शुक्रवार, 12 अक्तूबर 2018

नए महात्मा नया संदेश


“देखो कायदा तो ये है कि जब चुनाव सिर पर हों तो सत्य-अहिंसा को सफ़ेद कपड़े में बांध कर टांड़ पे सरका देना चाइए । येई समझ में नई आता है कि पार्टी जब नए खून और युवा शक्ति को आगे लाना चाहती है तो बीच में फच्चर मारने सत्य-अहिंसा कहाँ से आ गए !! अब तुम बताओ टिकिट कि कित्ती तो मारा मारी मची है पार्टी में । बायोडाटा में एक सच के साथ हजार झूठ लिखना पद रहे हैं । और साथ में सौ चक्कूधारी नहीं हों तो पोलटिक्स में युवा हिरदे समराट बनाने की बात तो दूर आदमी किसी से पिल्ला-मूजोरी भी नहीं कर सकता । सत्य-अहिंसा का बाजा बजाएँगे तो दूसरी पार्टी वाले सिर पे नाचेंगे । चुनाव लड़ना अंग्रेज़ भगाना नहीं है, ये बात हाईकमान को समझना पड़ेगी ।“ टिकिट के लिए संघर्षरत युवा हृदय सम्राट पिन्ना रहे थे । दरअसल हाईकामन के दफ्तर से एक आदेश आया है कि पार्टी सत्य-अहिंसा को लेकर जितना भी प्रचार प्रसार कर सकती हो करे । डिबेट हो, चर्चा भाषण हों, बयान-तूफान-धमाल जो भी संभव हो किए जाएँ । जब दूसरी पार्टियों का मुख्य आचरण असत्य और हिंसा हो तो सत्य-अहिंसा हमारी पार्टी की मेन लाइन होना चाहिए । 

पंडिजी नाम से पुकारे जाने वाले बुजुर्ग नेता बोले – “देखो भिया, ज्यादा लोड लेने की जरूरत नहीं है । सत्य-अहिंसा हमारी पार्टी के आजमाए हुए जुमले हैं । जुमले समझते हो ना ? पूरा देश समझता है अब । जुमले आज कि राजनीति का सच है । राजनीति के सत्य और डिक्शनरी के सत्य में जमीन आसमान का अंतर होता है । राजनीति का सत्य वह सत्य है जिसे जानते सब हैं लेकिन बताता कोई नहीं है और डिक्शनरी का सत्य बताते सब हैं पर जनता कोई नहीं है । ..... पार्टी जब सत्य-अहिंसा के मार्ग पर चलने को कह रही है तो इसे राजनीतिक तौर से समझने कि जरूरत है महात्मा गांधी के बताए अर्थ से नहीं ।.... हालांकि महात्मा गांधी हमारे मार्गदर्शक हैं , पार्टी के आदर्श भी हैं ।“

“ये क्या के रये हो पंडीजी ! जिसका डर था वोई हो गया क्या  !! अब्बी तो कैलास मानसरोवर की यात्रा करी ! और अब्बी महात्मा भी हो गए फटाफट !! ताक में बैठी सामने वाली पार्टी तो चट्ट से खेंच लेगी और उनको यूपी का मुख्य मंत्री बना देगी दन्न से और सारा मामला देखते देखते भूतपूर्व हो जाएगा ।“

“ अरे यार युवा हिरदे जी जरा ब्रेक भी लगाया करो । कभी बापू का नाम नहीं सुने हो क्या ? .... ना ना .... और किसी बापू का नाम मत लेना, अपने वाले बापू जो नोटों पर छ्पते हैं, वही ।“

“पंडीजी अपनी पार्टी में कनफुजन भोत है । पुराने महात्मा, नए महात्मा ! येई समझ में नई आता कि फॉलो किस्को करें, ओरिजनल कौन है !”

“राजनीति में समय का बड़ा महत्व है । इस वक्त जो भी है वही पार्टी का मुकद्दर है ।  मजबूरी में प्लास्टिक महात्मा ही असली महात्मा है । जो ओरिजनल महात्मा है वो सबके पर्स में तो है लेकिन सोच में नहीं है । ओरिजनल महात्मा जेब में आता है दिल में नहीं आता है समझे । हमारे लिए जो कुर्सी पर है वही असली है, उसी को फॉलो करो ।“

“चलो ठीक है पंडीजी, हमें क्या । हमें तो टिकिट से मतलब, लेकिन इस सत्य और अहिंसा का क्या करें !? कोई रूपरेखा हो , कोई उदाहरण तो हो ।”

“ चुनाव का समय है युवा हिरदे समराट, लोगों के गले लगो और आँख मारो । इसमे सत्य और अहिंसा दोनों कवर हो जाते हैं । नए महात्मा का नया संदेश यही है ।

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'मातारानी' ! मुझे बनावाओ प्रधानमंत्री



