शनिवार, 13 जनवरी 2024

दर्शन नहीं करने का दर्शन


 


“ तो आप जा रहे हैं मंदिर ?” वरिष्ठ किस्म के पुरातन नेता से रिपोर्टर ने पूछा ।

“नहीं ।“ उन्होंने टका सा जवाब दिया ।

“निमंत्रण तो मिल गया है !”

“तब भी नहीं जायेंगे ।“ वे बोले ।

“क्यों !?”

“भगवान हमारी पार्टी के नहीं हैं ।“

“भगवान का पार्टी से क्या लेना देना ! वो तो सबके हैं ।“

“सब कहने की बातें हैं । ताला हमने खुलवाया और वे दूसरी पार्टी के साथ चले गए !”

“चलिए ये क्या कम है कि आप मानते हैं भगवान को । हमें लगा कि कम्युनिस्टों के साथ रहते रहते आप धर्म से दूर हो गए हैं ।“

“ऐसा नहीं है हम एक नहीं सभी धर्मों को मानते हैं । सबका समान आदर करते हैं । “

“लोग कहते हैं जो सबका होता है वो किसी का नहीं होता है !!”

“गलत है, हम सभी धरमों को मानते हैं । हमारी पूरी पार्टी मानती हैं । “

“क्या मानते हैं धरम को ? और क्या करते हैं ?”

“जैसा समय और परिस्थिति के अनुसार जरुरी हो । फूल, घंटी, आरती, माला, चादर सब कर देते हैं ।“

“चुनाव नहीं हो तब धरम को क्या मानते हो ?”

“वैसे तो धर्म एक तरह की अफीम है । ये हमने कहा नहीं हैं, हम सिर्फ मानते हैं ।“

“गाँधी जी तो धर्म को, राम को मानते थे !”

“उनकी बात अलग है । वो बड़े नेता थे । कुछ भी मान लेते थे । उनकी गलतियों के लिए हम दोषी थोड़ी हैं । “

“ऐसा नहीं हैं, सब जानते हैं उनकी आस्था भी थी भगवान में ।“

“आस्था अलग चीज है । राजनीति में आस्था नहीं चलती है । विवेक चलता है, चालाकी चलती है, मौकापरस्ती चलती है, झूठ बिंदास चलता है ... सब चलता है आस्था नहीं ।“

“ लेकिन ‘वे’ तो आस्था से ही बढ़िया राजनीति कर रहे हैं ! ... आपको नहीं लगता कि मंदिर जा कर आपकी पार्टी आस्था की फसल में से अपना हिस्सा ले सकती है ? खुद आपकी पार्टी वालों को लग रहा है कि इस मामले में आप गलती कर रहे हैं ।“

“ गलतियों से हमें कोई दिक्कत नहीं है । गलतियों की हमारी लम्बी परंपरा है । होती रहती है, किसी से भी हो सकती हैं । हम ही क्यों, जो मार्गदर्शक मंडल में पड़े हुए हैं उनसे पूछिये । क्या वे अपनी गलती पर दिन रात नहीं रो रहे हैं ?”

“चाहें तो सुधार कर लें अपने निर्णय में । साफ्ट हिंदुत्व का समर्थन तो किया था आपकी पार्टी ने । इसी नाते साफ्ट दर्शन कर आते और जनभावना से जुड़ लेते । इसमें क्या प्रॉब्लम थी ?”

“जनता से जुड़ने के लिए ‘भारत जोड़ो’ यात्रा निकाल रहे हैं ना ।“

“ठीक है, लेकिन यात्रा से समर्थन मिल सकता है जुडाव तो धर्म से ही होगा ।“

“नाम पर मत जाइये । पोल्टिक्स में जुड़ाव का मतलब जुड़ाव नहीं है । जैसे सद्भावना का मतलब कभी भी सद्भावना नहीं होता है । राजनीति में जो होता दीखता है वो नहीं होता और होता वही है जो नहीं दीखता है । गहरी बात है इसके मर्म को समझो ।“

“हमें तो कुछ भी नहीं समझ में आया, आप ही समझाईये प्लीज ।“

“जो भक्त दिख रहे हैं वो भक्त नहीं हैं और जिन्हें भक्त नहीं समझा जा रहा है वही असली भक्त हैं ।“

“क्या मैं इसे ऐसे समझूं कि झूठ ही सच है और सच झूठ है ।“

“तुम्हें राजनीति की समझ नहीं है । मर्म को समझो ... हम कह रहे नहीं जायेंगे, इसका मतलब है हम जायेंगे । 

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