धरम
का काम था । धरम के काम बहुत कठिन होते हैं लेकिन करना पड़ते हैं । धराधीश की धरम
करम में कोई आस्था नहीं है, लेकिन राजनीति में
है । वैसे राजनीति में रोजना कौन किसी की पीठ खुजाता है । सच पूछो तो राजनीति
कुर्सी के पाए से बंधी कुतिया है । जिसे बैठना हो उसे कुतिया की पीठ सहलाना ही
पड़ती है । धंधे के लिए आदमी को क्या कुछ नहीं करना पड़ता है । इसी के चलते धराधीश
धर्म आयोजन में मगज़मारी करना पड़ी । एक तो लोकतन्त्र में मीडिया वालों की बड़ी
दिक्कत है । जरा जूता पहन कर दीपक जला दो तो फोटो खींच लेते हैं । मन मसोस कर रह
जाना पड़ता है । वैसे देखा जाए तो खुद उनकी चरण पादुकाएँ लोकतन्त्र का मंदिर हैं और
उनको अपवित्र कहना या समझना राजद्रोह हो सकता है । लेकिन कुछ चीजें होती हैं जिन
पर धराधीश का भी वश नहीं चलता है ।
अभी
तक साधू संतों के पैर धुलवाने का चलन था । इससे महात्माओं का मनोबल बढ़ता है और वे धराधीश
के पक्ष में प्रवचन करते हैं । इधर सलाहकारों को नई सूझ पड़ी कि धराधीश श्रमिकों के
पैर धोएँ तो नया संदेश जाएगा प्रजा में । यह ऐतिहासिक घटना होगी क्योंकि श्रमिकों
के पैर आज तक कमरेडों ने भी नहीं धोए हैं । छोटे मोटे मामलों में घराधीश बहुत सोच
विचार के बाद निर्णय लेते हैं । अंदर से उनका मन नहीं हो रहा था । वे बोले – “ पैर
नहीं, अगर मुँह धुलवाएँ तो कैसा रहे ? सलाहकार बोले –
राजन, मुँह के साथ पेट जुड़ा होता है । राजनीति के लिए प्रजा
का पेट सबसे खतरनाक चीज होती है । पैर धोना सेफ है । धोया और फारिग हुए । बहुत हुआ
तो एक जोड़ी हवाई चप्पल दे कर बाहर निकला जा सकता है । लेकिन पेट !! आज तक किसी का
भरा है हुजूर । और ये भी देखिए कि मजदूरों के पैर धोने से अर्थव्यवस्था और बैंकों
की कर्जनीति पर कोई असर नहीं पड़ेगा । जो लोग दशकों तक गरीबी हटाओ का नारा लगाते
रहे हैं उन पर पाँच मजदूरों के पैरों की धुलाई भारी पड़ेगी । हर वर्ष अगर पैर धुलाई
का आयोजन रख लेंगे तो प्रजा में गरीब होने की होड मच जाएगी । ऐसे में गरीबी हटाओ
का नारा लगाने वाली पार्टियों पर लोग पत्थर ले कर दौड़ेंगे । असल राजनीति गरीबी
बनाए रखने में है ।
“तो
ठीक है, हम मजदूरों के पैर धोएँगे ।“ धराधीश बोले ।
स्थानीय
प्रशासन ने पाँच मजदूर पकड़े और उन्हें दूसरे मजदूरों से नहलवाया धुलाया और
सेनेटाइज करवाया । सबसे पहले कवर करने के लिए मीडिया जमा हुआ । ठीक समय पर धराधीश ने
लक़दक़ इंट्री ली । पांचों मजदूर डर के मारे काँप रहे थे । उन्हें लग रहा था कि कहीं
ऐसा न हो कि उनके पैर अब म्यूजियम में रखने के लिए ले लिए जाएँ । धुलाई के बाद धराधीश
आराम से टाटा करते निकल लिए ।
मीडिया
मजदूरों की ओर लपका । पूछा – “आप लोगों को कैसा लग रहा है धराधीश जी के हाथों पैर
धुलवा कर ?”
“बहुत
अच्छा साहब । हम बहुत खुश हैं । पैर बच गए हमारे, हमें और कुछ नहीं चाहिए ।“ वे बोले ।
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गजब। धारदार। कहीं कोई धराधीश पढ़ ले तो फिर वह मुँह तो नहीं ही धोएगा। कदाचित पैर भी धोना छोड़ दे।
जवाब देंहटाएंआपका अभिनन्दन।