शनिवार, 2 नवंबर 2019

पाश कालोनी में कोपभवन


बंगले के बाहर जहां नेमप्लेट वगैरह लगी होती है, एक छोटा सा विज्ञापननुमा बोर्ड लगा था “कोपभवन सुविधा उपलब्ध है “ ।
 माया प्रसाद इसे देख कर ठिठक गए । बात को समझने के लिए कालबेल बजाई । मालिक मकान भण्डारी प्रकट हुए और बोले मैं एडवोकेट भण्डारी हूँ, कहिए । मायाप्रसाद ने देखा कि नेमप्लेट पर उनके भण्डारी और एडवोकेट होने की सूचना है पर कोपभवन के आगे उस पर ध्यान ही नहीं गया ।
“जी मैं कोपभवन के बारे में ...... “
“अभी तो खाली नहीं है । “ उन्होने टका सा जवाब दिया ।
“जानना चाहता हूँ, क्या है कोपभवन में... किसे देते हैं । “
“देखिये, ऐसा है कि महीने में एक दो बार कुपित होने के ऐसे मौके आ जाते हैं जब पुरुषों को, खास कर पतियों को एकांत की जरूरत पड़ जाया करती है । .... इसलिए यह सुविधा बनाई गयी है । “
“पुरुषों को !! ... स्त्रियों को भी तो कुपित होने का जन्मसिद्ध अधिकार है । उन्हें नहीं देते हैं क्या ?”
“स्त्रियों की बात अलग है । वे जब कुपित होती हैं तो पूरे घर को कोपभवन बना सकती हैं । यह योग्यता और क्षमता पुरुषों में नहीं है । वे मुंह फुलाए ड्राइंग रूम में बैठें या बेडरूम में पड़े रहें, न कोई  पूछता है और न किसी को कोई फर्क पड़ता है । अक्सर झक मार कर उसे ही आपना राम नाम सत करना पड़ता है । अगर वे अपना मारक और निर्णायक समय हमारे कोपभवन में बिताएँ तो न केवल उनका मान बचा रहेगा बल्कि उनकी सम्मानजनक घर वापसी भी होती है । एक फायदा यह भी होता है कि दूसरी बार अपमानजनक स्थिति जल्दी नहीं आती है । सामने वाली पार्टी सुबह शाम की मोर्चाबंदी में थोड़ी ढ़ील देने लगती है ।
“मैं तो वरांडे में बैठ जाता हूँ और आते जाते लोगों को देखता रहता हूँ । मेरा तो टाइम पास हो जाता है मजे में । “
“आपका टाइम पास हो जाता है लेकिन सामने वाली पार्टी क्या करती है ये सोचा है ? दरअसल होता यह है कि किसी असहमति या अपमान के चलते जब आप रूठे बैठे हैं तो सामने वाली पार्टी इसका मजा लेने लगती है । वो समझौता वार्ता के लिए कोई पहल नहीं कर के आग में घी डालने का काम करती रहती है । आपको धीमी आंच में लगातार इतना पकाती है कि आपका बोनमेरो तक अपनी जगह छोड़ने लगता है । कोपभवन इस अपमानजनक स्थिति से आपको बचाता है । सही बात तो यह है कि हम इस जटिल एकांत को गरिमा प्रदान करते हैं । “
“भण्डारी जी, यह जो आप मर्द-मान की रक्षा कर रहे हैं, सचमुच अद्भुत है । लेकिन एक कमरे में एकांत काटना कितना मुश्किल होता होगा ! अगर कोई मनाने नहीं आया तो बेचारा कूद कर जान दे देगा ! कौन सी मंजिल पर है आपका कोपभवन ?”
“तीसरी मंजिल पर । लेकिन ऐसा होगा नहीं जैसा आप सोच रहे हैं, क्योंकि इसके लिए हिम्मत चाहिए, यू नो वो बेचारा पीड़ित, प्रताड़ित पति होता है । उसमें किसी किस्म की हिम्मत नहीं होती है ।“ 
“फिर भी एक कमरे में बंद उसका मनोबल टूट जाएगा । “
“यहाँ आने वाले को लगता है कि उसके स्वाभिमान की रक्षा हो गई है, सो निराशा तो समझिए कि पूरी समाप्त हो जाती है । रहा सुविधा का सवाल तो सब दिया जाता है । रूम अटैच्ड टाइलेट है, बेड विथ बत्तीस ईंची टीवी है, फ्रिज विथ सोडा-विस्की है, सीडी प्लेयर और दो सौ अच्छी बुरी फिल्मों की लाइब्रेरी है । अखबार, पत्रिकाएँ और किताबें भी हैं । फ्री वाइफाइ भी है । सबसे बड़ी बात आज़ादी है कुछ भी करने या न करने की । और क्या चाहिए आदमी को !?

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