सोने के लिए जो बदनाम थे कभी, जाने
क्या डर है या चिंता कोई कि इनदिनों आँखों से नींद उड़ी हुई है । कभी कुम्भकर्ण नाम
दे दिया था लोगों ने । अब पता नहीं किसके घोड़े बांध लिए हैं सिरहाने । जैसे जैसे
रात काली होती है नींद रॉकेट की तरह ऐसी उड़ती है कि सीधे चाँद के ऑर्बिट में नजर
आती है । मच्छर महाराज सर पर मंडराते रहते हैं, कहते हैं न सोऊंगा और न सोने दूंगा
। इधर जितने बेरोजगार हैं सब चौकीदार हो गए हैं और जागते रहो जागते रहो चिल्लाते
रहते हैं । आँख लगे तो कैसे । चैन की नींद सो लिया करते थे लोग, जिसके लिए पता
नहीं कौन दोषी हैं । ख्याल आता है कि सुबह होगी तब सो जायेंगे । लेकिन वो सुबह भी
नहीं आ रही है ।
“रात गहरी है चलो मन, तुम्हें
बहलाने के लिए एक किस्सा सुनाते हैं । दरअसल तुम्हीं हो जो बार बार बहकते रहते हो
। जबसे रेडिओ पर आने लगे हो तुम बहुत वीआइपी हो गए हो । तुम्हारी अदाओं और उछल कूद
से हम परेशान होते हैं । मन तुम एक जगह स्थिर और शांत बैठो तो हम नींद ले पायें
जरा । खैर, सुनो कहानी । एक समय की बात है एक राज्य था शांतिपुरम । जैसा नाम वैसा
गुण, राज्य में शांति और सौहाद्र बहुत था । लोग मिलजुल कर रहते थे और जो मिल जाता
था उसमें खुश थे । रातें गहरी नींद वाली और सुबह ऊर्जा से भरी होती थी । एक सांझी
जीवनशैली में जी रहे थे लोग । इस बात से राजा वीरचन्द्र को बहुत संतोष था । यही
बात कुछ लोगों को पसंद नहीं आ रही थी । उन्होंने हितैषी बन कर प्रजा के बीच पैठ
बनाई । पहले विश्वास जीता उसके बाद विवेक भी और मौका मिलते ही इतिहास की ओर रुख
मोड़ दिया । धीरे धीरे लोग वर्तमान को भूलने लगे और राजा वीरचन्द्र के शासन को भी ।
जिस भविष्य को लेकर आमजन सपने बुना करते थे कभी, उससे डरने लगे । नतीजा यह हुआ कि जो पीढ़ी भविष्य के निर्माण में
लगी थी वह अतीत के खनन में लग गयी । ‘बीत गयी सो बात गयी’ कहने वालों को जनाक्रोश
झेलना पड़ा । लोग कालखंडों, मान्यताओं और किताबों में बाँटते गए । पडौसी जो पहले
एकदूसरे के सहारे थे अब संदेह करने और डरने लगे । सबसे पहले विश्वास घटा फिर प्रेम
और परस्पर आदर भी । जो पहले एक दूसरे को देख कर सुरक्षित मानते थे अब खतरा महसूस
करने लगे । समय बीता, जिन्होंने सुरक्षा की गारंटी दी थी वही डर का सबसे बड़ा कारण
हो गए । ...”
“रुको जरा !” अचानक मन बोला । “ये
कैसा किस्सा सुना रहे हो ! इसमें नींद कहाँ है ! ? इस तरह की कहानी से किसी को
नींद कैसे आयेगी भला ! ... मुझे परियों वाली कहानी सुनाओ ताकि सुकून मिले और कुछ
सपने भी देख सकूँ ।“
“ किस्सों वाली परियां अब कहाँ हैं
मन । वे अब बाज़ार में हैं, मॉल में हैं, पोस्टर और विज्ञापनों में हैं । परियां अब
प्रोफेशनल हैं, आँखे बंद करने से नहीं कांट्रेक्ट साइन करने के बाद ही आती जाती
हैं कहीं भी । किसीने कभी कहा था कि बड़े सपने देखो । हम लम्बे सपने देखने लगे हैं,
कलयुग से सतयुग तक । जल्द ही युवक भूल जायेंगे कि रोजगार किसे कहते है ! जीवन का
आधार मुफ्त का राशन होगा और जीवन किसका होगा पता नहीं । ... यही चिंता है और यही
डर ।“
‘कोई उम्मीद बर नहीं आती ; कोई सूरत
नजर नहीं आती ।
मौत का एक दिन मुअय्यन है ; नींद
क्यों रात भर नहीं आती ।“
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