बुधवार, 14 जुलाई 2021

कठिन डगर दलित के घर की

आज सुबह से साहब का मूड ख़राब है . सोच रहे हैं कि नेतागिरी साला दो कौड़ी का काम है . कहने को लीडर हैं, मालिक हैं अपने एरिया के, लेकिन क्या हैं ये आत्मा ही जानती है जब ऐरे गैरों के हाथ जोड़ते वोट मांगते फिरना पड़ता है . जिनको कभी फूटी आँख देखने का मन नहीं करता है उन्हीं बुड्ढे ठुड्डों के पैर छूना पड़ जाते हैं . थू है साला ऐसी जिंदगी पे ! इसी काम के लिए लीडर बने हैं क्या ! पिछले हप्ते हाईकमान का आदेश था कि दलित के यहाँ खाना खा कर आईये ! आज पार्टी ने कार्यक्रम भी बना दिया ! बाप दादों ने जिनकी छाया तक अपनी गाय-भैंसों पर नहीं पड़ने दी अब उनके घर जा कर खाना खाएं हम !! कहते हैं मैसेज अच्छा जाएगा, वोट मिलेंगे . आत्मा जो है धिक्कार रही है उसका क्या ? क्या करेंगे ऐसे वोटों का ! लोकतंत्र है, राजनीति है तो इसका मतलब ये नहीं कि जात-कुजात भी देखना छोड़ दें ! आज पूरी रात ठीक से सो नहीं सके हैं साहब . बार बार बाथरूम जाना पड़ा हल्के होने के लिए . दिमाग पहले से ख़राब था और ख़राब हो गया . तीन चार बार निर्णय लिया कि नहीं खायेंगे दलित के घर लेकिन पता नहीं कैसे कैसे गांधीछाप विचार आते रहे . पार्टी अनुशासन हो तब भी सब हाईकमान की मर्जी से नहीं होना चाहिए . लोकतंत्र में हमारी इच्छा, स्वतंत्रता भी कोई मायने रखती है या नहीं ! उन्होंने तो कह दिया कि जरा सा नाटक करना है, मिडिया वाले फोटो ले लें, खबर बना लें उसके बाद नहा-धो लो, या सेनेटायीज कर लो अपने को, बस हो गया . दलित को सर पे तो बैठना नहीं है, न ही रोज रोज गलबहियां करना है . कहते हैं पार्टी की छबि का सवाल है, आखिर वोट बैंक हैं दलित . हमारा लोकतंत्र है क्या, बाय द वोट बैंक, फॉर द वोट बैंक, ऑफ़ द वोट बैंक ही न .

नहा-धो कर दालान में आ गए हैं लेकिन साहब का मन बेचैन है . अगर खा लिए तो खुद उनकी छबि का क्या होगा ! बिरादरी के लोग कहेंगे कि वोटों के लिए इतना गिर गए ! बिरादरी तो जनम मरण से ले कर पीढ़ियों तक होती है . राजनीतिक पार्टियों का क्या है, आती जाती रहती हैं . पिछले चुनाव में दलित मोहल्ले की एक नयी बहु को गले लगा कर सम्मानित कर दिया था तो दूसरों की क्या कहें खुद उनकी पत्नी यह बोलते महीनों नाराज रही कि जिन बाँहों में दलित दब ली उसमें हम अपना बदन अपवित्र नहीं करेंगे . ताने ऊपर से देती रही कि वोटों के लिए कुछ भी कर लोगे क्या !! आखिर प्रयाग जा कर संगम में स्नान किया और दो किलो सोने के जेवर बनवा कर चढ़ाये तब कहीं जा कर बोलीं कि –‘ दिल भी तेरा, हम भी तेरे’ .

नौकर ने चाय नाश्ता ला कर रख दिया . रोज वे नाश्ते का इंतजार करते हैं लेकिन आज याद ही नहीं आई . नौकर से पूछा – “दोपहर होने में कितनी देर है ?”

“बस होने ही वाली है हुजूर, चार पांच घंटे में .”

रात हवा हो गई तो चार पांच घंटे निकलने में कितनी देर लगेगी . उन्होंने डाक्टर को फोन लगाया  –“ डाक्साब जी मिचला रहा है सुबह से . रात को ठीक से नींद नहीं हुई, बीपी भी बढ़ा बढ़ा सा महसूस हो रहा है . आप आ जाइये जरा .”

