“ये
क्या, तुम दिन भर फोन पर लगे रहते हो ! कुछ आगे-पीछे का,
आज-कल का ध्यान तो रखा करो कि उठाया फोन और लगे खयाली खेत जोतने ।“ सुनीला से आखिर
रहा नहीं गया । उन्हें असल में गुस्सा इस बात का है कि उनके घरेलू काम बढ़ गए हैं
इन दिनों और ये जनाब पड़े पड़े हांक रहे हैं । तोंद कोरोना के आंकड़ों की तरह हर दिन
बढ़े जा रही है और ये सरकार कुछ करने की बजाए सहलाए जा रहे हैं बस ! जैसे तोंद न हो
मटका हो खजाने का ।
“लॉकडाउन
है भई ! किसी से बात भी नहीं करूँ क्या ! हर आदमी घर में खाली खोपड़ी ले कर खाली
बैठा है । जानती हो अगर लोग बात नहीं करेंगे तो सरकार के बारे में उल्टा सीधा सोचने
लगेंगे । यह कोई अच्छी बात थोड़ी है ‘हमारे
लोकतन्त्र’ के लिए ।“ अरुण बोले ।
“ढ़ोल
पीट पीट कर बताया जा रहा है कि मोबाइल फोन से वायरस फैलता है । पता हैं कोरोना कान
से घुसता है ! दिन भर कान और मुँह से सटाए रखोगे तो किसी दिन चपेट में आ जाओगे फिर
मुझे कुछ मत कहना हाँ ।“ सुनीला देवी ने अपनी ज़िम्मेदारी का खुलासा किया ।
“मेरे
फोन में वायरस नहीं है । कल ही विस्की से साफ किया है मैंने ।“
“हर
कोई फोन में विस्की बर्बाद नहीं करता है । ... और वायरस अगर सामने वाले के फोन में
हुआ तो ? जो चीन से पूरी दुनिया में जा सकता है वो एक से दूसरे फोन में नहीं आ
सकता है क्या ? वो वायरस है शांताबाई नहीं जो पूरे कोरोना
सीजन नहीं आएगी ।” देवी का दर्द ।
“शांताबाई
की तरह वायरस भी फोन से आता या जाता नहीं है । समझी ?”
“पैसा
आ सकता है जा सकता है, फोटो-वीडीओ आ-जा
सकते हैं तो वायरस को अलग से सिम की जरूरत पड़ेगी क्या !?
सारे लोग सावधानी रख रहे हैं एक तुम्हारे पास ही हैं अकल के बीज । .... कभी आईने
के सामने भी खड़े हो कर अपनी कमाई को भी देख लिया करो । ”
“देवी, कोरोना का वायरस छूने से फैलता है । और मैं मूरख नहीं हूँ, जानकारी रखता हूँ । बोलने बात करने से इसका कोई संबंध नहीं है ।“ अरुण ने
सूक्ष्म बाणों पर ध्यान न देने की नीति अपनाई ।
“ये
तो मानते हो ना कि हमारे नेता, वो चाहे किसी
भी पार्टी के हों, सब जनता की सेवा के लिए काम करते हैं ?”
“इसमें
भला किसी को क्या शक है । हमारे देश में हर कोई जानता है कि हमारे नेता सेवा के
लिए ही राजनीति करते हैं ।“
“तो
बताओ लॉकडाउन के बाद कोई बोल रहा है पहले जैसा ! वो हैदराबाद वाले दोनों शांतिदूत
कहाँ गए जो बोल बोल के बिरियानी पकाते थे । कोरोना के कारण स्मृति लोप हो गई, लोग माया-ममता तक सब भूल गए । पार्टी प्रवक्ता को टीवी की भट्टी में झोंक
कर सारे नेता क्वारंटाइन हैं तो ऐसे ही नहीं । सब जानते हैं कि बोलने से वायरस
फैलता है ।“ नीलीपीली होते हुए वे बोली ।
“दूसरे
कोई बोलें न बोलें, टीवी वाले तो खूब बोल
रहे हैं ना । अब कहोगी कि टीवी समाचारों से भी कोरोना फ़ैल सकता है !“
“फ़ैल
क्यों नहीं सकता है ! जब टीवी से आलस्य,
मोटापा और चटोरापन फ़ैल सकता है कोरोना क्यों नहीं ?“
अरुण
को हथियार डालने में समझदारी लगी, बोले – “चलो
ठीक है फोन रख देता हूँ, अब तो खुश ।“
“सिर्फ
फोन रखने से क्या होगा !! अपनी तौंद भी रख कर आओ कहीं ।“
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