ये अपेक्षित नहीं है । कहा जाता है कि वृद्ध और बालक एक सामान होते हैं किन्तु इसके सही अर्थ को जानों मुनिवर । बालक का मन शुद्ध और निष्कपट होता है उसी तरह वृद्ध का भी होना चाहिए ।“

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मंगलवार, 16 मई 2023

जीवन संध्या भोज


 

 

 

“अब क्या बतावें भाई साहब, रोने बैठते हैं तो समझ में नहीं आता कि सुरु किससे करें । कोई एक बात हो तो सलीके और संस्कार के साथ रो लेवें इन्सान । यहाँ तो बरात लगी पड़ी है ससुरी । लोग जिस तरह औंधी खोपड़ी से नाच रहे हैं ना वैसा तो आज तक देखा नहीं हमने । कहने को कह रहे हैं आगे बढ़ो,  दुनिया आगे बढ़ रही है, विकास हो रहा है ! फिर कहते हैं पीछे चलो बाप-दादा पुकार रहे हैं, पीछे सब अच्छा है !! अरे समझ में नहीं आता है कि आगा अच्छा है या पीछा !! जिसे देखो पगला रहा है  ... ना ना हम राजनीति की बात नहीं कर रहे है और न ही करेंगे । हमें क्या करना है, इस बुढ़ापे में तो सर पे जो भी खड़ा होता है यमराज ही दीखता है  । कुर्सी पे कोई सच्चा-साधु बैठे या लुच्चा –लबार हमें क्या । आज जिन्दा हैं तो यहाँ आपके लिए रम्मू काका हैं कल मर कर फिर पैदा हुए तो कौन जाने रहीम चाचा हो जाएँ । लोग तो कहते हैं लाखों योनियाँ हैं, आदमी कुत्ता बिल्ली भी हो सकता है । आदमी ही बनेंगे इसकी कोई गैरंटी है क्या ! इसलिए राजनीति की बातें करके हम काहे अपना और आपका कीमती समय बरबाद करें ! ... अब देखिये,  आप इतनी गौर से बात सुन रहे हैं तो किसलिए ! कोई डर है हमारा ? या कोई कर्जा लिए हो हमसे ? ... अरे भाई इंसानियत लिए हो इसलिए दुःख बाँट रहे हो हमारा । वरना ढूंढ लीजिये यहाँ से वहां तक कोई अपनी इच्छा से किसी की मन की बात सुनता है क्या ? बकवास सुनाने का समय ही नहीं है किसी के पास । घर में बूढ़े अपना पसेरी भर समय लिये बैठे हैं सारा सारा दिन कोई चुटकी भर बाँटने वाला नहीं मिलता । एक जमाना था जब मिलने वाले फूल लिए खड़े रहते थे । ... लेकिन छोड़िये पुरानी बातें ।  ... हाँ तो हम कह रहे थे आत्मा जो है सूखी जाती है । बच्चों को पढ़ाये लिखाये इसलिए थे कि इनकी जिंदगी बन जाएगी । ये इन्सान बन जायेंगे, कुछ हमारी भी सदगति हो जाएगी । अब जब धरम करम का समय आया तो फुग्गे उड़ गए आकाश में । दो लाइन का फादर्स-डे वेक्सिन ठोंक देते हैं, सोचते हैं साल भर बाप को औलादी बुखार नहीं चढ़ेगा । ... बताइए हम क्या करें ! ताली थाली बजा बजा कर बुढ़ापा-गो बुढ़ापा-गो करें  !? सब हो जायेगा इससे ! पिछले महीने बिसेसर बाबू गुजरे । बच्चे विदेश में, मजबूरी बनी रही, कोई नहीं आया । बूढ़े कन्धों ने उठाया, महरी के लडके ने आग दी ... पता नहीं ऊपर के लोक में किसी ने द्वार खोला या नहीं । न पूजा-पाठ, न तेरहवीं न नुक्ता-घाटा । सफल आदमी थे, लेकिन बड़े बेआबरू हो के तेरे कूचे से निकले । कोई इस तरह जाता है क्या !? ये कैसी दुनिया बना ली है हम लोगों ने ! ... देखो भाई, अगली पूरण मासी को हमारी कविता की किताब का जलसा रखा है । क्या कहते हैं लोकार्पण कार्यक्रम और ‘जीवन संध्या भोज’ भी है । भोजन प्रसादी का आयोजन है,  तो आना जरुर । ... सोच रहे होगे कि हमने कब लिखीं कवितायें ... तो ऐसा है कि कोई तो बहाना चाहिए बुलाने का । कहते कि अपना नुक्ता कर रहे हैं तो कौन आता । कभी कुछ पन्ने काले किये थे सो उन्हीं को छपा लिया । जरूर आइयेगा, नमस्कार ।“

