‘‘ का हो घुइयाँ ..... क्या हाल हैं ? ’’
ः राम
राम बाबू ... गरीब का भी कोई हाल होता है बाबू !
‘‘ अरे जिन्दा हो तो कुछ हाल भी हुए ना ..... कि नहीं हुए ? ’’
ः हां
..... आप कै रए तो कौन मने कर सकत है ... हाल हुए तो ।
‘‘ वही तो पूछ रहे हैं ... क्या हाल हैं ? ’’
ः वोई
हाल हैं जो बाप-दादा के रहे। .... हाल के लाने पूंछो तो खानदानी हैं।
‘‘ ऐसा कैसे रे घुइयाँ ! बाप-दादा चवन्नी-अठन्नी कमाते थे, उनसे तो ज्यादा नहीं कमाते हो तुम ? ’’
ः उ
बखत मा बड़ी औकात रही चवन्नी-अठन्नी की। अब ससुरा सौ का नोट भी लजाऊ हो गया है ।
‘‘ अरे सुना नहीं तुमने कि अनाज, इलाज सब फिरि-फ़ोकट मिल
रहा है । सबके अच्छे दिन आ गए हैं ! ऐसे में तुम्हारा फर्ज है घुइयाँ कि खुश हो
जाओ। ’’
ः अरे
का बाबू .... कहने से कौनो खुसी आती है का ?! अच्छा दिन जिनका आया उनका आया ... सबका
थोड़ी आया है ।
‘‘ ऐसा क्या ! ... फिर ? ’’
ः फिर
का बाबू .... आपही बताओ।
‘‘ वोट तो डालोगे ना ? चुनाव लगे पड़े हैं
सामने । ’’
ः
गरीब तो सबही डारैंगे, किसी के लिए मनै थोड़ी है।
‘‘ सबकी छोड़ो, तुम डालोगे या नहीं ? ’’
ः
अभही का कहें बाबू .... मन हो जाई तो डार देंगे।
‘‘ अरे इसमें मन की क्या बात है .... मन नहीं हुआ तो नहीं डालोगे ?’’
ः कछु
कैं नहीं सकत बाबू , डार भी दैं ना भी डारैं।
‘‘ पिछली दफे डाला था ?’’
ः हओ
... डारै रहे।
‘‘ मन हो गया था डालने का ?’’
ः हओ
...
‘‘ कैसे हुआ था मन ?’’
ः वा
लोगन ने गांधी बाबा के दरसन करबाए .... तो मन हो गया। बाबा का मान तो रखबै को पड़े।
‘‘ इस बार दरसन नहीं हुए बाबा के ?’’
ः अभी
तलक तो नहीं हुए .... हो जैहें, ..... अभी टैम है।
‘‘ कौन से गांधी के दरसन की इच्छा है ?’’
ः
इच्छा की बात नै है, रिबाज की बात है । पांच सौ बाले दो के करवा दओ।
‘‘ हजार !! घुइयाँराम गांधी बाबा तो बीस-पचास में भी लगे पड़े हैं।’’
ः पड़े
होएंगे .... जा में बाबा कोई काम के नहीं हैं।
‘‘ काम के कैसे नहीं हैं ! सरकार रुपइया किल्लो गेंहूं देती है, दो रुपइया में चावल किल्लो भर ।’’
ः
कभहीं देखे हो सरकारी गेहूं-चावल ! गइया-भैंसी को डारो तो खाए नहीं ।
‘‘ तो हजार से कम पर मानोगे नहीं। ’’
ः मन
के खातिर पैसा मांग रहे हैं बाबू । गरीब आदमी के पास कब मौका आता है !
‘‘ अरे !! जरा सा तो काम है यार । बटन दबाना है बस । ’’
ः आप
लोग बटन दबाने का कितना तो लेते हो बाबू ।
‘‘ हम कहां लेते हैं ! तुम तो बदनाम कर रहे हो खिलावन। ’’
ः
नौकरी, भत्ता, पेंसन, उप्पर-नीचे की कमाई, ठेका-कमीसन .... । का हम
जानते नहीं बाबू!
‘‘ ये बटन दबाने का मिलता है क्या ! काम करते तब मिलता है।’’
ः
कितना काम करते हो बाबू हमें पता है। मुंह ना खुलवाओ।
‘‘ तुम तो लड़ने पर आमादा हो गए घुइयाँ ।’’
ः
बाबू हम हक्क की बात करत हैं तो संसार को लगता है कि लड़ते हैं।
‘‘ देखो वोट के लिए पैसा लेना-देना गलत बात है। ’’
ः कोई
बाद में लेत है कोई पहले मांगत है। .... एक बार बटन दबवा लेने के बाद हमार कोई
इज्जत है !! ... रुपइया किलो का सड़ा गेहूं हो जाते हैं
हम । नाम भरे के ।
‘‘ नाराज हो गए घुइयाँराम । चलो छोड़ो ... और बताओ ... क्या हाल हैं ?’’
ः
गरीब का हाल कोई सुन सकता है बाबू ! ..... जिगर चहिए । ऐसन कोई सरकार होई कभी ?
“छोडो घुइयाँराम ... हमसे क्यों झूठ बुलवा रहे हो । तुम ठहरे खानदानी गरीब ।
तुम ही लोकतंत्र की आत्मा हो । अजर अमर हो । “
०: का
बोले बाबू !?
“तुम नहीं समझोगे घुइयाँराम ।“
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