बुधवार, 22 मई 2024

हमारे आदमी


 


पिछले कुछ दिनों से मुझे लग रहा है कि मैं उनका आदमी हूँ । पहली मुलाकात में उन्होंने कहा था कि ‘तुम तो हमारे अपने आदमी हो जी’ । मैं मना करना चाहता था लेकिन चुप रहा । मेरा अनुभव है कि जब भी लाठी लिया हुआ कोई आपसे बात कर रहा हो और आप असहमत हों तो चुप रहने में ही भलाई है । आपके पास जवाब देने ले लिए केवल जुबान है लेकिन उसके पास विकल्प भी है । वे जब भी मिले साढ़े पाँच फुट के विकल्प के साथ मिले और हर बार मुझे चुप रहना पड़ा । एक दिन बोले –“हमारे आदमी हो यह अच्छी बात है लेकिन तुम्हें हमारे आदमी की तरह लगना भी चाहिए “ ।

“आपका आदमी कैसा होता है ?” हिम्मत करके पूछ ही लिया ।

“हमारे आदमी भी आदमी कि तरह ही दिखाई देते हैं । उनके भी हाथ पैर शक्ल सूरत होती है । अक्सर हिन्दी बोलते हैं, मौका पड़ जाए तो हिन्दी में ही समझाते भी हैं । ... तुम्हें हिन्दी आती है ?”

“हाँ आती है । पढ़ना लिखना हिन्दी में ही करता हूँ ।“

“अच्छी बात है । ...गर्दन के ऊपर क्या है ?” उन्होंने सिर की ओर इशारा करते हुए पूछा ।

“सिर है ।“

“सिर क्या काम आता है ?”

“सोचने विचारने के काम आता है ।“

“यही गलत सोच है  ... सिर ठोस होना चाहिए । धर्म, संस्कृति, इतिहास, परपराओं और हमारी अपनी मान्यताओं से कूट कूट कर भर हुआ ठोस सिर ही असली सिर है । लेकिन आप चिंता मत करो । कुछ काम हम पर छोड़ दो । सिर सलामत रहेगा तो धीरे धीरे ठोस हो जाएगा ।“

“सिर तो ठोस ही होता है जी ! “

“ठोस नहीं, आमतौर पर पिलपिला होता है । ठोस होता तो हम हजारों साल विधर्मियों के गुलाम नहीं होते । देश को मजबूत करने के लिए लोगों को मजबूत करना जरूरी है ।... ये बात मानते हो ना ? ...  लोग तभी मजबूत होंगे जब सिर ठोस होगा । ठोस सिर ही ठोस कामों के लिए उपयोगी होते हैं । हमारी आज कि शिक्षा लोगों के सिर में दही जमा देती है । जरा सा  हिलते ही बिखर जाता है । लेकिन तुम चिंता मत करो, अब हमारे आदमी हो ।“

“जी मैं समझ गया । आपका मतलब है कि सिर नारियल की तरह होना चाहिए ।“

“नारियल सिर्फ ऊपर से ठोस होता है । अंदर या तो वह पानीदार होता है या फिर मलाईदार । हमें ठोस सिर होना ... भाटे की तरह ।“

“लेकिन भाटे वाला सिर तो ... !!”

“सोचो मत, ठोस सिर की ओर पहला कदम है सोचना बंद । जो कुछ भी कहा जाए उसे ठीक मानो । धीरे धीरे हमारी संख्या बढ़ेगी । हम अपने आदमी हर जगह बैठा देंगे । टीवी मीडिया में अपने आदमी, साहित्य अकादमियों में अपने आदमी, स्कूल कालेज और विश्वविध्यालयों में, प्रशासन में, सरकारी दफ्तरों में, सरकार में, यहाँ तक कि हर घर में अपने आदमी होना चाहिए । ये हमारा लक्ष्य है । एक दिन वो आएगा कि जिधर भी देखोगे हमारे आदमी दिखेंगे । देश शुद्ध रूप से हमारे आदमियों का देश बनेगा । ... कैसा लग रहा है तुमको यह सुनकर ?”

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