बच्चा बच्चा जान गया है कि गाय बीफ देती है। देश बीफ का निर्यात कर बहुत सारा घन कमाता है। जिसके पास धन नहीं होता उसे गरीब कहते हैं। भारत में बहुत से लोग परंपरागत रूप से गरीब हैं। विदेशी पर्यटक गरीब देखने के लिए बड़ी संख्या में आते हैं और ताजा बीफ भी खाते हैं। बीफ और गरीबी हमारी विदेशी आय का साधन है और राजनीति का भी। ये दोनों बुराई भी हैं और आवश्यक भी। दरअसल अभी तक हम यह तय नहीं कर पाए हैं कि ये बुराई हैं या आवश्यक हैं। इसलिए इन्हें हटाने और बनाए रखने का काम साथ साथ चलए रखते हैं। विद्वान इसे राजनीति का सौदर्यशास्त्र कहते हैं यानी भारतीय राजनीति की खूबसूरती।
जो भी सरकार आती है गरीबी दूर करने के लिए कटिबद्व हो जाती है। नेता आदतन गरीबों से गरीबी दूर करने का वादा करते हैं। गाय वोट नहीं देती है इसलिए उससे कोई वादा नहीं किया जाता है। हालाॅकि गाय जानती है कि सरकार गरीबी दूर करने के लिए क्या करेगी लेकिन बोल नहीं पाती है। लोकतंत्र में जानने से ज्यादा जरूरी बोलना है। गाय को माता इसलिए कहा जाता है कि वह गरीबी दूर करने के लिए अपना सब कुछ दे देती है। जो अपना सब कुछ दे देता है उसकी जनता पूजा करने लगती है। यह हमारी आदर्श परंपरा है। इसके अलावा हम कुछ और कर भी नहीं सकते हैं। एक ने पूजा दूसरे ने बीफ निकाल लिया यह कितना इंसानी तालमेल है। गाय को आजतक यह बात समझ में नहीं आई है। उपर से सरकार कहती है कि सांप्रदायिक सद्भाव बढ़ना चाहिए। सुन कर रूह हो चुकी गाय भी कांप जाती है।
एक जानेमाने स्वनामधन्य गोपालक ने हाल ही में कहा कि हिन्दू बीफ खाते हैं। चारा खाने की बात से चिढ़ा आदमी पता नहीं कृष्ण के माखन खाने का किस तरह से उल्लेख करता। बाद में पता चला कि बीफ से उनका मतलब बिस्किट और फल से था। अभी तक देश की राजनीति मक्खन विशेषज्ञों के हाथ में खेलती रही है लेकिन अब बीफ को देख कर ललचा रही है। जो मुल्क कभी दूध पीता था मक्खन खाता था अब दारू पीता है और बीफ खने पर उतारू है।
रिपोर्टर ने ब्रेकिंग न्यूज के लिए गाय से पूछा /रिपोर्टर किसी से भी कुछ भी पूछ सकता है और गाय तो जिन्दा है, उसके सामने मुर्दे भी बोलते हैं/ कि - ‘‘मैंडम करीब तीन सौ खरब रूपयों के बीफ का निर्यात आपके सहयोग से होता है। लेकिन शिकायत आ रही है कि आप प्लास्टिक की थैलियां खाती हैं जिस कारण बीफ की क्वालिटी ठीक नहीं होती है। आप प्लास्टिक क्यों खाती हैं ?’’
‘‘ मजबूरी है। चारा जब दोपाए खा जाते हैं तो फिर हमें प्लास्टिक खाना पड़ता है। ’’ गाय ने कहा।
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बहुत बढ़िया सर. यह और बढ़िया कि इसे आपने यहाँ लगा दिया.
जवाब देंहटाएंदेश और मानवता के साथ हो रहे मजाक पर सुंदर व्यंग्य।
हटाएंशुक्रिया दिलीप जी ।
हटाएंप्रभावी व्यंग्य
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