बिना
नाम लिए उन्होने फिर किसी को देशभक्त कहा और हँगामा हो गया । टीवी से ले कर
अखबारों तक में मचमच हो गई । हर तरफ एक ही बात है कि “हाय-हाय देशभक्त कह दिया “ ।
चर्चित होने के लिए, मीडिया में छा जाने के लिए लोगों को क्या क्या पापड़ नहीं बेलना पड़ते हैं
। अगर कोई दो जुमले बोल कर पीली रौशनी में आ जाए तो क्यों नहीं बोले । उसे पता है
कि जरा सी जबान हिला देने से काम चल रहा है तो किसीको जनसेवा का पूरा कत्थक करने
कि जरूरत क्या है ! महीने पंद्रह दिनों में बस एक बार बिना नाम लिए ‘देशभक्त’ बोल दो, हो गया काम ।
नेता वही जो चर्चित हो, काम करने के लिए तो अफसर होते हैं, महकमें होते हैं । कई बार बोलने का मन नहीं भी होता है तो रिपोर्टर
मुँह में माइक घुसेड़ कर जुमले का जन्म करा लेते हैं । कुछ लोग इसको जबरन जुमला मानते
हैं, मीडिया वाले हेडलाइन कहते हैं और टीवी वाले टीआरपी ।
सबको अपने हिस्से का कुछ न कुछ मिल जाता है । ऐसे में इसे विवादास्पद क्यों कहा
जाता है इस पर कोर्ट की राय लेना चाहिए ।
लेकिन
पार्टियों का मामला अलग है । सबके महापुरुष अलग हैं । एक पार्टी में जो महापुरुष
है वो दूसरी पार्टी में महाअपराधी है । कई बार पार्टियां दिल पर ले लेती हैं ।
किसी ने समझाया कि भाई देशभक्त एक साथ कई लोग हो सकते हैं । दंगल में दो व्यक्ति
कुश्ती लड़ रहे हैं, एक दूसरे को पटक रहे हैं, एक दूसरे के विरुद्ध हैं
लेकिन दोनों ही पहलवान कहलाते हैं । जब देशभक्त कहने वाले भोले से पूछ गया तो
उन्होने कहा – “हर आदमी की दुनिया अलग होती है, हरेक का
स्वर्ग और नरक अलग अलग होता है । मयखाना किसी के लिए स्वर्ग है तो किसी के लिए नरक
। डाकू, गुंडे वगैरह किसी के लिए अपराधी हैं तो किसी के लिए
रक्षक और सहायक हैं । इसी तरह देशभक्ति को भी समझा जाना चाहिए । मेरा संसार अलग है, मेरा देश अलग है, मेरे वोटर अलग हैं और मेरे
देशभक्त भी मेरे वाले हैं । बाकी आप समझदार हैं । “
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