सब जानते हैं कि सांभा सरदार का
मुंहलगा है । कहते हैं कि उससे पूछे बगैर सरदार कोई काम नहीं करता है । सरदार का
चलता फिरता गूगल है सांभा । नई फिल्म ‘गोले’ में सांभा का नाम शैम है । जो श को स बोलते हैं वे उसे सैम भी कहते हैं ।
तो बात ये हैं कि शैम को अचानक बयान देने की सूझी । उसने पिछले अखबार उठाए और
मीडिया पर एक बयान दाग दिया । बालाकोट में हुई एयर स्ट्राइक पर सवाल उठा दिये कि
स्ट्राइक की भी या नहीं ? अगर की तो मारे क्या ? मारे तो कितने मारे ? अगर मारे तो क्यों मारे ? कुछ लोगों की छोटी सी हरकत की सजा बेचारे पूरे देश को क्यों देना चाहिए ? वो नादान लोग तो आदतन अपराधी हैं । कोई अनोखी बात नहीं हुई है । वे सीमा
में घुसते रहे हैं, चालीस पचास लोगों को मारते रहे हैं और
शांति से चले जाते रहे हैं । इससे हमें कोई बड़ा फर्क नहीं पड़ता है । हमारे इस महान
देश में पैंतीस बच्चे हर मिनिट और प्रतिदिन पचास हजार बच्चे पैदा होते हैं । आतंकवादियों
को देश की कर्मठ जनता रचनात्मक तरीके से करारा जवाब दे रही है । थोड़े से बाल तोड़ने
से रीछ के बदन पर बालों का टोटा होता है क्या !? लेकिन सरकार
जनता की इस अपूर्व अहिंसात्मक क्षमता और सामर्थ्य की उपेक्षा कर रही है । हम लोग गांधीवादी हैं, देश
गांधी का मुल्क हैं । अहिंसा हमारा सबसे बड़ा हथियार है । गोले बरसाना हमारी
संस्कृति नहीं है और न ही नीति रही है । जब मुंबई पर 26/11 को हमला हुआ था तब भी
सेना तैयार थी लेकिन सरकार ने गांधीवाद की रक्षा का बड़ा निर्णय लिया । नजरिया साफ
होना चाहिए । अगर उनके देश में जनसंख्या वृद्धि की समस्या होगी तो वे अपने तरीके
से हल करेंगे । हमें उनके फटे में गोले फोड़ने की क्या जरूरत है ! अगर कोई एक थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल आगे कर
देना हमारी रक्षा नीति में शामिल है । वो
चालीस मर कर गए .... तो आगे क्या आप समझ गए होंगे ।
बयान दे कर असर देखने के लिए शैम
टीवी खोल कर बैठ गया । सोचा सरदार देखेगा तो खुस्स होगा, सब्बासी देगा । पहली चपेट में सरदार खुश हुआ भी । लेकिन पता चला कि राजनीति
के बाज़ार में मचमच मचने लगी है । ऐन चुनाव के पहले अगर देश थू-थू करने लगे तो
पार्टी उस थुक्के में ही डूब सकती है । खतरे को भाँप फौरन से पेश्तर यू टर्न मार के
सरदार ने खुद ही ‘आक थू’ कर दिया । कहा
कि ये बयान शैम का निजी विचार है और पार्टी का इससे कोई लेना देना नहीं है । किसी
एक आदमी के बयान की सजा पूरी पार्टी को नहीं दी जा सकती है । राजनीति में ऊलजूलूल
बकने की स्वस्थ परंपरा रही है । शैम शैम के बयान को भी इस परंपरा का हिस्सा समझा
जाना चाहिए । जैसे कभी एक बयान के बाद बड़े नोट कागज का टुकड़ा रह गए थे उसी तरह देश
के सामने शैम नाम के ही पितर रह गए थे । शैम ने सफाई देते हुये साफ किया कि मैंने
तो एक नागरिक के तौर पर सवाल किया था । सवाल करना हर नगरिक का अधिकार है और जरूरी
नहीं कि वैज्ञानिक होने के बावजूद किसी का हर सवाल बुद्धिमत्ता पूर्ण ही हो ।
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