इनदिनों जैसे
ही सुबह आप फोन खोलते हैं ज्ञान का छप्पर मानों फट पड़ता है और आपको भगवान आदतन याद
आ जाते हैं. हमारे आभासी शुभचिंतक गुड
मार्निंग के एक पाउच के साथ चार पोटले ज्ञान के भी पकड़ा जाते हैं. लगता है सबको ज्ञान
की हाजत सी हो रही है और हर कोई वाट्सअप के कमोड पर बैठा बस एक ही काम कर रहा है. जहां
सोच वहाँ शौचालय से लोग प्रेरित हुए हैं. दूसरों को सुधारने का ईचवन-टीचवन अभियान
सा चल पड़ा है. गूढ़ गंभीर संदेशों में उपदेश के आलावा दो बातें और साफ हो जाती हैं,
एक तो ये कि आप पूरे नहीं तो थोड़े जाहिल अवश्य हैं और आपको सीखने की जरुरत है, और वे जहीन हैं सो कृपापूर्वक
अपना दायित्व निभा रहे हैं. अब आपमें सलीका हो तो जवाब दे कर उनका आभार मानिये.
किसी का संस्कार करना बहुत बड़ा काम है, मानने वाले इसे समाज के निर्माण का ठेका तक
माने बैठे हैं. वे जो कर रहे हैं उसी से मनुष्यता के गौरवशाली दिन आयेंगे. ज्ञान
का कोई लीगल टेंडर तो होता नहीं कि कोई चिढा हुआ व्यक्ति रात बारह बजे बाद से
उन्हें रद्दी घोषित कर दे. तकनीक इतनी
विकसित हो गई है कि मात्र कॉपी पेस्ट करके आदमी महान आत्मा बन सकता है. और ये छोटी
मोटी नहीं आत्मविश्वास की बात है. ज्ञान बांटो तो आप जानते ही हैं कि दूसरे का बढ़े
ना बढ़े अपना आत्मविश्वाश इतना बढ़ जाता कि पूछिए मत. मन के हारे हार है और मन के
जीते जीत. अनुभव बताते हैं कि जो भी मन से हारा वो हमारे सामने ज्ञानचंद बनके
उभरा. ये सन्देश है- ‘दीपक बोलता
नहीं, उसका प्रकाश ही परिचय देता है. ठीक उसी प्रकार हम अपने बारे में कुछ नहीं
बोलेंगे, अच्छे मसेज ही हमारा परिचय देंगे.’
इससे कौन
इंकार कर सकता है कि जो ज्ञान देता है वो गुरु हुआ. गुरु लोगों का ऐसा है कि वे
आदिकाल से ही पूज्य चले आ रहे हैं. हालाँकि नए ज़माने के लीगल-गुरु प्रेक्टिकल हैं
और छठे-सातवें वेतनमान के बाद पूज्यता के मिथ्या-मोह से बाहर आ गए हैं. वे जान गए
हैं कि जितना मान वेतनमान से अर्जित होता है उसका दस प्रतिशत भी गुरुगिरी से नहीं
होता है. फिर आजकल लड़के गूगल की चिमटी से गुरु के कान खींच लेने में देर नहीं करते
है. मेसेजबाजी में ये दिक्कत नहीं है. ज्ञान-दंगा चल रहा है, अँधेरे में कुछ पत्थर
फैक कर आराम से गुड नाईट कर जाइये. जिसको लगना होगा लग जायेगा, आपको मारने के सुख
से कोई वंचित नहीं कर सकता है. उतना ज्ञान तो देना ही पड़ेगा जितने से अपना गुरुभाव
बना रहे.
एक गुरु
मुझे लगातार दिल की बीमारी से बचने के उपाय भेज रहे हैं. उनका सोचना शायद यह है कि
बाकी पुरजो के साथ इनका दिल भी वरिष्ठ हुआ ही है. लेकिन मेरा दिल मनमोहन सिंह की
तरह शालीनता से अपना काम कर रहा है. मोटापा और पेट कम करने की जानकारी लगभग रोज आ
रही है. भाई आप मोटे नहीं हों तो आगे भेज दीजिए, ये गरीब देश मोटों से भरा पड़ा है.
अभी किसीने बताया कि सफ़ेद पैरों वाली काली बकरी के ताजा दूध में सीताफल के बीज घिस
कर रोज सुबह लगाने से गंजापन शर्तिया दूर हो जाता है और सर पर इतने बाल आ जाते हैं
कि आधार कार्ड दूसरा बनवाने की जरूरत आ पड़ती है. रामबाण उपाय है, अवश्य ट्राय
करें. अब मैं रेहड देखते ही जाने अनजाने सफ़ेद पैरों वाली काली बकरी खोजने लगता
हूँ. आप यह जान कर भी चौंकते हैं कि आपका हर हिमायती पत्नी पीड़ित है और उसने अपनी निराशा या कुंठा का
ड्रेनेज पाइप वाट्स अप के चेम्बर में जोड़ दिया है. इस मामले में एक समझदार भी मिले,
उन्होंने बताया कि चीजें बुरी नहीं होती हैं यदि उसका इस्तेमाल सही तरीके से करें.
रोज रोज की किटकिट से परेशान उन्होंने पत्नी को एक फोन उपहार में दे दिया. अब घर
में इतनी शांति है कि चाय के लिए भी मेसेज से अनुरोध करते हैं. किसी ने सुझाया कि ‘ निराश मत बैठिये, इच्छा हो तो जिंदगी कहीं
से भी शुरू की जा सकती है, आप इस मेसेज को आगे बढा कर शुभारंभ कर सकते हैं.’ एक साप्ताहिक मेसेज है - “हजारों हैं मेरे अल्फाज
के दीवाने, मेरी ख़ामोशी सुनने वाले आप भी होते तो क्या बात थी.” साथ में वैधानिक सूचना यह भी कि ‘रिश्ते खराब होने
की एक वजह ये भी है कि लोग मेसेज का जवाब नहीं देते’. मुगालते
साफ रहें इसके प्रयास भी होते हैं- “आपकी योग्यता आपको शिखर पर
पहुंचने में मददगार हो सकती है लेकिन शिखर
पर बने रहने के लिए आपको अच्छे मेसेज पढ़ना जरूरी हैं.” और
नाराजी की हद इधर है- “कुछ लोग ऊँचा उठने के लिए किस हद तक
गिरने को तैयार हो जाते है कि मेसेज का जवाब तक नहीं देते”. इतनी
जल्दी दुनिया की कोई चीज नहीं बदलती जितनी जल्दी लोगों की नजर बदल जाती है. या फिर
एक उलाहना ये भी कि “आदमी के शब्द नहीं बोलते, उसका वक्त
बोलता है. रात के बारा पैंतालीस हो रहे हैं, गुड नाईट.” यानी भाड़ में जाओ .
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जवाब देंहटाएंवाकई में हम बहुत सामाजिक हो गए हैं।ऐसे मित्र हमें सामाजिक बनाकर ही छोड़ते हैं।बहुत शानदार।बधाई सर।