सोमवार, 20 फ़रवरी 2023

होली मूड - ४ नहीं मिल रही गाइड लाइन


 





            “आदरणीय कहीं कोई गाइड लाइन नहीं दिख रही है ! समझ में नहीं आ रहा है कि किस रंग से खेलें होली ।“ प्रीतम जी ने हरिराम जी से पूछा जो उनसे वरिष्ठ हैं । इसके आलावा वे मानते हैं कि हरिराम जी को इंटरनेट वगैरह का अच्छा ज्ञान है । भले ही पढ़े-लिखे कम हैं लेकिन गजब वाट्स एप चलाते हैं । 

            स को श बोलने वाले हरिराम जी दूनी चिंता के साथ बोले -“रंग को लेकर इतना प्राब्लम नहीं होगा । होली किनशे खेलना हैं और किनशे कतई नहीं इशकी गाइड लाइन मिलना जरूरी है । ऊपर वालों का कुछ इशपष्ट नहीं है । कभी कहते हैं विरोध करो कभी कहते हैं मेलजोल करो । उनके रंग शमझ में नहीं आते हैं ।“

           “आपका मत क्या है इस मामले में ?”

          “मुझे लगता है गरीबों के शाथ खेलना चाहिए इश बार । होली का मजा गरीबों के शाथ खेलने में ही आता है । उनकी छाती भी चौड़ी हो जाएगी जब देखेंगे कि शरकार होली खेल रही है उनके शाथ ।“ हरिराम  जी ने अपनी गहरी समझ का परिचय दिया ।

         “आप राजनीति में बहुत आगे जाओगे हरिराम जी । बस आप दो बातों को ठीक कर लो । एक तो ‘स’ को ‘श’ मत बोला करो । जब आप शरकार कहते हो तो डायबिटीज वालों का मनोबल गिर जाता है । राष्ट्रप्रेम से फिसल कर वे सीधे इंसुलीन में उलझ जाते हैं । और दूसरा ‘माता’ को सही बोला करो । आप मात्ता बोलते हो । ‘मात्ताओं-भैनों’ सुनते ही सब मोबाईल खोलने लगते हैं । और जब ‘भारात मात्ता की जे’ बोलते हो तब भी ...”

             इतना सुनते हरिराम जी आहत हुए । उन्हें लगा कि प्रीतम जी लाठी घुमा रहे हैं । बोले- “हम शमझ रहे हैं कि आप क्या कहना चाहते हैं । इतना वाट्श-एप तो हम भी पढ़े हैं । होली के बारे में जरा ज्ञान क्या दिया आप हम पर ही कीचड़ उछलने लगे ! कान तक की लाठी है हमारे पाश । और आपके पाश अभी कंधे तक की ही है । पात्रता के हिशाब शे आपको हमारा अनुशरण करना चाहिए ।“

           “आपको गलत फहमी हो गयी हरिराम जी । हम तो शुभचिंतक हैं आपके । हम देश के उतने निकट नहीं हैं जितने कि आपके करीब हैं । अगर आप सत्ता में आ जाते हैं तो हमें ऐसी कौन सी ख़ुशी है जो नहीं मिलेगी । आपके रास्तों की बाधाओं को देखना और हटाना हमारा काम है । इसी भावना से कहा, बाकी आपकी मर्जी है । वरना हम तो रंग के बारे में पूछ रहे थे आपने ही दिशा बदल दी ।“ प्रितामजी ने सफाई दी ।

            “हाँ रंग ! ... लाल शे खेल लो, शब खेलते हैं । शशता भी मिलता है ।“

           “लाल से खेल लिए और माननीय लोगों ने कमरेड समझ के पतलून उतरवा ली तो !?”

             “बात ठीक है ... लाल शे मत खेलना ।“

             “हरा भी रहने देते हैं ... केसरिया ले लें ?”

            “नहीं ... उशशे  तो शिर्फ माननीय खेलेंगे । कलर प्रोटोकोल का मामला है ।“

            “फिर हमारे लिए क्या निर्देश हैं !?”

           “ गोबर ... गोबर से खेलो । पवित्र है, प्रेरक है , शुना है शेहत के लिए अच्छा है । इशमें जन शन्देश भी है और गाईड लाइन में तो पहले शे ही शामिल है ।“ हरिराम  जी बोले ।

           “किसका गोबर ?”

            “तुम्हारे दिमाग में क्या भरा हुआ है ... अरे गऊ का और किसका !”

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