शनिवार, 30 मार्च 2024

2024 - एक लव स्टोरी


 




टायगर और गीदड़ी लिवइन में रह रहे थे । गीदड़ी ने कई बार कहा कि अब शादी कर लेते हैं । लेकिन टायगर नहीं माना । उसे डर था कि कहीं वह शादी के बाद गीदड़ न हो जाए । न हो वह गीदड़, अगर गीदड़ी टायगरन हो गयी तो भी दिक्कत हो जाएगी । जात पांत और विचारधारा भी अलग होने के बावजूद गीदड़ी से उसका प्यार परवान चढ़ा था । यों तो जंगल वाले किसी टायगर पर भरोसा नहीं करते हैं लेकिन गीदड़ी जिगरे वाली है । कहती है प्यार किया तो डरना क्या ! अब  सर फूटे या माथा ... मैंने तो हाँ कर ली । बस इसी बात पर वह फ़िदा था । वह शहर भी जाती थी । कहते हैं कि गीदड़ की मौत आती है तो वह शहर की ओर जाता है । लेकिन वह नयी सोच वाली, अन्धविश्वास से दूर और जांबाज़ है ।

पिछले दिनों गीदड़ी जब जब भी शहर से लौटी तो अपने टायगर के लिए कुछ समोसे लेकर आई । यूनो, मादाएं कोई भी हों वे प्रायः अपनी भावनाएँ अलग और सुन्दर ढंग से व्यक्त करती हैं । टायगर को समोसों का ऐसा स्वाद लगा कि वह आएदिन गीदड़ी को शहर भेजने के बहाने ढूंढते रहता । ज्यादा समय नहीं लगा, टायगर चटोरेपन की चपेट में आ गया । शिकार की उसकी आदत जाती रही । गीदड़ी के कारण उसके दिन समोसानंद में गुजरने लगे ।

इस जंगल के लोग भी मानते हैं कि ‘समय कह कर नहीं आता है’ । एक बार गीदड़ी शहर गयी तो लौटी नहीं । टायगर जंगल-टीवी देखता इंतजार करता रहा । हत्या, बलात्कार, यातना की कैसी कैसी तो खबरें आती हैं, सुन ले तो जंगल वाले अपनी लेडिज को शहर भेजने से पहले दस बार सोचें । वह पछताया कि उसने अपनी गीदड़ी को समोसों के लिए शहर भेज दिया ! अगर वह किसी गीदड़ से प्यार करती तो शायद वे दोनों साथ साथ शहर जाते और गोलगप्पे खाते । इधर वह राजा होने का मुगालता पाले खुद जंगल में पड़ा रहा और उसे शहर की आग में झोंक दिया । इन विचारों के चलते उसे भूख भी लग रही थी । गीदड़ी से ज्यादा उसे समोसे याद आने लगे । ऐसा होता है सबके साथ । लोग कहते हैं कि वे डाकिये का इंतजार कर रहे हैं, जबकि वास्तविकता ये है कि वे चिट्ठी का इंतजार करते हैं । तीन दिन हुए आखिर टायगर गीदड़ी को ढूँढने के लिए शहर आना पड़ गया ।

तीन दिन की भूख, प्यास और थकावट के कारण टायगर बेदम हो रहा था । बेबसी के इस आलम में एक टीवी पत्रकार ने उसे देख लिया और उस पर झपटा । माईक उसके मुंह में अड़ा कर पहला समसामयिक सवाल मारा, -  क्या किसी पार्टी से आपको सदस्यता का पक्का आश्वासन मिल चुका है ?

टायगर ने कहा – नहीं ।

दरअसल गीदड़ी ने एक बार बताया था कि जब वह प्रेस वालों के बीच फंस जाती है तो एक सवाल का जवाब “नहीं”  और दूसरे का “हाँ” में देती है । टायगर को उसकी सीख याद आ गयी ।

“तो क्या आपका मोहभंग हो गया है जंगल वालों से ?” दूसरा सवाल ।

“हाँ” ।

“क्या अब आप राजनीति से सन्यास ले रहे हैं ?”

“नहीं “ ।

“तो क्या यह मान लिया जाये कि किसी पार्टी के अध्यक्ष से आपकी बात चल रही है ?”

“हाँ” ।

“पार्टी का नाम आप नहीं बता रहे हैं तो ये बताइए कि आप गोमांस खाते हैं ?

“नहीं” ।

“झूठे वादे करना जानते हैं ? लम्बी लम्बी छोड़ लेते हैं ?”

“हाँ” ।

“कभी कोई लज्जा, शरम, अपराधबोध होता है ?”

“नहीं “ ।

“भ्रष्टाचार के बारे में सुना होगा ? कर लोगे ?”

“हाँ “ ।

“बेरोजगारी के बारे में कुछ पता है ?”

“ नहीं । “

“एक फोटो ले लूँ ?”

“हाँ हाँ “ ।

“कुछ कपड़े-वपड़े पहनना है ?

“नहीं” ।

“शीर्षक लगाऊंगा ‘राजनीति में नंगा टायगर’ । चलेगा ?”

“हाँ “ ।

टीवी पत्रकार फोटो ले कर चला गया । जाते जाते बोला कि मुझे पता चल गया है कि किधर से आये हो और किधर जा रहे हो । बधाई हो, कल कुर्सी मिल जाए तो याद रखना ।

टायगर को गीदड़ी का पता चाहिए था । सोच रहा है कि काश शहरों में टीवी पत्रकारों के साथ जटायु के वंशज भी होते । पता नहीं गीदड़ी कहाँ है, किस दुकान पर खड़ी होगी । ...... कुछ मिनिट ही हुए थे कि टीवी वाला फिर प्रकट हुआ । इस बार उसके साथ वन विभाग वाले जाल फैंकने की तैयारी में थे ।

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