छोटू जी
छोटे हैं और बड़कू जी बड़े । बड़कू जी आगे चल रहे हैं और छोटू जी पीछे पीछे । दोनों
में मित्रभाव कभी कभी सर उठा लेता है लेकिन जल्दी ही वे भूल सुधार लेते हैं ।
वे एक साथ भी चल सकते हैं लेकिन अनुशासन
से बंधे हुए हैं । दोनों दिल्ली जाने के लिए निकले हुए हैं । “तुम्हें पता है दिल्ली कहाँ है ?” अचानक छोटूजी ने बड़कूजी से पूछा ।
“ इसमें
पता करने की क्या बात है । दिल्ली दिल्ली में ही होगी और कहाँ जाएगी !!” बड़कू ने
अपने बड़प्पन के साथ कहा ।
“मेरा मतलब
है बड़कूजी कि हम लोग दिल्ली जा रहे हैं तो हमें ठीक से पता होना चाहिए कि दिल्ली
कहाँ है । इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि हमारी दिशा गलत तो नहीं है । “
“दिशा विशा
की चिंता छोड़ो छोटू जी । बस इतना याद रखो कि हमारी दिशा सुनिश्चित है । ... मात्र
दिल्ली के लिए हम अपनी दिशा नहीं बदल सकते हैं ।“
“मैंने तो
समान्य सी बात पूछी है । दिल्ली पहुँचने
के लिए हमें दिल्ली की दिशा में ही तो चलना होगा ! वरना पहुंचेंगे कैसे ?!”
“नेतृत्व
बड़ी चीज होती है छोटू जी । नेतृत्व पर भरोसा रखो । जरूरत पड़ी तो वे हमारी दिशा में
कई दिल्लियां बनाते चलेंगे । हमें केवल चलने और चलते रहने के निर्देश हैं । इसलिए
चलते चलो, चलते चलो ।“ बड़कूजी ने अपना अनुभव रखा ।
“फिर भी
मैं सोचता हूँ कि एक बार किसी से दिल्ली का पता पूछ लेने में कोई हर्ज नहीं है ।“
छोटू को समाधान चाहिए था ।
“छोटू जी
तुम सोचते हो ! ... अभी तक !! ... इसका मतलब यह है कि तुम्हारा संस्कार नहीं हुआ ठीक से । सोचना बंद करो तुरंत ... वरना थर्ड डिग्री संस्कार के लिए तैयार रहो ...
और हाँ एक बात साफ समझ लो, हमारी दिल्ली इतिहास में है । हमें इतिहास में जाना पड़ेगा । मानो कि
इतिहास ही हमारी दिशा है ।“
“कुछ समझा
नहीं ! हमें इतिहास में क्यों जाना पड़ेगा बड़कूजी !!?”
“क्योंकि
हम इतिहास में नहीं हैं और लोग बार बार हमें इतिहास में ढूंढते हैं । आधुनिक
शिक्षा ने लोगों की समझ और सोच को विकृत कर रखा है । जो इतिहास में नहीं हैं
उन्हें वर्तमान में भी नकार रहे हैं । ऐसे लोगों को गोली मार कर हे-राम कर देना
चाहिए । “
“लेकिन
जब हम इतिहास में हैं ही नहीं तो इतिहास में जाएंगे कैसे ?!!”
“इतिहास
में सेंध मार कर । हमें इतिहास बदलना होगा और अपने लिए जगह बनानी होगी । याद रखो, जगह बनाने से ही बनती है । नेतृत्व पर विश्वास रखो और तुम बस चलते रहो ।“
“मैं चल तो
रहा हूँ बड़कू जी । लेकिन पथ समझ में नहीं आ रहा है ..।“
“समझने की
कोशिश करोगे तो चलोगे कैसे छोटू जी !! ... लक्ष्य चलने से मिलता है, समझने के प्रयास से केवल भ्रम पैदा होता है । ... चलो कि जैसे बिना
गाड़ीवान के बैल चलते रहते हैं गाड़ी में ।“
“बड़कू जी
तुम्हें विश्वास है दिल्ली आ जाएगी ?”
“दिल्ली
नहीं आएगी छोटू जी ... हमें दिल्ली चल कर जाना होगा । तुम बस चलते रहो ।“
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