रविवार, 19 अगस्त 2018

बेटा इसको केहते हैं विकास


दुनिया जिस ते़जी से बदल रही है उसे देखते हुए मानना पडेगा कि विकास हमारी मज़बूरी है. कोई चार लोगों के बीच बैठा हो तो उसे वही करना पड़ता है जो सब कर रहे हों. लेकिन जब वह करने लगता है तो मजा, मर्जी और जिम्मेदारी उसकी है. पड़ौसी के यहाँ बड़ा फ्रिज आया तो हमारे फ्रिज में जगह कम पड़ने लगती है. फ्रिज की इस सम्वेदनशीलता को आप क्या कहेंगे !? यह नयी तकनीक है, इसे आप उपकरणों का समाजवाद भी कह सकते हैं. पक्का है कि आप मानेंगे नहीं, लेकिन यह तकनीकी विकास है. जिन घरों में आज भी स्कूटर रखने की जगह नहीं है उनकी दो तीन कारें सड़क पर खड़ीं हैं. भले ही यह बैंकों की तालठोक लोन नीति का परिणाम हो,  पर यह विकास है. मोहल्लों में अब लोग कम कर्जदार कारें ज्यादा रहती हैं. लगता है बैंकों ने कारों के खेत बो दिये हैं. कृषि को उध्योग कहने के पीछे बड़े अर्थ छुपे हैं. किसी जमाने में लड़का लड़की से शादी करता था, अब असल में दहेज़ के सामान से करता है. नयी जिंदगी की बुनियाद में मुफ्त की उच्च जीवनशैली को प्राथमिकता देना हमारे शैक्षिक विकास का प्रमाण है. लेकिन जो नागरिक भाई अशिक्षित, जहिल और जान-वर किस्म के हैं  उनका ध्यान बलात्कार पर केंद्रित है, जिसके मध्यम से लगातार आँकड़े बढ़ाते हुए वे अपने राज्य को नंबर वन बना कर विकास की नयी परिभाषा लिख रहे हैं. आदरणीय अपराधी बंधु भी निर्भय हो कर पूरी गंभीरता से अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रहे हैं. पूछने पर पता चलेगा कि दो मर्डर, तीन दंगे, पच्चीस केस और पाँच करोड़ की प्रापर्टी. बेटा इसको केहते हैं विकास.
इनदिनों शाम को समाचारों के लिये टीवी खोल के बैठो तो पोलिटीकल मास्किटो जिन्हें कुछ लोग राजनीति के मच्छर भी कहते हैं, बहस करते दिखाई देते हैं. हर मच्छर दूसरे को डेंगू का मच्छर सिद्ध करने पर आमादा रहता है. हाल ये होते हैं कि बहस सुनते सुनते आदमी को ठंड दे कर बुखार चढ़ने लगता है. कोई और जगह होती तो कुनैन या पैरासेटामोल गटकने की जरुरत पड़़ जाती, लेकिन इधर टीवी बंद करते ही बुखार उतर जाता है. ये चमत्कारी  विकास है.  विकास को लेकर बहुत बातें हो रही हैं. लेकिन विकास किसी एक पार्टी का मुद्दा नहीं है. चुनाव के समय हर पार्टी का अधिकार है कि वह ठोक के  विकास की बात करे. झूठ अक्सर प्रिय लगता है, जनता को प्रिय लग जाये तो  वोट भी मिल जाते  हैं. जैसे यह सुनना कि मतदाता बहुत समझदार है, मतदाता जागरूक है, मतदाता सब जनता है, मतदाता देश का असली मालिक है, वगैरह. लोकतंत्र बड़ी चीज है, उसकी रक्षा के लिये एक दिन क्या, पूरे पाँच साल भी झूठ बोलना पड़े तो बोला जाना चाहिये. इसमें कोई हर्ज नहीं है.  लोकतन्त्र  को जिंदा रखने के लिये झूठ की एक आदर्श परंपरा रही है और उसमें लगातार विकास हो रहा है. आपको बता दें अंदर के लोग इसी को विकास की राजनीति कहते हैं.
आपको याद होगा देश जब आजाद हुआ था तब की बात है. हमारे पुरखे मात्र छत्तीस करोड़ थे. सत्तर साल में हम एक सौ छत्तीस करोड़ हैं. मतलब पूरे सौ करोड़ का शुद्ध इजाफा हुआ. देखिये आजादी के मामले में जनता बहुत सेंसिटिव है. कमाई पर भले ही जीएसटी लगा दो, पेट्रोल डीजल के भाव और बढ़ा दो, लेकिन आजादी के बीच में बोलने का नई.  इस आजादी पर जिस सरकार ने निगाह डाली वो समझो गई. चीन ने कहा बड़ी जनसंख्या हमारी ताकत है. भारतीयों ने दिल पे ले लिया. अब चीन के प्राण सूख रहे हैं, क्योंकि  पच्चीस साल में हमारी जनसंख्या उससे आगे निकल जायगी.  हो दम तो लगा ले बेटा रेस. तब देखना दुनिया भर के वैज्ञानिक हमारी ग़रीबी में छुपी ताकत पर कितना शोध करेंगे. चीन जैसे बड़े देश से आगे निकल जाना ठोस विकास नहीं तो क्या है.
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