बात दरअसल यह है कि इधर अखबारों ने लिखा कि वे अपना समेटा हुआ लौटा रहे हैं। अब चूंकि घोषणा है तो हर कोई मान रहा है कि वे सचमुच लौटा रहे हैं। अखबार में उनकी हाथ उठाई तस्वीर देख कर माहौल बना कि मानो लौटा ही दिया है। कुछ लोग चिंतित होते हैं कि ‘अरे उन्होंने लौटा दिया, अब जाने क्या होगा !!’ वे समझ नहीं पाते कि जिसे प्राप्त करने में कितने गुणा-भाग किए गएं, उसे इतनी आसानी से कैसे लौटा दिया बिना हिसाब-किताब के !! लेकिन कहा ना, यहां जो होता है वो नहीे होता और जो नहीं होता वो होता है। कुछ मजबूर उनके पीछे पीछे चल पड़ते हैं और वे भी अपने शेयर वापस निकाल देने की घोषणा कर देना पड़ती हैं। मुनाफा किसे बुरा लगता है।
घर में पत्नी और बच्चे कहते हैं कि शेयर यहां रखे थे तो कितना भरा भरा लगता था। निकाल दिए तो कितना खाली खाली लग रहा है। कलाकार उन्हें समझाता है कि शेयर रखे रखे दूध तो नहीं दे रहे थे। मुनाफा बड़ी चीज है, ऐसी चीजें मौकों-झोंकों पर ही काम आती हैं। जब प्राप्त किया था तब इतनी हलचल नहीं हुई थी। मीडिया में देखो कितनी चर्चा है हमारी, अखबार काले हुए जा रहे हैं हमारे कारनामे से, साहित्य का संसार कुरुक्षेत्र हो रहा है। अनेक कलमवीर खेत रहे हैं। कोई धृतराष्ट्र किसी संजय से सारे हाल सुन रहा है। वरना हम पर तो खासोआम का ध्यान ही नहीं था। यहां तक कि मार्निंग वाक पर जाओ तो दो-ढाई नमस्ते के लिए भी तरस जाते थे। अब देखो, सुबह से शाम तक फोन बज रहा है, तुनक तुन तुन। साहित्यकार सब कुछ कीर्ति के लिए ही करता है। कीर्ति विहीन जीवन की कल्पना से ही उसके प्राण सूखने लगते हैं। सोचो जब कभी उसके बारे में लिखा जाएगा तो पाने से ज्यादा महानता खोने की बखानी जाएगी। वैसे भी सम्मान समाज का कर्ज होता है। यदि उस कर्ज को उतार पाना संभव नहीं हो रहा हो तो लौटा देना अच्छा है। रहा सवाल उस खाली दीख रही जगह का, तो थोड़ी प्रतीक्षा करो। हमें सम्मान सृजित करना भी आता है। एक लौटा रहे हैं तो चार ले कर आएंगे। सर सलामत हो तो शाल-श्रीफल की दुकानें कम नहीं हैं।
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प्रखर
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सर ।
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