बुधवार, 3 जनवरी 2024

मन मांगे किस्से परियों वाले


 


 

       सोने के लिए जो बदनाम थे कभी, जाने क्या डर है या चिंता कोई कि इनदिनों आँखों से नींद उड़ी हुई है । कभी कुम्भकर्ण नाम दे दिया था लोगों ने । अब पता नहीं किसके घोड़े बांध लिए हैं सिरहाने । जैसे जैसे रात काली होती है नींद रॉकेट की तरह ऐसी उड़ती है कि सीधे चाँद के ऑर्बिट में नजर आती है । मच्छर महाराज सर पर मंडराते रहते हैं, कहते हैं न सोऊंगा और न सोने दूंगा । इधर जितने बेरोजगार हैं सब चौकीदार हो गए हैं और जागते रहो जागते रहो चिल्लाते रहते हैं । आँख लगे तो कैसे । चैन की नींद सो लिया करते थे लोग, जिसके लिए पता नहीं कौन दोषी हैं । ख्याल आता है कि सुबह होगी तब सो जायेंगे । लेकिन वो सुबह भी नहीं आ रही है ।

          “रात गहरी है चलो मन, तुम्हें बहलाने के लिए एक किस्सा सुनाते हैं । दरअसल तुम्हीं हो जो बार बार बहकते रहते हो । जबसे रेडिओ पर आने लगे हो तुम बहुत वीआइपी हो गए हो । तुम्हारी अदाओं और उछल कूद से हम परेशान होते हैं । मन तुम एक जगह स्थिर और शांत बैठो तो हम नींद ले पायें जरा । खैर, सुनो कहानी । एक समय की बात है एक राज्य था शांतिपुरम । जैसा नाम वैसा गुण, राज्य में शांति और सौहाद्र बहुत था । लोग मिलजुल कर रहते थे और जो मिल जाता था उसमें खुश थे । रातें गहरी नींद वाली और सुबह ऊर्जा से भरी होती थी । एक सांझी जीवनशैली में जी रहे थे लोग । इस बात से राजा वीरचन्द्र को बहुत संतोष था । यही बात कुछ लोगों को पसंद नहीं आ रही थी । उन्होंने हितैषी बन कर प्रजा के बीच पैठ बनाई । पहले विश्वास जीता उसके बाद विवेक भी और मौका मिलते ही इतिहास की ओर रुख मोड़ दिया । धीरे धीरे लोग वर्तमान को भूलने लगे और राजा वीरचन्द्र के शासन को भी । जिस भविष्य को लेकर आमजन सपने बुना करते थे कभी, उससे डरने लगे ।  नतीजा यह हुआ कि जो पीढ़ी भविष्य के निर्माण में लगी थी वह अतीत के खनन में लग गयी । ‘बीत गयी सो बात गयी’ कहने वालों को जनाक्रोश झेलना पड़ा । लोग कालखंडों, मान्यताओं और किताबों में बाँटते गए । पडौसी जो पहले एकदूसरे के सहारे थे अब संदेह करने और डरने लगे । सबसे पहले विश्वास घटा फिर प्रेम और परस्पर आदर भी । जो पहले एक दूसरे को देख कर सुरक्षित मानते थे अब खतरा महसूस करने लगे । समय बीता, जिन्होंने सुरक्षा की गारंटी दी थी वही डर का सबसे बड़ा कारण हो गए । ...”

         “रुको जरा !” अचानक मन बोला । “ये कैसा किस्सा सुना रहे हो ! इसमें नींद कहाँ है ! ? इस तरह की कहानी से किसी को नींद कैसे आयेगी भला ! ... मुझे परियों वाली कहानी सुनाओ ताकि सुकून मिले और कुछ सपने भी देख सकूँ ।“

          “ किस्सों वाली परियां अब कहाँ हैं मन । वे अब बाज़ार में हैं, मॉल में हैं, पोस्टर और विज्ञापनों में हैं । परियां अब प्रोफेशनल हैं, आँखे बंद करने से नहीं कांट्रेक्ट साइन करने के बाद ही आती जाती हैं कहीं भी । किसीने कभी कहा था कि बड़े सपने देखो । हम लम्बे सपने देखने लगे हैं, कलयुग से सतयुग तक । जल्द ही युवक भूल जायेंगे कि रोजगार किसे कहते है ! जीवन का आधार मुफ्त का राशन होगा और जीवन किसका होगा पता नहीं । ... यही चिंता है और यही डर ।“

         ‘कोई उम्मीद बर नहीं आती ; कोई सूरत नजर नहीं आती ।

         मौत का एक दिन मुअय्यन है ; नींद क्यों रात भर नहीं आती ।“

---x---

 

 

 


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें