हवा
का मायका वह खास जगह होती है जहाँ से हवा बकायदा पैदा होती है । हवा हर कहीं या हर
किसी से पैदा नहीं होती है । कुछ लोग हवा पैदा करने में पुश्तैनी दक्ष होते हैं ।
वैसे विशेषज्ञों का कहना है कि हवा पैदा करने में मादा जाति की सक्रियता ऐतिहासिक
तौर पर देखी जा सकती है । देश में एक बार बहुत पहले ‘गरीबी हटाओ’ की हवा पैदा की गई थी जो बरसों चलती रही
। लोगों को लगा था कि हवा चली है तो एक न एक दिन गरीबी भी हटेगी । लेकिन हवा थी, कहाँ चली गई किसी को पता नहीं चला, अलबत्ता गरीबी मौजूद
है । किसी शायर ने कहा है कि ‘मैं हवा हूँ कहाँ वतन मेरा ; दश्त मेरा न ये चमन मेरा ‘ ।
किन्तु एक फाइदा हुआ, तब बड़े बड़े राजनीतिज्ञों तक ने माना कि लोकतन्त्र हवा की बुनियाद पर है ।
तभी से जब भी चुनाव आते हैं पार्टियां हवा पैदा करने की कोशिश में जी जान से जुट
जाती हैं । भारत की जनता भी समान्यतौर पर हवा प्रेमी होती है । वह सरकार के कामकाज
या पार्टियों के घोषणा पत्र से नहीं हवा से तय करती है कि उसका वोट किसको जाएगा ।
एक समय था जब बिहार में लालू की हवा थी तो अंगूठे से राबड़ी राज कर गई पाँच साल तक
। बाद में जब हवा निकल गई तो खबरों में सिर्फ सास, बहू और तकरार
बची रह गई । अभी बंगाल में हवा के नाम पर धूल के गुबार उठ रहे हैं । जिन्हें हवा बनाना
है वे तूफान उठाने के चक्कर में पड़े हैं । लोग कहते हैं कि दिल्ली की हवा में
प्रदूषण बहुत है । जिस इलाके में दो दो राजधानियाँ होंगी वहाँ प्रदूषण ही हवा होती
है ।
वैज्ञानिक
बताते हैं कि दुगने हायड्रोजन और ऑक्सीज़न से मिल कर पानी बनता है । उसी तरह दुगने
झूठ और आधे सच से राजनीति में हवा बनती है । जो इस फार्मूले को जानते हैं वो आसानी
से हवा बना लेते हैं । जो नहीं जानते उन्हें पैत्रक अध्यक्षता से भी हाथ धोना पड़ता
है । अपने यहाँ हवा बनाने के बहुत से तरीके प्रचलित हैं । आमतौर पर पार्टियां उल्टे
सीधे बयान दे कर हवा बनाया करती हैं । बनाने वाले भोजन-भंडारे और कथा-कीर्तन से भी
हवा बना लेते हैं । धर्म-मजहब वगैरह अपने आप में एक बनी बनाई हवा हैं । इसे महज राजनीतिक हवा बनाने की जरूरत होती है । ये
अपेक्षाकृत आसान किन्तु जोखिम भरा काम है । लेकिन जो जीता वो सिकंदर ।
हवा
केवल राजनीति की गलियों में ही नहीं चलती है । हवा हर कहीं है, यानि हर घर में हर आदमी में । हवा का कुछ नहीं लेकिन हवा से सब कुछ है । बेईमान
आदमी जरा से तिलक चोटी की बदौलत अपने पक्ष में ईमानदारी की हवा बना लेता है । इधर
एक शायर हुए हैं जो अब बड़े हैं । शुरुवाती दिनों में जब भी वे मुशायरे पढ़ने जाते
थे अपने साथ पौन दर्जन गुर्गे भी ले जाते थे । जिनका काम था उस्ताद की हवा बनाना ।
उस्ताद एक शेर पढ़ते और गुर्गे आसमान सिर पर ले लेते । उस जमाने में जो हवा बनी
उसने उन्हें एक मुकाम दिलवा दिया और किसी को पता भी नहीं चला । हवा का ऐसा ही है, पता नहीं चलता और बन जाती है । वे हवादारों के आज भी अहसानमंद हैं । यही
फार्मूला एक बापू नुमा संत ने अपनाया और बड़े बड़े नेताओं के सिर अपने चरणों पर रखवा
लिए । घटिया आदमी भी हवा के दम पर सफल हो गया । हैदराबादी नेता ने किसी संदर्भ में
कहा था कि जिनमें ताकत है वो पैदा कर सकते हैं । लोगो ने समझा कि वे बच्चे पैदा
करने की बात कर रहे हैं । नहीं, वो हवा पैदा करने की नाकाम
कोशिश कर रहे थे ।
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