मैं प्रधानमंत्री
बनने को तैयार हूँ । ऐसा सोचना मेरा जन्मना अधिकार है । आपको पता होगा कि सोचने देने
के बारे में संविधान मौन है । मतलब साफ है कि आप मर्जी हो जितना सोच सकते हैं, या फिर मर्जी हो तो उतना नहीं भी सोच सकते हैं । बड़े लोग कह गए हैं कि
आदमी को ऊँची सोच रखना चाहिए । कुछ ने तो सपने देखने को भी कहा है । आज अगर कलाम
साहब होते तो मेरी पीठ अवश्य थपथापते । उन्होंने कहा था कि बड़े सपने देखो, छोटे सपने देखना अपराध है । किसी पद के लिए मैं योग्य हूँ या नहीं हूँ यह
सोचना मेरा काम नहीं है । सोचना एक तरह से पतंग उड़ाने जैसा काम है । दूसरे की
काटोगे तभी अपनी उड़ा पाओगे । जिसके पास जितनी डोर हो वह उतना ऊँचा उड़ सकता है । और
डोर जो है फैमिली बैगराउंड के हिसाब से मिलती है । जो लोग इस अंतर को समझ लेंगे वे
मेरा मजाक नहीं उड़ा पाएंगे ।
जोशी पंडीजी एक नए
नए वरिष्ठ नेता हैं , समझाइश देने लगे कि
तुम्हारे लिए प्रधानमंत्री बनने का सपना देखना पाप के समान है । तुम लेखक हो, लिखो और परिश्रमिक का सपना देखो मजे में । तुम्हारे व्यक्तित्व को सूट भी
यही करता है । तुम तो समझदार भी हो फिर क्यों किसी के फटे सपने में अपनी आँख
घुसेडते हो !! अगर सपने देखने का एग्जीमा हो ही गया हो तो पद्मश्री का देख लो । पचास
हजार लोगों ने आवेदन किया है पद्म-प्रसाद के लिए, एक तुम भी
कर दोगे तो सरकार पर कोई वित्तीय संकट नहीं आ जाएगा । बिल्लियों के भाग्य से छीके आज भी टूटा करते
हैं । तुम्हारी फील्ड का यही बड़ा सपना है ।
मैंने आपत्ति ली
कि आप मेरी हिम्मत पस्त कर रहे हैं । लोकतन्त्र में सबको अपनी पसंद के सपने देखने
का अधिकार है । आप भी चाहें तो मुझे अपना कीमती वोट देने का सपना देख सकते हैं ।
“गलत बात मत बोलो
। लोकतन्त्र में जनता को वही सपने देखने का अधिकार है जो सरकार दिखाती है । पूरा
हो न हो विकास का सपना देखो । इसके अलावा दूसरे सपने देखना राष्ट्रद्रोह है । और
इस बात का भी विशेष ध्यान रखें कि ‘मौब’ कानून कि तरह अंधा-बहरा नहीं होता है । मौब कि अदालत में न वकील होता है
न तारीखें मिलती हैं । ये तो बहुत अच्छा है कि तुम किसी राष्ट्रीय पार्टी के
टोलाध्यक्ष नहीं हो वरना अब तक तुम्हारी इस हरकत को बेतुकी और बचकानी करार दिया
गया होता । “ जोशी पंडीजी ने हिदायतों के
पानी-पताशे पेश किए ।
जोशी पंडीजी कि यह
बात मुझे पसंद नहीं आई । मैं संवेदनशील लेखक हूँ और गरीबों, आदिवासियों, दलितों और पिछड़ों की आवाज बनना चाहता
हूँ । मैं जो उल्टा सीधा लिखता हूँ वो अंततः इन्हीं के हक में होता है । और शिष्ट
इतना हूँ कि किसी चौकीदार को चोर नहीं कहता हूँ । फिर ऐसी क्या दिक्कत है कि मैं
प्रधान मंत्री नहीं बन सकता !? माना कि मेरे पास कोई नीति या दृष्टिकोण नहीं है, लेकिन इससे क्या ? राजनीति में ये चीजें अब किसके
पास हैं !!
"देखो भईया, ऐसा है कि सिर्फ सपने देखने से कुछ नहीं होने वाला है । खामख़याल आप कंपेटीशन
बढ़ा कर टीआरपी खराब करोगे और कुछ नहीं । प्रधानमंत्री का सपना वही देख सकता है
जिसकी पीठ पर छाप हो । ये सपनों का आम रास्ता नहीं है कि कोई भी ऐरा गैरा मुंह
ऊँचा किए इधर से गुजरने की हिमकर करे ।"
"मैं ऐरा
गैरा नहीं हूँ जोशी जी , बनारस के पंडों से पूछ लो मेरे पूरे वंश का नाम दर्ज मिलेगा
उनके खातों में । और मैं मातारानी से प्रार्थना कर रहा हूँ,
इसमें आपको क्या ?"
"मांगों, मुझे क्या ! भूरे कद्दू की तरह चौराहे पर पड़े मिलोगे नौमी के दिन ।"
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हमेशा की तरह उम्दा।
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