पीए ने आते ही साहब के चरण छूने का उपक्रम करते
हुए उनके घुटने छुए . साहब ने इस बात को नोट किया कि जैसे जैसे दिन-माह गुजर रहे
हैं पीए के हाथ चरण से पिंडली होते हुए घुटनों तक पहुँच गए हैं ! लग रहा है आगे के
दिन आशंकाओं से भरे हुए हैं . सम्मान देने वाले नौकर धीरे धीरे गले तक बढ़ सकते हैं
. उन्होंने मन ही मन तय किया कि इस तरह के लोगों से सावधान रहना होगा . पीए अब कुछ
कहेगा तो उस पर आँख मींच कर अमल करना जोखिम भरा है .
पीए ने कमर झुका कर अपने को साहब के कान के
नजदीक किया और फुसफुसा कर कहा – “सर बाहर बहुत से लोग आये हुए हैं और आपसे रंग
खेलना चाहते हैं . बुला लूँ एक एक करके ?”
“रंग गुलाल !! समझते नहीं हो क्या ! हमारे कपडे
ख़राब हो जायेंगे . और चेहरा भी . फेयर कलर की स्कीन हो तो उस पर रंग जल्दी और ज्यादा चढ़ता है . ... ना मना
कर दो सबको . कह दो साहब गरीबों के लिए योजना बनाने में व्यस्त हैं .” साहब ने मुंह
फेरते हुए कहा .
“आपको उनके साथ रंग खेलना चाहिए सर . वोटर हैं ,
हरेक के घर में पांच -सात वोट तो हैं ही . मना करना ठीक नहीं होगा .” पीए ने
समझाया .
“अरे पीए .. पिये हो क्या ! वोट तो मैं जबान
हिला कर ले लेता हूँ . इसमे रंग खेलने की क्या जरुरत है . वैसे बचपन में मैंने
बहुत रंग खेला है . हम छोटी जगह में रहते थे . मैं फाटे कपड़े पहनता था. रंग-गुलाल
के पैसे नहीं होते थे . लेकिन मन में अपनी संस्कृति और देश के प्रति प्रेम बहुत था
. होली हमारा बड़ा त्योहार है . मेरे आठ दस साथी थे, मैं उनका लीडर था . लीडर बनने
का शौक मुझे बचपन से ही रहा है . तो मैंने कहा कि होली तो प्यार और उमंग का
त्योहार है . अगर हमारे पास रंग-गुलाल नहीं है तो हम कीचड़ और गोबर से खेलेंगे . तो
कीचड़ और गोबर से होली खेलने का अविष्कार मैंने ही क्या है . उस टाइम पे पेटेंट के
बारे में मुझे नालेज नहीं था . बाद में ये खेल धीरे धीरे सभी राज्यों में फ़ैल गया .
क्योंकि गरीबी बहुत थी, पिछली सरकारों ने गरीबी दूर करने के लिए कुछ नहीं किया था .
तो बचपन की बात और थी अब बात दूसरी है .” साहब ने दिल की बात रखी .
“जी सर, ... आपकी यह होली-बाइट कुछ ताजा फोटो के
साथ प्रेस को रिलीज कर देता हूँ . लेकिन सर बाहर लोग बढ़ते जा रहे हैं . बहुत से
पार्टी के लोग हैं, दो-तीन मंत्री भी हैं . होली खेलने की जिद है सबकी . आप कहें
तो कीचड़ गोबर लाने के लिए कह दूँ ?” पीए ने पूछा .
“कहा ना ... नहीं खेलेंगे ... अब नहीं खेलते हैं
.” साहब ने रूखा सा उत्तर दिया .
“सर पुराना वोटर फूफा होता है . आज रूठेगा तो
समझ लीजिये चुनाव के समय कसर निकालेगा . थोडा सा रंग डलवा लीजिये फिर चाहे गुलाबजल
से नहा लीजियेगा .” पीए ने सुझाया .
“ठीक है, ऐसा करो मैं यहाँ ग्लास केबिन में
बैठूँगा, तुम उधर खड़े हो जाओ . लोग तुम्हें रंग डालेंगे और मैं हाथ हिला कर टाटा कर लूँगा . ... देखो ! होली भी नहीं खेली और
वोट भी बचा लिया . कैसा रहेगा ?”
“अच्छा
रहेगा, ... सर लोग अगर रंग लगा कर पैर भी छुएं तो मैं क्या करूँ ?”
“नहीं नहीं, पैर तुम नहीं छुआना . उनसे कहना कि
पैर साहब के छुओ ... मैं टाटा के साथ आशीर्वाद भी देता रहूँगा .”
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