सामने पड़े अख़बारों पर उनकी नजर पड़ी . अपनी खबर देख कर वे हमेशा खुश होते थे, आज लग रहा है किसी ने कील ठोक दी पैरों में . चाह कर भी भागना मुश्किल है . डाक्टर से पहले पार्टी कार्यकर्त्ता आने लगे . गाड़ियाँ, झंडे, लाऊडस्पीकर और हट्ठे कट्ठे पट्ठों का हुजूम . क्षण भर के लिए उनके अन्दर उत्साह और उमंग का रूटीन करंट दौड़ गया . लेकिन दलित का घर याद आते ही फट्ट से फ्यूज उड़ गए . मन में यह कामना जोर मारने लगी कि भगवन बचा लो इस चीरहरण से, चमत्कार कर दो प्रभु और लंच पर किसी और को बैठा दो . अभिनेताओं के बॉडी डबल होते हैं तो नेताओं के क्यों नहीं होते . कैमरों से वहाँ जब सच छुपाया जा सकता है तो यहाँ क्या तकलीफ है ! कुछ देर अनमने से खड़े रहने के बाद वे यंत्रवत तैयार होने लगे .

डाक्टर ने बीपी चेक किया, धड़कन सुनी, आँखों में झाँका और गले में भी . लाल रंग का एक इंजेक्शन भरा और आचमन करवा दिया . वे बोले - “क्या इस इंजेक्शन से थोड़ी देर के लिए मैं कम्युनिस्ट हो पाऊंगा ?” डाक्टर ने मना किया और बताया कि –“इससे आप अन्दर से मजबूत हो जायेंगे एकदम कट्टर टाईप”. उल्टी ना हो इसलिए दो गोली जेब में रखवा दी, कहा कि गोली पावरफुल हैं, गोबर भी खाना पड़ जाए तो बाहर नहीं आएगा . पास खड़े पीए को पता चला तो उसने कहा कि –“ बिलकुल चिंता न करें सर, नगर निगम से दलित मोहल्ले की स्पेशल साफ सफाई करवा दी है . गरीब की झोपड़ी डेटोल से धुलवा दी है . जब आप पहुंचेंगे तब आसपास सुगन्धित अगरबत्तियां जल रही होंगी . उन लोगों को कल ही साबुन और पानी के टेंकर पहुंचा दिए थे, अच्छे से नहाने धोने की हिदायत दे दी गयी है . इस काम को हमारे कार्यकर्त्ता अपनी निगरानी में रखे हुए हैं . सामने पड़ने वाले दलितों पर परफ्यूम पावडर भी कार्यकर्त्ता खुद लगवा देंगे . खाना और दोना पत्तल आपकी पसंदीदा होटल से आ रहा है . आपको बस आंखे बंद करके कुछ निवाले खा लेने हैं . दोपहर का समय होगा सो आप काला चश्मा लगा रखेंगे . इससे आपको झोपड़ी के अन्दर का ज्यादा कुछ दिखाई नहीं देगा सिवा दोना पत्तल और भोजन के . मिडिया के सामने आपको दो बच्चों के सर पर हाथ रखना है और एक छोटे बच्चे को गोद में ले कर चूमना है” .

“नहीं ... ये नहीं हो सकता है . किसी कीमत पर बच्चे को गोद में नहीं लूँगा, चूमूँगा नहीं .कार्यक्रम सिर्फ खाना खाने का है .” वे बिफर गए .  

“हाईकमान ने गोद लेने और चूमने को लाल स्याही से अंडरलाइन करके भेजा है सर, लिखा हुआ है . दूसरी पार्टी वाले न सिर्फ बच्चों को नहला रहे हैं बल्कि पॉटी करवा कर पिछवाडा भी धो रहे हैं . उनका वीडियो वायरल है सर . ... फिर जैसा आप चाहें ...” पीए ने जोर दिया .

“बच्चा बासता हुआ न हो ... “

“नहीं  होगा सर ... डीओ लगाव रहे हैं और गलों पर नीविया भी . आपको लगेगा किसी काले अंग्रेज के बच्चे को चूम रहे हैं .”

उन्होंने मौन से अपनी सहमति दी और उस सजे हुए वाहन में बैठ गए जो इस मौके के लिए तैयार किया गया है . नारे लग रहे हैं, झंडे लहरा रहे हैं, गले में माला है, जुलूस आगे बढ़ रहा है . लोगों में जोश इतना कि जैसे बैंक लूटने जा रहे हों .  उन्हें पुलकना चाहिए लेकिन दिल डूबता सा लग रहा है . पीए से पानी की बोतल ले कर उन्होंने जेब में रखी दोनों गोलियां मुँह में डाल लीं और आँखों को काले चश्मे से ढँक लिया .

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4 टिप्‍पणियां:

  1. तेज प्रवाह के साथ बहती रचना । राजनीति के पाखंडों को बेपर्दा करता व्यंग्य । बधाई आदरणीय ।

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  2. एक संवेदनशील विषय पर बेहतरीन रचना. हिंदी में ऐसे व्यंग्यों से बचा गया है. इन दिनों तो राजनीतिक व्यंग्य भी कम ही लिखे जा रहे हैं.
    लेकिन व्यंग्य के अंत तक आते—आते दो शब्द 'बासता' और 'नीविया' समझ नहीं आए.
    सादर

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    1. धन्यवाद ओम जी ।
      बासना मतलब बदबू मारना
      निविया एक महकदार क्रीम है
      चेहरे और बदन पर लगाने की ।

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