शुक्रवार, 5 अप्रैल 2019

फर्जी सब संसार



तकनीकी रूप से जैसे जैसे समाज तरक्की कर रहा है वैसे वैसे फर्जी सूचनाओं का बाज़ार गर्म हो रहा है । चुनाव के इस माहौल में अनेक फर्जी चुनाव विशेषज्ञ मीडिया के कप में मक्खी की तरह तैर रहे हैं । आँख खुली हो तब प्रश्न पैदा हो कि आँखों देखी मक्खी कोई निगले या नहीं निगले । पर इधर तो सबकी आँखें बंद हैं । पार्टियां माने बैठी हैं कि उनके प्रति एक भरोसा है सबके दिमाग में । इस फर्जी भरोसे को उन्हें बस जिंदा रखना है चुनाव तक । उसके बाद लोगों की आँखें खुलती हों तो खुल जाएँ कोई फर्क नहीं पड़ने वाला । इसी चक्कर में सूचनाओं का फर्जीवाड़ा अपनी दुकान चलाने में कामयाब होता नजर आ रहा है । खबर है कि फेसबुक ने हाल ही में ग्यारह सौ से अधिक फर्जी सामग्री वाले पेज बंद किए जिसमें लगभग सात सौ पेज कांग्रेस के थे । इस तरह की फर्जी दुकान के लिए फर्जी अकाउंट बनाना पड़ते हैं । किसी ने कहा कि फर्जी अकाउंट बनाना और फर्जी सामग्री प्रसारित करना गैरकानूनी है । लेकिन जिम्मेदार मानते हैं कि चुनाव कानून से ऊपर होते हैं । जंग, मोहब्बत और चुनाव में सब जायज होता हैं । अगर ऐसा नहीं होता तो ट्रंफ आज अमेरिका का राष्ट्रपति नहीं होता । जो चीज अमेरिका में जायज है वो यहाँ भी है । रहा सवाल दूसरी पार्टियों का तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं है । लोहे से लोहा कटता है । फर्जी सामग्री की काट फर्जी सामग्री है । इधर फर्जी तो उधर भी फर्जी । वोटर को जब तक समझ में आएगा तब तक चिड़िया चुग जाएगी खेत ।

जो लोग बेरोजगारी जैसी समस्याओं को लेकर छाती कूटते हैं उन्हें देखना चाहिए कि फर्जी सूचनाओं के व्यवसाय में कितनी मांग है प्रतिभाशाली लोगों की । कुछ स्वच्छतावादी फर्जी सामग्री बनाने वाले कलाकारों को असामाजिक तत्व कहते हैं तो घ्यान न दें । सच्चा कलाकार वही होता है जो जमाने की कहा सुनी पर कान नहीं दे और अपने काम में लगा रहे । महात्माओं ने संसार को मिथ्या बहुत सोच समझ कर कहा है तो मन में किसी प्रकार का अपराधबोध रखने कि जरूरत नहीं है । घर बैठे फर्जी का फर्ज पूरा करो मजे में और दाम ले जाओ हाथों हाथ । जनता की चिंता करने कि जरूरत नहीं है । उसका ट्रेक रेकार्ड है कि वह फर्जी बातों पर हजारों साल से भरोसा करती आई है और आगे भी करती रहेगी । हमारे यहाँ कोई कानून भी नहीं है जो फर्जी सामग्री बनाने के मामले किसी को अपराधी बनाए । किसी की मानहानि पर जरूर कानूनी अड़चन आती है लेकिन देखिये कि लोकतन्त्र में चुनाव का समय कीचड़ उछलने का समय होता है । जो दो एक दूसरे की बेइज्जती में चूकते नहीं है वे चुनाव के बाद सब भूल कर गले मिल लेते हैं । ऐसे मौकों पर कानून थैंक्यू के अलावा और क्या कह सकता हैं !!
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