
“डाक्टर साहब देखिये ना, इनकी आवाज
चली गयी है । काफी दिनों से इन्होनें बोलना बिलकुल बंद कर दिया है । अब तो इशारे
भी नहीं करते हैं ! “ महिला साथ लाये पेशेंट पति को आगे करते हुए बोली ।
डाक्टर ने पहले नब्ज देखी, आले से
धड़कन, टार्च से मुंह के अन्दर गले तक झाँका । आँखें ऊपर-नीचे करवायीं, बाहर से कंठ
के आसपास गले को टटोला, बोले – “हूँ ... कब से नहीं बोल रहे हैं ?”
“चार-पांच महीने हो गए हैं । पहले
तो बहुत बोला करते थे, इतना कि इनको चुप रहने को बार बार कहना पड़ता था ।“ पत्नी ने
बताया ।
“कुछ कड़वा -तीखा खाने में आया क्या
?”
“खाने में तो नहीं आया हाँ कड़वा -तीखा
बोलते जरुर थे ।“
“करते क्या हैं ... मतलब काम-वाम ?”
“वाम ही इनका काम है ? वाम ही ओढना
बिछाना । मतलब कवि हैं, लिखते पढ़ते और सोचते हैं । “
“यही तो गलत करते हैं । विक्रम
बेताल की कहानी सुनी है ना । विक्रम ने मुंह खोला कि बेताल उड़ा । ज्यादा सोचना एक
मानसिक रोग है । आम आदमी को कुछ नहीं करना है, बस पिये-खाये और पड़ा रहे । “
“पीते-खाते तो हैं, रातदिन सोचते भी हैं पर बोलते नहीं हैं ।“
“ देखिये मामला पेंचीदा है । कुछ
जांचें-वांचें करवाना पड़ेंगी ।“
“क्या हुआ इनको !? ... कैसी बीमारी
है डाक्साब ?”
“यही तो देखना है कि बीमारी है या बेताल
खौफ । “
“बेताल खौफ ! इसमें क्या आवाज बंद
हो जाती है !?”
“कड़वी-तीखी आवाज बंद हो जाती है ।
आदमी बोल सकता है पर बोलता नहीं, लिख सकता
है पर लिखेगा नहीं, देख सकता है पर देखेगा नहीं, सह नहीं सकता पर सहेगा, जी नहीं
सकता पर जियेगा ।“ डाक्टर ने बताया ।
“हे भगवान, अकेले इन्हीं को होना थी
ये बीमारी !!” पत्नी ने पति के सर पर हाथ फेरते हुए कहा ।
“ये अकेले नहीं हैं । आजकल इसके बहुत
पेशेंट आ रहे हैं । बेताल खौफ के चलते सबकी आवाज बंद होती जा रही है ।“
“तो इलाज इनका करना चाहिए या बेताल
का ?”
“बेताल का इलाज पांच साल में एक बार
ही हो सकता है । फ़िलहाल इन्हें चुप रहने दो ।“
“ऐसा कैसे हो सकता है ! जहाँ जरुरी
हो बोलना तो चाहिए ।“
“यही तो मजे वाली बात है । जब लगे
कि बोलना जरुरी है तब पेशेंट चुप हो जाता है । “
“लेकिन जिम्मेदार नागरिक तो बोलते रहे
हैं !”
“बोलते थे कभी । अब टीवी बोलता है,
रेडियो बोलता है, बाबा बोलते हैं, सत्ता बोलती है । जो सहमत हैं वे उछलें-कूदें
नाचें-गाएं और जो असहमत हैं चुप रहें, समझदार
बनें । देश को आगे बढ़ने दें ।“
“अब क्या होगा डाक्साब !?”
“आप भी चुप रहो, चिंता मत करो, अब
कुछ नहीं होगा । बोलते तो जरुर कुछ न कुछ हो जाता ।“
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