कुर्सी सम्हालते ही गब्बर ने साम्भा को साहित्य मंत्री बना दिया ।
साम्भा पहाड़ी पर बैठे बैठे चीलें
गिना करता था, नहीं जनता था कि एक दिन उड़ के लग जाएगी । कुरता-जेकेट पहन कर अभी
लौटा ही था कि सरदार ने पूछा – अरे ओ साम्भा, साहित्य में कितने पुरस्कार हैं कुल
मिला के ?”
“पच्चीस हैं सरदार ।“ साम्भा ने आदत
के अनुसार संक्षिप्त जवाब दिया ।
“पच्चीस !! पिछली सरकार वाले किसको
दे रहे थे इतने पुरस्कार ?!”
“सुना है ठाकुर के आदमियों को दे रहे
थे । ... वीरू और जयनुमा लोगों को ।“
“हूँ ... नहीं चलेगा अब । सब बदलेगा ...
अरे ओ कालिया, कहाँ मर गया ?”
कालिया दौड़ता हुआ आया, -“ हुकुम सरदार
... मैंने आपकी नमक वाली चाय भी पी है सरदार ।“
“इसी वक्त रामगढ़ जा और चौक से चिल्ला
कर सबको बता कि अब जो गब्बर-गान करेगा उसी को पुरस्कार मिलेगा । रामगढ़ में जब भी
चौपाल लगेगी और लोग कविता कहानी पढेंगे, किताबों के विमोचन होंगे तो अध्यक्षता
साहित्य मंत्री साम्भाजी करेंगे । तीज त्यौहार मनाएंगे, नाचेंगे, गायेंगे तो भी
अध्यक्षता साम्भाजी ही करेंगे । और ये भी साफ बता देना कि जिसे साम्भाजी कह देंगे
वही साहित्य माना जाएगा और जिसकी पीठ थपथपा देंगे वही साहित्यकार होगा । ... कुछ
और कहना है साम्भा ?” गब्बर ने पूछा ।
“सरदार वो जय-वीरू खूब लिख रहे हैं
इनदिनों । लोग छुपछुपा कर उनकी गोष्ठियों में जाते हैं । पिछली होली पर कविसम्मेलन
में इन लोगों ने खूब तालियाँ बटोरी थी । सुना है इस बार भी ऐसा ही कुछ होने वाला
है ।“
“होली कब है , कब है होली ?” गब्बर
ने खैनी थूकते हुए पूछा ।
“अगली पूर्णिमा को है सरदार ।“
“हम खुद जायेंगे इस बार । कालिया ...
रामगढ़ वालों को बता देना कि इस बार होली पर गब्बर-काका खुद आयेंगे कविसम्मेलन सुनने
।“
कालिया अपने दो साथियों के साथ रामगढ़
की चौपाल पर है, चिल्ला कर बोल रहा है – “गाँव वालों, खूब लिखो । सरदार को पसंद
आया तो पुरस्कार मिलेंगे । जो जितना गान करेगा उतना बड़ा सम्मान मिलेगा । कीर्तन
करो, भजन करो खूब मिलेगा ।“
तभी एक आदमी हाथ में कुछ लिए सामने
आता है । “ये क्या है हरिया ?” कालिया ने पूछा ।
“पाण्डुलिपि लाया हूँ मालिक ।“
“इतनी छोटी पाण्डुलिपि !! और वो ढेर
सारी कवितायें लिखी पड़ी है घर में ! वो क्या ठाकुर के लिए हैं ?”
“सारी ले आया मालिक, अब न घर में हैं
न दिमाग में ।“
“दिमाग में कुछ नहीं है !! सरदार
सुनेंगे तो खोपडिया उड़ा देंगे दन्न से । हर दिमाग में गब्बर-काका होना चाहिए ।
वरना दिमाग किस काम का, लिखना पढना किस काम का । चल भाग यहाँ से ।“
वापसी के लिए कलिया अपने घोड़े पर चढ़ा
ही था कि जय और वीरू सामने आ गए । जय बोला - “कालिया अपने सरदार को बता देना कि
हमारी कलम में अभी बहुत स्याही है । हम जो भी लिखेंगे धांय-धांय ठांय-ठांय लिखेंगे
।“ सुन कर कालिया लौट गया ।
गब्बर ने सुना तो तिलमिला गया । “अरे
ओ साम्भा ... रामगढ़ में घर घर में लेखक तैयार करो फटाफट । बच्चा हो कच्चा हो, आदमी
हो औरत हो, बुरा हो अच्छा हो, बस गब्बर साधक हो । इतने लेखक पैदा कर दो कि जय-वीरू
की जान को इनसे ही खतरा हो जाये । .... और बसंती ? बसंती क्या कर रही है ?”
“अरे तुमको पता नहीं सरदार !! वो अभी
भी नाच रही है ।“ साम्भा ने हरिया की पाण्डुलिपि देखते हुए बताया ।
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