इनदिनों अच्छे भले जिम्मेदारों को ‘कनफ़्यूजन’ हो रहा है । रहा आमजन का सवाल तो भईया ऐसा
है कि कन्फ़्यूजन उसके लिए मल्टीविटामिन की तरह है । सुबह शाम एक एक बार
कन्फ़्यूजिया नहीं ले तो सेहत बिगड़ने लगती है । सत्तर साल हँसते मुस्कराते ऐसे ही
नहीं काट लिए हैं उसने । हफ्ते भर से राजधानी मार्ग पर कारें दौड़ रही हैं , आज कुछ ज्यादा ही । पहले तो लगा कि रैली वैली है और कोई रोड शो के चक्कर
में देश का कीमती पेट्रोल फुँकवा रहा है । पूछा तो पता चला कि सारे टिकिटार्थी हैं
और राजधानी लपक रहे हैं । एक रेस सी लगी है, मानो जो पहले
पहुंचेगा टिकिट उसका ।
हर टिकिटार्थी कार में अपने साथ
मामाजी का एक कज़िन ले कर बैठा है । इस समय मामाजी के कज़िनों का मार्केट हाई है ।
यो समझिए कि राजनीति के बाज़ार में सिक्कों से ज्यादा कज़िन-सिक्के चल रहे हैं । जैसे बरसात के मौसम में जुगनू या मेंढक निकल आते
हैं वैसे ही जगह जगह मामाजी के कज़िन निकल रहे हैं । सबके कंधों पर कुर्ता जेकेट और
नाक पर चश्मा है । बहुत से कज़िन कज़िन कम क्लोन ज्यादा लग रहे हैं । होने से ज्यादा
लगना महत्वपूर्ण है । जो जितना लग रहा है उतनी उसकी साख है । साख पर ही आर्थिक
गतिविधियां चलती हैं । सब जानते हैं कि आर्थिक गतिविधियां नहीं हों तो कोरी
राजनीति तालाब में पड़ी काई है । प्रकट रूप
में जो राजनीतिक गतिविधि है वो अप्रकट रूप में आर्थिक गतिविधि ही है । जो इस रहस्य
को समझ लेता है वो राजनीति की पकड़म पाटी में शामिल हो जाता है और जो नहीं समझता वो
कभी नोटा को खुजाता, कभी वोटा को सहलाता, चिड़िया उड़ काऊवा उड़ खेलता रहता है ।
ढाबे पर एक बड़ी सी यानी काफी बड़ी सी
कार रुकी । कार क्या है आप यूं मानिए कि
मिनी बस की कज़िन है । पंद्रह सोलह लोग
उतरे ।
“मामाजी पहले फ्रेश हो लो, टाइलेट उधर है । “ एक बोला ।
मामाजी जाने लगे तो दूसरे ने रोका -
“ बंसी जरा देख के आ कि टाइलेट साफ है या नहीं ।“ बंसी लपका, तुरंत रिपोर्ट लाया कि टाइलेट साफ है ।
“अब जाइए मामाजी ।“ मामाजी चले गए ।
आसपास वाले समझ गए कि वही टिकिटार्थी है । अब वो पट्ठों को बता रहा है कि ये
मामाजी के खास वाले कज़िन हैं । जब छोटे थे तो मौसी बुआ के लड़कों कि शादी में पंगत
को लड्डू चक्की परोसते थे दोनों मिल कर ।
कज़िन मामा ने उनसे कभी किसी के लिए कुछ कहा नहीं पर आज जिंदगी में पहली बार
अपने टिकिट के लिए कहेंगे । और देखना मामा तो क्या मामी भी उनकी बात टाल नहीं
पाएँगी ।
कज़िन मामा बाहर निकले ।
“मामाजी चाय या काफी कुछ ?”
“चाय काफी बाद में , पहले कचोरी समोसा कुछ ?” दूसरा बोला ।
“पोहा जलेबी भी है । “ तीसरी आवाज ।
“कोक फ्रूटी भी दिख रही है । “
“है तो खमण फफड़ा भी । “
मामाजी सोच रहे हैं , विकल्प ज्यादा हों तो दिक्कत होती है । एक को चुनना आसान है लेकिन बाकी
को खारिज करना कठिन ।
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