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रविवार, 2 अप्रैल 2023

ये तस्वीर बदलनी चाहिए






“डाक्टर साहब देखिये ना, इनकी आवाज चली गयी है । काफी दिनों से इन्होनें बोलना बिलकुल बंद कर दिया है । अब तो इशारे भी नहीं करते हैं ! “ महिला साथ लाये पेशेंट पति को आगे करते हुए बोली ।

डाक्टर ने पहले नब्ज देखी, आले से धड़कन, टार्च से मुंह के अन्दर गले तक झाँका । आँखें ऊपर-नीचे करवायीं, बाहर से कंठ के आसपास गले को टटोला, बोले – “हूँ ... कब से नहीं बोल रहे हैं ?”

“चार-पांच महीने हो गए हैं । पहले तो बहुत बोला करते थे, इतना कि इनको चुप रहने को बार बार कहना पड़ता था ।“ पत्नी ने बताया ।

“कुछ कड़वा -तीखा खाने में आया क्या ?”

“खाने में तो नहीं आया हाँ कड़वा -तीखा बोलते जरुर थे ।“

“करते क्या हैं ... मतलब काम-वाम ?”

“वाम ही इनका काम है ? वाम ही ओढना बिछाना । मतलब कवि हैं, लिखते पढ़ते और सोचते हैं । “

“यही तो गलत करते हैं । विक्रम बेताल की कहानी सुनी है ना । विक्रम ने मुंह खोला कि बेताल उड़ा । ज्यादा सोचना एक मानसिक रोग है । आम आदमी को कुछ नहीं करना है, बस पिये-खाये और पड़ा रहे । “

“पीते-खाते तो हैं, रातदिन  सोचते भी हैं पर बोलते नहीं हैं ।“

“ देखिये मामला पेंचीदा है । कुछ जांचें-वांचें करवाना पड़ेंगी ।“

“क्या हुआ इनको !? ... कैसी बीमारी है डाक्साब ?”

“यही तो देखना है कि बीमारी है या बेताल खौफ । “

“बेताल खौफ ! इसमें क्या आवाज बंद हो जाती है !?”

“कड़वी-तीखी आवाज बंद हो जाती है । आदमी बोल सकता है पर बोलता नहीं, लिख  सकता है पर लिखेगा नहीं, देख सकता है पर देखेगा नहीं, सह नहीं सकता पर सहेगा, जी नहीं सकता पर जियेगा ।“ डाक्टर ने बताया ।

“हे भगवान, अकेले इन्हीं को होना थी ये बीमारी !!” पत्नी ने पति के सर पर हाथ फेरते हुए कहा ।

“ये अकेले नहीं हैं । आजकल इसके बहुत पेशेंट आ रहे हैं । बेताल खौफ के चलते सबकी आवाज बंद होती जा रही है ।“

“तो इलाज इनका करना चाहिए या बेताल का ?”

“बेताल का इलाज पांच साल में एक बार ही हो सकता है । फ़िलहाल इन्हें चुप रहने दो ।“

“ऐसा कैसे हो सकता है ! जहाँ जरुरी हो बोलना तो चाहिए ।“

“यही तो मजे वाली बात है । जब लगे कि बोलना जरुरी है तब पेशेंट चुप हो जाता है । “

“लेकिन जिम्मेदार नागरिक तो बोलते रहे हैं !”

“बोलते थे कभी । अब टीवी बोलता है, रेडियो बोलता है, बाबा बोलते हैं, सत्ता बोलती है । जो सहमत हैं वे उछलें-कूदें नाचें-गाएं  और जो असहमत हैं चुप रहें, समझदार बनें । देश को आगे बढ़ने दें ।“

“अब क्या होगा डाक्साब !?”

“आप भी चुप रहो, चिंता मत करो, अब कुछ नहीं होगा । बोलते तो जरुर कुछ न कुछ हो जाता ।“

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