गुरुवार, 29 अगस्त 2019

भ्रष्टाचार खत्म हो गया है



“देखिए जी, लेन देन की कोई बात नहीं करें । भ्रष्टाचार पूरी तरह खत्म हो गया है । आप निश्चिंत रहें, महकमें में आपसे कोई रिश्वत नहीं माँगेगा  मुस्कराते हुए गोवर्धन बाबू ने कुर्सी की ओर इशारा करते हुए बैठने की अनुमति प्रदान की । दो साल पहले इन्हीं से काम पड़ा था तो हजार रुपए लिए बगैर फाइल को छूआ तक नहीं था इन्होंने । और तेवर तो ऐसे थे मानो सरयू पार वाले समधी हों । खैर, बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि लेई । आज बात कर रहे हैं तो अपने से लग रहे हैं । कहा – “लेकिन चपरासी ने अभी दो सौ रुपए लिए मुझसे, तब आई फाइल आपके टेबल पर !!”
“गोपाल ने लिए होंगे । दरअसल वो रिश्वत नहीं है । भ्रष्टाचार पूरी तरह से खत्म हो गया है ।  देखिए जगह जगह तख्ती भी लगी है कि रिश्वत देना और लेना मना है । उसने बताया नहीं कि दो सौ रुपए गऊ चारे के लिए हैं !?  .... यू नो, गाय हमारी माता है । निबंध तो लिखे होंगे आपने पाँचवी कक्षा में ? ... कहाँ तक पढ़े हैं ?”
“गऊ माता तक ... मतलब समझिए पाँचवी तक” ।
“फिर क्या दिक्कत है ! धरम का काम है । जहाँ भी मौका मिले पुण्य संचय करना चाहिए । पता नहीं कब बुलावा आ जाए । ऊपरवाला भी टेबल कुर्सी ले कर बैठा है । चलिए ... बताइये क्या काम है ?”
“छोटा सा काम है जी । एक आर्डर रुका हुआ है । पता चला कि फाइल आगे नहीं जा रही है । आपके यहाँ से ओके हो जाए तो ...”
“बिलकुल हो जाएगा । कागज पूरे हैं आपके ...मतलब फोर्मेलिटी कंप्लीट है । बस भगवान चाहेगा तो कोई दिक्कत नहीं है । ... भगवान ...” ।
“बड़ी मेहरबानी आपकी” । कह कर हाथ जोड़ दिए ।
“अरे हाथ मत जोड़िए, हाथ जोड़ने की जरूरत नहीं है । लोग देखेंगे तो समझेंगे कि रिश्वत मांग रहा हूँ । भ्रष्टाचार एकदम खत्म हो गया है । भगवान उधर हैं ( काली लकड़ी के छोटे से सुंदर मंदिर में गऊ सहित बांसुरी बजाते भगवान मौजूद थे ) वहाँ पाँच सौ के तीन नोट चढ़ा दीजिए । हमने भी पाँच गौएं पाल रखी हैं । समय की मांग है कि गौ पालन में सब योगदान करें । धरम का काम है, .... वैसे कोई जबर्दस्ती नहीं है । आपकी फाइल यहाँ सुरक्षित है जब गो-प्रेम जागृत हो तब चले आना, ... जल्दी नहीं है” । कह कर उन्होंने फाइल बंद की ।
“गो-प्रेम जागृत है जी, ... भला ऐसा कौन है जो गो-प्रेमी नहीं है आज के समय में” । उसने नोट चढ़ा दिए । गोवर्धन जी ने ड्राज से निकाल कर कुछ दाने शकर के हाथ पर धर दिए । बोले “प्रसाद है, लीजिए । मन प्रसन्न होना चाहिए, आस्था बड़ी चीज है, संसार तो आनी जानी है । ... गऊ का महत्व जानते हो ना । पुंछ पकड़ लो तो वैतरणी पार हो जाती है । फाइल की भला क्या औकात कि एक टेबल पर अटकी रहे ! .... लीजिए हो गया आपका काम । .... जय गऊ माता । ” ।
“धन्यवाद आपका । अब बड़े साहब को तो ... मेरा मतलब है कि पुण्य संचय उधर भी करना पड़ेगा ? कोई मंदिर है क्या उनके कक्ष में भी ?”
“है क्यों नहीं ! आदमी कितना भी बड़ा क्यों न हो जाए धरम करम से मुक्त नहीं है । वे एक गोशाला के ट्रस्टी हैं ।” 
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