जिसे
भी फोन कीजिए एक ही जवाब मिलता है ‘बस
बैठे हैं भिया’ । उधर से अगले को भी पूछना ही पड़ता है ‘और ... आप क्या कर रहे हो ?’ ,
जवाब वही ‘बस बैठे हैं भिया’ । सेना से
लगा कर सेवक तक लगे हैं काम में और हम ‘बस बैठे हैं भिया’ । लगता है पूरा देश बैठा है, जनवासे में । टीवी, रेडियो, अखबार के जरिए कोई न कोई दिन में दस बार
अनुरोध करता है कि जजमान आप बैठिए, आराम कीजिए, बाहर मत निकालिए, कुछ जरूरत हो तो आदेश कीजिए । भूल
जाइए कि किसी ने लाल किले से कभी कहा था आराम हराम है । अब तो आराम का फरमान है ।
इतना आराम करवाएँगे, इतना आराम करवाएँगे तुमसे, कि भूल जाओगे कि पाँव किधर है और हाथ किसे कहते हैं । पड़े पड़े जब पोटले
हो जाओ तो एक सेल्फी जरूर डाल देना, गूगल के किसी क्लिक पर
दर्ज रहोगे । किसी लोकल शायर ने कहा है कि ‘गूगल की सर्च पर
लगते रहेंगे हर दिन मेले, आराम कर कर के मरने वालों का यही
बाकी निशां होगा’ ।
फोन
पर कज़िन पड़ौसी है, यानी पाँच मोहल्ला
दूर रहने वाले । उनका फ्लेट है, किचन प्लस स्टोर विथ थ्री
रूम्स अटैच टाइलेट । यह बताने के पहले कि उसने अभी मूंग के भजिए खाए हैं, वह खात्री करता है कि तुम्हारे पास आटा-दाल वगैरह की कमी तो नहीं है । आदमी
पढ़ालिखा हो, व्यावहारिक हो तो शिष्टाचारवश सावधानी रखता ही
है । अच्छा नहीं लगता है कि आप भजिए बखाने और अगले के पास खाने कि समस्या हो । मैं
जानता हूँ उसकी गुफ्तगू का सबब, सो उसके मैनु के आतंक से
बचाने के लिए कहता हूँ दिक्कत तो है यार, कुछ कर सकते हो ? वह सूझाता है कि नगर निगम की कचरा गाड़ी आती है ना उसी को बोल दो, दे जाएंगे । नहीं तो अपने पार्षद को खड़काओ, पता
नहीं इस लोक में है या उस लोक में । या फिर अपने झारा पकड़ विधायक को बोलो, रोज फोटो छ्पवा रहे हैं पूड़ी तलते हुए । साफ हो जाएगा कि खा ही रहे हैं
या खिला भी रहे हैं । वैसे यार तुमको पहले से कुछ इंतजाम कर लेना चाहिए था । आसपास
किराने वाला है ना, उनको बोलो । हमारे इधर तो जाहिल बस्ती
में खूब थैलियाँ बंटी, आटा, दाल, चाय-शकर मिर्च मसाला, आलू कांदा सब । एक एक घर में
लोगों ने चार चार थैलियाँ ले ली । इतना माल मिल रहा है तो भला कोई करोना से क्यों
डरे ! बैठने वाले बैठे हैं तस्सवुरे जाना किए हुए और जिन्हें फिक्र है खिदमतदारों
की वो थैलियाँ बटोर रहे हैं दनादन । पुलिस को लागत है कि लोग बाहर फालतू घूम रहे
हैं । उन्हे कौन बताए कि घर में रहने से बच्चों के अलावा कुछ मिलता है क्या ।“
बात
बदलते हुए मैं पूछता हूँ, - “और आपके घर तो
सब ठीक हैं ना ? बाहर मत निकलना, पुलिस
न हो तब भी मत निकलना, सरकार ने कहा है तो हमारा फर्ज है कि
अच्छे नागरिक की मिसाल बनें । हमारे इधर तो पूरा सन्नाटा रहता है रात को और दिन को
भी । तुम्हारे तरफ कोई निकलता तो नहीं है ?”
वो
पाज़ यानी बातचीत में एक ठहराव लेता है,
फिर सोचते हुए बोलता है –“ हमारे इधर भी कोई नहीं निकलता है लेकिन सन्नाटा नहीं है
। सूअर घूमते रहते हैं और झड़पें होती रहती
है । खूब शोर होता है । मेडिकल साइंस क्या कहता है, सूअरों
को करोना नहीं होता है क्या ?”
“
पता नहीं, वेट्नरी डाक्टर ही बता सकते हैं कि करोना की नातेदारी किस किस से है । ...
और क्या ?“
“बस
बैठे हैं भिया”।
------
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें