मकई राम की
कथा सुनाने से पहले आपको बता दूँ कि मैं ऊंच-नीच नहीं मानता हूँ । जात-पांत भी
नहीं । यही बात मिठाई पर भी लागू होती है । जो मीठा है वो मिठाई है मेरे लिए । और
जो मिठाई है उसका दिल से स्वागत है चाहे वो सोन पापड़ी ही क्यों न हो । हालाँकि
इनदिनों सोन पापड़ी बड़ी बदनाम चल रही है । कोई घर में घुसने नहीं दे रहा बेचारी को
। अगर किसी तरह घुस गयी तो जल्द से जल्द
निकाल बाहर करने की जुगत में लग जाता है । कोई कितने ही प्यार से लेकर आये लेने
वाले के कलेजे से धुंवा उठता ही है । दोस्त हो, रिश्तेदार हो या कोई प्रिय पात्र,
सोन पापड़ी सभी के किये धरे पर पानी फेर देती है ।
बीस वर्षों
से दफ्तर में त्रियुगी नारायण ‘हाजिर-सेवक’ लगे हुए हैं । हाजिर-सेवक वही जिसको
चालू भाषा में लोग चपरासी कहते हैं । पहले तो दिक्कत थी, खुद उन्हें भी अच्छा नहीं
लगता था । लेकिन वेतनमान बदले तो अच्छी तनख्वाह हाथ लगने लगी । तब समझ में आया कि
जमाना पद को नहीं पैसे को देख कर इज्जत देता है । उनके पास भी बार त्यौहार सोन
पापड़ी घर आने लगी । और वे भी मौका अवसर देख कर दूसरों को देने लगे ।
इसी बीच
दफ्तर में मकई राम अफसर हो कर आए । हप्ता पंद्रह दिन नरम रहे लेकिन जैसे जैसे हवा
लगी भुट्टा होने लगे । लोग चपेट में आये तो दफ्तर में सबको आश्चर्य हुआ । कुछ को
गुस्सा भी आया । मरने वाले का हाथ पकड़ा जा सकता है , बोलने वाले की जुबान नहीं ।
आपसी बातचीत में साथी भरोसे का हो तो मकई राम के लिए गलियां भी चलने लगीं । लेकिन
त्रियुगी नारायण इस मामले में अलग धारणा रखते थे । उनका कहना है कि मकई राम का कोई
दोष नहीं है । दोष दफ्तर की हवा का है । किसी किसी को ये हवा सूट नहीं करती है । यहाँ
की हवा की तासीर ऐसी है कि अच्छे भले आदमी का दिमाग खराब हो जाता है । त्रियुगी की
इस धारणा का एक कारण यह भी है कि मकई राम उन्हें जब भी कोई काम कहते हैं ‘जी’ लगा
कर कहते हैं । जैसे – “त्रियुगी नारायण जी, ये फ़ाइल गुप्ता को दे आओ और कह देना
शाम तक कम्प्लीट कर दें ।“ त्रियुगी ने इस
‘जी’ को दिल से लगा किया है । गरीब का दिल हमेशा बड़ा होता है, मकई राम को भगवान का
अवतार मानने में उन्हें अभी भी संकोच नहीं है ।
दिवाली आ
गयी । दफ्तर ने तय किया कि कोई मकई राम को घास नहीं डालेगा । अगर मज़बूरी गले पड़ ही
गयी हो तो एक ‘हेप्पी दिवाली’ फैंक कर आगे बढ़ जाया जाये । इस मोर्चे में त्रियुगी
नारायण शामिल नहीं हुए । उन्होंने समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन जमाना अब अच्छे
लोगों की बात कान पर कहाँ रखता है । दफ्तात में जिसके भी सामने मौका आया ‘टच एंड
गो’ फार्मूले के तहत हेप्पी दिवाली बोल कर रॉकेट हो लिया ।
जैसा कि
बताया है त्रियुगी नारायण का दिल बड़ा है । उसने देखा कि मकई राम के लिए यह समय
चुनौती पूर्ण है । बात को सम्हालने के लिए उसे ही कुछ करना चाहिए । अगली सुबह वह
सोन पापड़ी का पेकेट ले कर मकई राम के घर पहुँच गए । मकई राम शायद दफ्तर वालों की
बेरुखी को महसूस किये बैठे थे । ऐसे में सोन पापड़ी के पेकेट को देख कर सुतली बम की
तरह फट गए । उन्होंने पेकेट हाथ में नहीं लिया उस पर थप्पड़ की तरह मार दिया ।
पेकेट टूट गया और सोन पापड़ी अपने बिखराव के साथ दूर जा गिरी । त्रियुगी नारायण इस
घटना के लिए तैयार नहीं थे । तभी मकई राम कड़के – “ ये क्या त्रियुगी !! तुम सोन पापड़ी
ले कर आ गए ! क्या तुम्हें पता नहीं कि बड़े अधिकारियों के यहाँ मातहतों को सोन
पापड़ी ले कर नहीं जाना चाहिए ! अपमान करते हो !!” त्रियुगी नारायण के लिए खून का
घूंट था । चुपचाप चले आए ।
दीवारों के
कान होते ही हैं । दूसरे दिन बात दफ्तर में पहुँच गयी । आखिर साथियों ने त्रियुगी
नारायण को घेरा । ये तुम्हारी बेइज्जती नहीं है हम सबका अपमान है । धूल में मिला
आये सारी इज्जत कर्मचारियों की ! त्रियुगी भला आदमी तो है ही, बोला – “ हमारा या
हम लोगों का कोई अपमान नहीं हुआ है । दरअसल अपमान तो सोन पापड़ी का हुआ है । हाँ यह
बात जरुर है कि मकई राम जी को सोन पापड़ी के साथ ऐसा नहीं करना चाहिए । वो तो अच्छा
है कि सोन पापड़ी में जान नहीं होती है वरना आत्महत्या कर लेती ।“ सारे लोग उनका
मुंह देखते रह गए । किस मिटटी का बना है यार ये आदमी !! बोले – भईया त्रियुगी, मरने वरने की बात मत करो
... रुलाओगे क्या ।“
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