मंगलवार, 1 जुलाई 2014

इलाज और बीमारी के बीच कूदफांद

                        जो कभी बीमारी घोषित थे, सत्ता में आने के बाद अब इलाज हैं । जिससे बचने का ढोल पीटा जा रहा था अब वो शिलाजीत है, देश को मर्द बनाने की दवा। साम, दाम, दण्ड, भेद के आगे कोई कुछ बोल भी नहीं सकता है। वरना जिसके भाग्य में जितनी साँस  लिखी होगी रामजी उससे ज्यादा किसी को नहीं देंगे। जहां तक राम का सवाल है, सबसे पहले वही लपेटे में आए हैं। ऐसे में जो लोग महूरत निकाल कर काम नहीं करते राज्य में उनके लिए कोई गैरंटी नहीं होगी। प्रातः बिस्तर से उठते हुए पहले दांया पैर जमीन पर नहीं रखने वालों का दिन खराब होगा, गुण्डे गोली मार दें या घर में चोरी हो जाए तो इसमें प्रशासन की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी। धंधा उसी का चलेगा जो चैघड़िया देख कर दुकान का ताला खोलेगा। लड़कियां भी वही सुरक्षित होंगी जो पूरी ढंकी होंगी या फिर जिन पर कलयुगी रावण कृपा करेंगे। विकास का दावा है, तो पक्के तौर पर होगा। लेकिन अपने ज्ञानचक्षु खोलिए, विकास आगे नहीं, पांच हजार वर्ष पीछे है। इधर जनता के पास कोई विकल्प नहीं है। अतीत में दुःख, भविष्य में डर, वह मान लेती है कि ‘दर्द का हद से गुजर जाना अपने आप दवा बन जाएगा’। जानकार कहते हैं कि इलाज से बचाव बेहतर है। किन्तु बचाव हो कैसे, जिस हवा में  सांस लेते हैं उसी मेें बेक्टेरिया तैरते रहते हैं। आंकडे उठा कर देखें तो देश में जितने बीमारी से मरते हैं उससे ज्यादा इलाज से मरते हैं । हरेक को आजादी है, वो चाहे तो शांतिपूर्वक बीमारी से मर सकता है या उतावला हो कर इलाज से। 
‘‘ भाभीजी सुना है भाई साब बीमार हैं, क्या हो गया ?’’ पडौसन ने पूछा।
‘‘ क्या बताउं, हप्ताभर से उछल रहे हैं, ‘युवा- हृदय-सम्राट’ हो गया है।’’
‘‘ नेतागिरी के मच्छर ने काटा होगा। मैं तो हमेषा ‘गेटआउट’ लगा के रखती हूं।’’
‘‘ घर में तो गेटआउट हम भी लगाते हैं, पर ये बाहर मच्छर-मख्खी के बीच ही रहते हैं और तला-गला, गंदा-बासी सब खाते हैं ना।’’
‘‘ अरे ब्बाप रे ! तब तो तगड़ा इन्फेकशन  होगा !! .... इलाज चल रहा है ?’’
‘‘ दिखवाया तो है, डाक्टर बोले अच्छा हुआ समय पर ले आए वरना केस बिगड़ कर ‘थर्ड स्टेज लीडरी’ का हो जाता।’’
‘‘ क्या होता है थर्ड स्टेज लीडरी में ?!’’
‘‘ चमड़ी मोटी हो जाती है, दिखाई-सुनाई कम पड़ता है, खून में ईमानदारी के प्लेटलेट्स बहुत कम हो जाते हैं, लाज-शरम खत्म हो जाती है, दिनरात खाने की सूझती है, पेट हमेशा  खाली महसूस होता है.....। 
‘‘ जांच करवाई ? कुछ निकला ?’’
‘‘ जांच हुई, पर अभी तक निकला कुछ नहीं। निकलेगा कहां से! अभी तक कोई मौका ही नहीं मिला है।’’ 
                   जनता को समझ में नहीं आ रहा है कि हमारे हृदय-सम्राट इलाज हैं या बीमारी। अभी तक का अनुभव ठीक नहीं रहा है, इलाज समझ कर जिनका हाथ थामा वे बीमारी निकले। एक जमाने में कहा जाता था कि घी-मख्खन खाओ, अब डाक्टर बोलते हैं कि ये बीमारी का घर हैं, इनसे बचो। मौसम ऐसा चल रहा है जिसमें हर पार्टी खुद को इलाज और दूसरी को असाध्य बीमारी बता रही है। यही वजह है कि खासी कूदफांद चल रही है। कुछ बीमारी से कूद कर इलाज में आ रहे हैं, कुछ इलाज से बीमारी में जा रहे हैं। 
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