बुधवार, 18 जनवरी 2017

छत पर धूप खाते हुए एक रिश्ते की तलाश

इस वक्त यानी सुबह के साढ़े आठ बजे बहुत सर्दी पड़ रही है. इधर लोग रात जो पड़ती है उसे ठण्ड कहते है. इसके विस्तार में जाये बगैर मेरी तरह आप भी मान लो कि कहते होंगे, अपने को क्या.  जो मिल जाये उससे काम चला लेने की आदत छोटी-मोटी गलतियों पर ध्यान नहीं देती है. तो कह सकता हूँ कि सर्दी बहुत लग रही है, और जुकाम हो जाये तो सर्दी हो गई है . कई लोग  इस स्थिति को सर्दी खा जाना भी कहते हैं. दरअसल अपने देश में खाने की रेंज बहुत बड़ी है. सर्दी सेलेकर रिश्वत तक सब इसी से व्यक्त होता है.
नीचे कांप रहा था तो घर वालों ने कहा छत पर चले जाओ और धूप खाओ थोड़ी. धूप में बैठे या पड़े हुए आदमी और धूप खाते हुए आदमी में अंतर होता है. ऐसा माना जाता है कि जो धूप खाते हैं वे सर्दी नहीं खाते. मैं छत पर हूँ और देख रहा हूँ कि अभी धूप खाने लायक नहीं हुई है . सो, इन द मीन टाइम, हवा खा रहा हूँ. हवा जो है हमारे एरिया में प्रचुर मात्र में पाई जाती है. प्रापर्टी डीलरों ने खास हवा की मात्रा की वजह से इस एरिया के भाव बहुत बढा रखे है. अभी पिछले दिनों जब तैमूर अली साहब ने दुनिया रौशन की, तब दो गली छोड़ के एक प्लाट बिका है. सुना है खरीदने वाले ने हवा की मात्रा के काफी पैसे दिए, वरना प्लाट तो कहीं भी मिल जाता. देखिये, अगर आप प्रबुद्धनुमा कुछ हैं तो हवा की मात्रा को ले कर आपत्ति कर सकते है, आपकी समस्या है. मैं प्रबुद्ध नहीं हूँ सो हवा की मात्रा को ले कर मुझे तब तक कोई दिक्कत नहीं है जब तक कि फेफड़े भर मुझे मिलती रहे.
सामने तीन मंजिला मकान है जो दरअसल एक बंगला है और जिस पर लक्ष्मी-निवास भी लिखा हुआ है. यहाँ विश्विहारी श्याम सुमन जी रहते हैं. लक्ष्मी गृह स्वामिनी का नाम है, चूँकि वे ब्याह कर लाई गईं हैं इसलिए आटोमैटिक गृह स्वामिनी हो गईं हैं. दरअसल वे कैशलेस-लक्ष्मी हैं. वे  दुर्गा, काली, चंडी या कुछ भी होती, कैशलेस ही होती. आपको लग रहा होगा कि श्याम सुमन जी कवि या लेखक-वेखक हैं. अगर लग रहा है तो लगने दीजिए, इसमें कोई हर्ज नहीं है, थोड़ी देर में अपने   आप ठीक हो जायेगा. लेकिन सचाई ये है कि श्याम सुमन दरअसल रात के पंछी हैं. कुछ लोगों को इस वजह से लगता है कि उन्हें अँधेरे में भी दिखाई देता है. वास्तविकता क्या है अभी कुछ साफ नहीं है.
तो श्याम सुमन जी अपनी तीसरी मंजिल पर टावेल लपेटे बैठे धूप खा रहे है. उनकी छत पर खाने लायक धूप आ चुकी है. अगर थोड़ी ओट मिल जाये तो वे अपने और धूप के बीच टावेल को बाधा नहीं बनने दें. किन्तु अभी तक उन्होंने ऐसा नहीं किया है, जाहिर है कि वे शिष्टाचार जैसी अनावश्यक बातों का भी बड़ी शिद्दत से ख्याल रख रहे हैं. विकास इसी को कहते हैं. आखिर आदिकाल से चल कर मानव तीसरी मंजिल तक पहुँच गया है तो उसकी प्रसंशा की जानी चाहिए. अगर वे मेरी ओर देखभर लेंगे तो मैं मुस्कराते हुए हाथ उठा कर उनका अभिवादन करना चाहूँगा. लेकिन हकीकत ये है कि वे पडौसी भी हैं. अच्छे पडौसी का धर्म होता है कि वो पास पडौस में झांके तक नहीं चाहे कोई मर ही क्यों न रहा हो. लोग मानते हैं कि जब आप पडौसी की मदद के लिए हाथ आगे बढाते हैं तो ईश्वर अपने हाथ खींच लेता है. इसलिए सच्चे पडौसी कभी मदद को आगे नहीं आते हैं और ईश्वर में हमारी आस्था को मजबूत करते हैं. इसी का नाम पडौसी धर्म होता है.
काफी समय हुआ एक बार हमारी मुलाकात हुई थी, हमने हाथ तक मिला लिया था. यह लगभग वही समय था जब हमारे प्रधान मंत्री ने चीनी नेताओं को स्वागत भोज दे रहे थे. श्याम सुमन जी के साथ इस मुलाकात को मिडिया ने भले ही कवर नहीं किया हो पर मोहल्ले के लोगों ने लाइव देखा था, लेकिन छोटा मोटा घोटाला जैसा कुछ मान कर सबने तुरंत भुला भी दिया था. मुझे लोगों की इस तरह की प्रवृत्ति पर आपत्ति है. छोटे क्या वे बड़े घोटाले भी भूल जाते हैं. अभी तक यह समझ में नहीं आया है कि लोकतंत्र की सफलता के पीछे भूलने का महत्त्व है या याद रखने का. अगर मौका मिला तो श्याम सुमन जी से इस बिंदु पर विचार करना चाहूँगा. कुछ और हो न हो, ऐसा करने से वे खुश अवश्य हो जायेंगे. पडौसी अगर खुश हो तो ऐसे समय बड़े काम आता है जब आप घरेलू फटकार खा कर बाहर निकल आये हों और सामान्य होने की प्रक्रिया में किसी से बात करने के इच्छुक हों. इस तरह की विशेष परिस्थितियों में प्रोटोकोल भी आड़े नहीं आता.
आहा !!! अब मेरी छत पर भी धूप आ गई है. वंचित होने का जो अहसास अभी तक तारी था वह समाप्त हो रहा है . मै नामालूम किस्म के आत्मविश्वास से भर रहा हूँ और इसे व्यक्त करने के लिए एक जोरदार अंगडाई लेना चाहता हूँ, ताकि श्याम सुमन मुझे  और मेरी धूप को नोटिस करें. शुरुवाती कोशिशों के बाद मैं खांसता हूँ. खांसना एक कला है, इसकी भी अपनी भाषा होती है जिसमे पारंगत होते होते आदमी अपने को सीनियर सिटीजन की लाइन में बरामद करता है. पहले जब मोबाईल फोन नहीं था लोग एसएमएस की जगह खांस दिया करते थे. हमारे दादा दादी इस खांसी-चेट से बिना किसी की जानकारी में आये बहुत सा संवाद कर लेते थे. मेरी कोशिश मात्र इतनी है कि श्याम सुमन जी एक बार पलट कर देख लें तो उनका अभिवादन हो जाये. आखिर जब दो लोग एक ही सूरज से धूप खा रहे हों तो उनमें एक रिश्ता तो बन ही जाता है.
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