बुधवार, 21 अक्तूबर 2015

घोड़ा और राजकुमार

               
    रियासत परंपरापुर में इस समय हर कोई सदमे में चल रहा है। एक राजकुमार कब से मायूस  बैठा है म्यान में चांदी  की तलवार लिए। उसे न कहीं से ललकार सुनाई दे रही है और न ही कोई मैदान दिखाई दे रहा है कि मार लें फट्ट से। सरकार, जो कि अब सत्ता में नहीं है लेकिन अब भी अपने को आदतन सरकार मान रही है, बुरी तरह से चिंतित है कि आखिर राजकुमार की भूमिका कैसे तय हो। खुद राजकुमार मारे असमंजस के यहां से वहां हो रहा है लेकिन नतीजा जो है सामने नहीं आ रहा है। कुछ करे तो हाथ उठा देते हैं लोग और नहीं करे तो अंगुली। बिन सरकार के मंत्री लोग मीडिया के डर से अंदर ही अंदर प्रार्थना कर रहे हैं कि हे ईश्वर  राजकुमार को जल्द से जल्द काबिल बनाए ताकि उन्हें जंगल लुट जाने से पहले आखेट के लिए आगे किया जा सके। सारे सिपाही बल्लम-भाले लिए तैयार खड़े हैं। राजकुमार एक बार घोड़े पर ठीक से बैठना सीख लें फिर तो समझो शेर मार ही लेंगे। हाथ में बंदूक लिए शेर पर पैर रखे उनका फोटो जब अखबार में छपेगा तो जनता को मानना पड़ेगा कि वे खानदानी शिकारी हैं। लोकतंत्र का असली मजा वे ही उठाते हैं जो अपनी एक छबि बनाने में कामयाब हो जाते हैं। लेकिन यहां दिक्कत ये है कि राजकुमार को घोडे़ पर चढ़ना ही नहीं आता है। एक दो बार कोशिश  की तो पटखनी खा गए और मामला कमबख्त छबि में दर्ज हो गया। बेचारे जब भी हुंकार मारने की कोशिश  करते हैं तो श्याणी  जनता खी-खी करने लगती है। पार्टी को समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर इस राजकुमार का करें क्या ! छोड़ दें तो पार्टी बिखर जाएगी और लाद लें तो डूब जाएगी। 
                              बहुत सोचने के बाद एक जर्जर बूढ़े किस्म के वरिष्ठ नेता ने सुझाया कि उसे बिना घुड़सवारी के ही शिकारी घोषित कर देना चाहिए। मम्मी तो मान ही गई थी, लेकिन डर मीडिया का भारी है, वो भी आजकल ‘जिधर बम, उधर हम’ की नीति पर चल रहा है। हाथ धो कर पीछे पड़ जाएगा और राजकुमार से बार बार पूछेगा कि लगाम घोड़े की दुम में लगती है या मुंह में । और राजकुमार को तब तक रगड़ेंगा  जब तक कि उनकी कलाई ना खुल जाए। पार्टी की कोशिश  यह है कि सच्चाई सामने ना आए और आवाम राजकुमार को महान शिकारी मान ले। बस एक बार मान ले फिर तो इतिहास में दर्ज करके पीढ़ियों तक यही पढ़ाते रहेंगे। 
                                कहते हैं कोशिश  करने वालों की हार नहीं होती। पार्टी के लोग हिरण के कान काट कर ला रहे हैं लेकिन राजकुमार उन्हें देख कर हकलाने लगता है। चूंकि पार्टी के पास फिलहाल कोई काम नहीं है इसलिए प्रयोग पर बल दिया जा रहा है। पूरी पार्टी प्रयोग में भिड़ी है और दनादन बयान दे रही है। कुछ वरिष्ठ जो अनुभवी भी हैं, कह रहे हैं कि राजनीति के जंगल में शिकारी को खादी पहनने से बड़ा लाभ होता है। जंगल के प्राणी खादी देख कर मान लेते हैं कि आने वाला अहिंसा और गांधीजी का पुजारीनुमा कुछ है। इस चक्कर में वे बड़ी आसानी से शिकार हो जाते हैं। पैंसठ सालों से खादी शिकारियों को मुुफीद पड़ती रही है। लेकिन दामन में दुर्भाग्य हो तो जनता समझदार हो जाती है। प्रयोग के तौर पर राजकुमार को खादी पहना कर जंगल में भेजा गया लेकिन गरीब की झोपड़ी में दो रोटी से अधिक कुछ नहीं मिल सका। सुना है राजकुमार को वो भी हजम नहीं हुई।
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