“ देखिये भाई साहब ऐसा है, हिन्दी अपनी जगह है और बच्चों का भविष्य अपनी जगह । हिन्दी की नहीं अपने बच्चों की ज़िम्मेदारी तो हम पर ही है
! एक तो जब से टीवी आया है हिन्दी के चेनल्स इतने हो गए हैं कि पूछो मत ! डेंगू के
मच्छरों की तरह दिन भर हिन्दी में इतना काटते रहते हैं कि रात होते होते हिन्दी का
बुखार इतना तेज चढ़ जाता है कमबख्त । एक घंटा अँग्रेजी की ट्यूशन ले कर आया आदमी दो
सीरियल में वापस हिन्दी हो जाता है । इंगलिश का अखबार लगाया लेकिन मोहल्ले भर में
हिन्दी के दो दो तीन तीन अखबार ले रहे लोग ! जैसे खाना नहीं खाया है हिन्दी की कसम
खा ली हो लांच डिनर में ! पढे लिखों से भी बात करो तो हिन्दी ही सुनने को मिलती है
। ये कोई विकास है !! बाज़ार के हाल ये कि
विज्ञापन देखो सारे हिन्दी में !! सच्ची बात तो ये है कि हिन्दी को बाज़ार ने अंडर
कवर एजेंट बना लिया है ग्राहक फाँसने के लिए ! लोग अगर अँग्रेजी सीखना चाहें तो
सीखें कैसे ! …. देखो भैया ऐसा है कि अपने बच्चों का तो
सोचना ही पड़ेगा । देश में हर दिन पचास हजार बच्चे पैदा हो रहे हैं उनसे हमें कोई
मतलब नहीं है । उन्हें तो हिन्दी पढ़ना ही चाहिए, आखिर आगे चल
कर उन्हें प्रजा ही होना है । बड़े लोगों ने कहा है कि आदमी को लक्ष्य ऊंचे रखना
चाहिए । इसका मतलब है सबसे पहले अँग्रेजी और उसके बाद सीधे अमेरिका । देश के नेता
दुनिया भर में घूम घूम कर डंका पीट रहे हैं तो बच्चे भी एक्सपोर्ट क्वालिटी के
होना कि नहीं होना ? ईश्वर की कृपा से अब बच्चे भी गोरे पैदा
होने लगे हैं । प्रोडक्ट मार्केट के हिसाब से परफेक्ट दिखाई देता है । आप खुद ही
सोचिए, गोरे बच्चे हिन्दी बोलते किसको अच्छे लगते हैं ।
मजबूरी नहीं होती तो मात्र भाषा के लिए लाख रुपये साल की फीस दे कर इंगलिश मीडियम
में पढ़ना कोई मजे की बात नहीं है । सरकार से उम्मीद थी लेकिन अब तो वही ऊपर से
नीचे तक हिन्दी हो गयी है । वो तो अच्छा है कि अधिकारी वर्ग अँग्रेजी दाँ है वरना
सरकारी कागज पत्तर भी हिन्दी में ही देखना पड़ते । आप मानो न मानो पर अधिकारी तो
अँग्रेजी वाला ही ओरिजनल लगता है बाकी तो फोटोकापी हैं । आगे की सोचते है इसलिए
बेटा बहु अपने बच्चे को दादा दादी के पास इसलिए नहीं फटकने देते कि कहीं वे हिन्दी
न सीख लें लाड़ लाड़ में । प्लीज बात को समझो भाई, हिन्दी की
वकालत अपनी जगह है और बच्चों का भविष्य अपनी जगह । “
बात हिन्दी के व्याख्याता डीडी
अनोखे जी से हो रही है जो फिलहाल सरकार से हिन्दी नहीं पढ़ाने का छ्ठा वेतनमान ले
रहे हैं । उनका कहना है कि जिस दिन सातवाँ उनके खाते में आ जाएगा उस दिन पढ़ा देंगे
। वैसे उनका मानना है कि हिन्दी भी कोई पढ़ाने की चीज है ! जो गरीब गुरबों, नंग धड़ंग बच्चों तक को आती है उसे क्या पढ़ाना ! और क्यों पढ़ना !? ‘दुध’ की जगह दूध लिख देने से
दूधवाला शुद्ध दूध दे देगा क्या ? पढ़ाने की चीज तो अँग्रेजी
है । कितना भी पढ़ो पढ़ाओ नहीं आती है । खुद अनोखे जी ने शुरू शुरू में बहुत ट्राई
किया था । उस जमाने में अँग्रेजी भी हिन्दी मीडियम में पढ़ाई जाती थी जो उनके पास अंत
में हिन्दी बन के रह गयी । विश्वविध्यालय ने भी उन्हें हिन्दी की डिग्री दे कर
पिण्ड छुड़ा लिया । अनोखे जी ने भी सोचा भागते भूत की लंगोटी भली । सो तभी से
हिन्दी की डिग्री उनके लिए लंगोटी है । इज्जत बच गयी, वरना
पहनने के नाम पर कोई टोपी बच रहती और किसी पार्टी के युवा हृदय सम्राट को जन्मदिन
की लख लख बधाइयाँ दे रहे होते । खैर ।
“ तो अनोखे जी इस बार हिन्दी दिवस
पर क्या कुछ करने वाले हैं ?”
“ उसकी छोड़ो, ये बताओ सरकार सातवाँ दे रही है या नहीं, क्या खबर
है ?”
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