मैं प्रधानमंत्री बनने को तैयार हूँ । ऐसा सोचना मेरा जन्मना अधिकार है । आपको पता होगा कि सोचने देने के बारे में संविधान मौन है । मतलब साफ है कि आप मर्जी हो जितना सोच सकते हैं, या फिर मर्जी हो तो उतना नहीं भी सोच सकते हैं । बड़े लोग कह गए हैं कि आदमी को ऊँची सोच रखना चाहिए । कुछ ने तो सपने देखने को भी कहा है । आज अगर कलाम साहब होते तो मेरी पीठ अवश्य थपथापते । उन्होंने कहा था कि बड़े सपने देखो, छोटे सपने देखना अपराध है । किसी पद के लिए मैं योग्य हूँ या नहीं हूँ यह सोचना मेरा काम नहीं है । सोचना एक तरह से पतंग उड़ाने जैसा काम है । दूसरे की काटोगे तभी अपनी उड़ा पाओगे । जिसके पास जितनी डोर हो वह उतना ऊँचा उड़ सकता है । और डोर जो है फैमिली बैगराउंड के हिसाब से मिलती है । जो लोग इस अंतर को समझ लेंगे वे मेरा मजाक नहीं उड़ा पाएंगे ।
जोशी पंडीजी एक नए नए वरिष्ठ नेता हैं , समझाइश देने लगे कि तुम्हारे लिए प्रधानमंत्री बनने का सपना देखना पाप के समान है । तुम लेखक हो, लिखो और परिश्रमिक का सपना देखो मजे में । तुम्हारे व्यक्तित्व को सूट भी यही करता है । तुम तो समझदार भी हो फिर क्यों किसी के फटे सपने में अपनी आँख घुसेडते हो !! अगर सपने देखने का एग्जीमा हो ही गया हो तो पद्मश्री का देख लो । पचास हजार लोगों ने आवेदन किया है पद्म-प्रसाद के लिए, एक तुम भी कर दोगे तो सरकार पर कोई वित्तीय संकट नहीं आ जाएगा ।  बिल्लियों के भाग्य से छीके आज भी टूटा करते हैं । तुम्हारी फील्ड का यही बड़ा सपना है ।
मैंने आपत्ति ली कि आप मेरी हिम्मत पस्त कर रहे हैं । लोकतन्त्र में सबको अपनी पसंद के सपने देखने का अधिकार है । आप भी चाहें तो मुझे अपना कीमती वोट देने का सपना देख सकते हैं ।
“गलत बात मत बोलो । लोकतन्त्र में जनता को वही सपने देखने का अधिकार है जो सरकार दिखाती है । पूरा हो न हो विकास का सपना देखो । इसके अलावा दूसरे सपने देखना राष्ट्रद्रोह है । और इस बात का भी विशेष ध्यान रखें कि मौब कानून कि तरह अंधा-बहरा नहीं होता है । मौब कि अदालत में न वकील होता है न तारीखें मिलती हैं । ये तो बहुत अच्छा है कि तुम किसी राष्ट्रीय पार्टी के टोलाध्यक्ष नहीं हो वरना अब तक तुम्हारी इस हरकत को बेतुकी और बचकानी करार दिया गया होता । “  जोशी पंडीजी ने हिदायतों के पानी-पताशे पेश किए ।
जोशी पंडीजी कि यह बात मुझे पसंद नहीं आई । मैं संवेदनशील लेखक हूँ और गरीबों, आदिवासियों, दलितों और पिछड़ों की आवाज बनना चाहता हूँ । मैं जो उल्टा सीधा लिखता हूँ वो अंततः इन्हीं के हक में होता है । और शिष्ट इतना हूँ कि किसी चौकीदार को चोर नहीं कहता हूँ । फिर ऐसी क्या दिक्कत है कि मैं प्रधान मंत्री नहीं बन सकता !?  माना कि मेरे पास कोई नीति या दृष्टिकोण नहीं है, लेकिन इससे क्या ? राजनीति में ये चीजें अब किसके पास हैं !!
"देखो भईया, ऐसा है कि सिर्फ सपने देखने से कुछ नहीं होने वाला है । खामख़याल आप कंपेटीशन बढ़ा कर टीआरपी खराब करोगे और कुछ नहीं । प्रधानमंत्री का सपना वही देख सकता है जिसकी पीठ पर छाप हो । ये सपनों का आम रास्ता नहीं है कि कोई भी ऐरा गैरा मुंह ऊँचा किए इधर से गुजरने की हिमकर करे ।"
"मैं ऐरा गैरा नहीं हूँ जोशी जी , बनारस के पंडों  से पूछ लो मेरे पूरे वंश का नाम दर्ज मिलेगा उनके खातों में । और मैं मातारानी से प्रार्थना कर रहा हूँ, इसमें आपको क्या ?"
"मांगों, मुझे क्या ! भूरे कद्दू की तरह चौराहे पर पड़े मिलोगे नौमी के दिन ।"
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