जब से
बाज़ार ठंडा हुआ है आफ़रों के अलाव जल गए हैं । इधर दिन भर फोन आ रहे हैं, कार ले लो साहब । कीमत
में छूट देंगे, सोने का असली सिक्का भी देंगे, एक्सेसरिज फ्री दे देंगे, नगद नहीं हो तो उधार
देंगे, लोन फटाफट देंगे, ईएमआई बाटम से
भी नीचे वाला लगा लेंगे । बैंक की पहली किश्त आप मत देना हम दे देंगे, पाँच लीटर पेट्रोल भर के देंगे । सरकार ने करोड़ों खर्च करके सीमेंट वाली
सड़कें बनवाई हैं तो उससे चिपक के चलो । और क्या चइए आपको !?
सोचो मत, हमने सोच लिया है । आप तो आधार आईडी लाओ और हथोहाथ
कार ले जाओ । आज की देत में किराने वाला उधार
नहीं दे रहा किसीको, आपके लिए नई कार उधार है । जमाने
के लिए मंदी है, आप ‘साहब’ के लिए
उपहार है ।
चारों
तरफ चर्चा है कि बाज़ार ठंडा है । ठंडा होता है बाज़ार लेकिन गरमी कारोबारियों के अंदर
बढ़ जाती है । वो पसीना पसीना हो रहे थे । पूछा
तो लाचारी से कहने लगे – बुरे हल हैं । क्या करें ! पूरा बाज़ार ठंडा हो गया है । कायदे से बाज़ार अगर ठंडा है तो स्वेटर पहनो ।
लेकिन नहीं, बाज़ार की ठंड स्वेटर से नहीं भागती है । और न ही एसी की ठंडक से
दूकानदारों का पसीना सूखता है । उस पर टीवी का हँगामा कि पड़ौसियों को नानी याद
दिला देंगे । मंदी के जलों पर पाकिस्तानी सेंधा नमक अलग से । कोई हाय हाय करना
चाहे तो देशद्रोही कहा जाए । कहते हैं दूध देने वाली गाय की लात भी खाना पड़ती है ।
लेकिन इधर दूध-मलाई देने वाले बाज़ार की
कोई सुन ही नहीं रहा है । गइया मइया और देशभक्ति वगैरह के चलते बाज़ार की क्या औकात
! भैया, दादा, बाउजी बोलते चिल्लाते गला
सूख जाता है । कल ही बाज़ार ने के. के. महाकाले
से पूछा कि इस बार तो दीवारों पर रंग करवाओगे ना ? महाकाले
ने साफ माना कर दिया - कोई गुंजाइश नहीं है भाई । हाथ तंग है , उम्मीद भंग है , जिम्मेदारियों का लश्कर संग है , चितकबरे के साथ दीवारें अभी मस्त है, बैंक अकाउंट
पस्त है ।
लोग
नरपति के पास पहुंचे तो सुन कर वे भी गरम हो गए । बाज़ार कमबख्त बाज़ार है वरना एकाध
माबलिचिंग करवा देते तो सहम जाता । नरपति गरम हो तो पूरे दरबार को गरम होना जरूरी
है । लेकिन दरबार की गरमी से भी बाज़ार की ठंड दूर नहीं हुई । मीडिया मुँह में
घुसने लगा तो बोले मंदी हो या ठंडापन, सब नाटक है विपक्ष का । विकास को देखोगे तब दिखेगा
ना । चप्पल वाले लोग भी अब हवाई सफर करने लगे हैं, डेढ़ जीबी
डाटा खर्च करने वालों को अब दो जीबी भी कम पड़ने लगा है, हर
हफ्ते दो नई फिल्में लग रहीं हैं और हाउसफुल हो रही हैं तो कहाँ है बाज़ार में ठंडापन
!? इसी बाज़ार में अपने मुकेश भाई नहीं है क्या ? उसका तो बढ़िया चल रहा है । दुनिया के टॉप टेन में शामिल हुए हैं । जिनके
भाग्य खोटे हैं उनके लिए दरबार कुछ नहीं कर सकता है । लोग धर्म से दूर होंगे और
दोष बाज़ार को देंगे तो यह नहीं चलेगा ।
“सर, जनता कष्ट में है दुख
का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है । इसका कुछ कीजिए । “
“ग्राफ
बढ़ रहा है तो इसमे बुरी बात क्या है !! बढ़ने
दो, हम दुख
का नाम बादल कर सुख कर देते हैं । .... सुख का ग्राफ बढ़ेगा तो किसी को दिक्कत होगी
क्या ?
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