गुरुवार, 24 अक्तूबर 2024

एक था दायाँ एक बायाँ


 



             
             एक दायाँ था और एक बायाँ । दोनों जुड़वाँ थे यानी एक साथ पैदा हुए थे। पैदाइश का समय और मुहूर्त के हिसाब से दोनों की किस्मत एक होना चाहिए थी। लेकिन दाएं और बाएं दोनों की स्थिति बहुत अलग-अलग थी। दाएं के भाग्य में राजयोग था और बाएं के भाग्य में निरंतर संघर्ष और उपेक्षा । दायाँ लिखना पढ़ना जानता था। बाएं को हस्ताक्षर करना भी नहीं आता था। किस्मत की सारी लकीरें दाएं हाथ में थीं, बाएं हाथ में लकीरें तो थीं लेकिन कोई उन्हें देखता भी नहीं था । नाभिनाल से जुड़े होने के बावजूद दोनों अलग-अलग थे लेकिन दोनों में भाईचारा था ।  वक्त जरूरत के हिसाब से कभी-कभी दोनों साथ भी हो जाया करते थे। लेकिन जब भी खाने का मौका आता तो बाएं को प्लेट पकड़ना पड़ती और दाएं को मुँह तक पहुँचने का सम्मान मिलता । मलिक को जब स्वाद लेने के लिए उँगलियाँ चाटने की जरूरत पड़ती तो यह मौका भी दाएं को ही मिलता। किसी से परिचय करते हुए शेक हेंड करना हो, किसी को सिर पर हाथ धर के आशीर्वाद देना हो, हाथ में कलावा या रक्षाबंधन करवाना हो मौका दाएं को ही मिलता। जब पूजा होती आरती होती तो दाएं बाएं मिलकर ताली बजाते लेकिन जब प्रसाद की बारी आती तो दाएं को ही प्राथमिकता मिलती। जयमाला दोनों ने मिलकर डाली थी लेकिन चुंबन आज तक दाएं को मिलते रहे हैं। ये कुछ कारण थे कि बाएं में  हीनभावना घर किये हुए थी। वह हमेशा सोचता है कि आखिर इसका कारण क्या है। उससे लगता है कि पढ़ने लिखने का अवसर मिला होता तो आज वह दाएं से पीछे नहीं रहता। वह भी शान से लिखता, हस्ताक्षर वगैरह करता । हर खास और आम मौकों पर दाएं को पवित्र माना जाता है । धीरे धीरे बाएं को  समझ में आने लगा कि अपनी अपवित्रता क्या कारण वह खुद नहीं है। सिस्टम ऐसा है कि कुछ जिम्मेदारियाँ केवल उसके ऊपर लाद दी गई हैं और दाहिने को उससे मुक्त रखा गया है। बायाँ कई बार सोचता है की हड़ताल कर दे। पता चल जाएगी उसकी अहमियत। लेकिन सोचता ही रहता है हड़ताल नहीं कर पाता। जब भी काम पड़ता है मालिक उसे ही आगे ... नहीं पीछे कर देते हैं ।

       एक दिन दोनों लड़ पड़े । बायाँ उपेक्षित और नाराज था सो तैश में भी था । बोला - “भाई हम तुम एक साथ पैदा हुए एक साथ पले बढ़े लेकिन तुम कहाँ पहुँच गए और मैं कहाँ रह गया !! ये इंसाफ नहीं है । मुझसे अब बरदाश्त नहीं होता है ।”

              दायाँ रोज भगवान की आरती करता था, मालिक को भोजन कराने, मंजन कराने जैसे काम उसके जिम्मे हैं । जाहिर है भाई हुआ तो क्या, दोनों की हैसियत में जमीन आसमान का अंतर है । कुछ अभिमान भी था ही,  बोला – “अपनी औकात को समझो बाएं, तुम कभी दाएं नहीं बन सकते ... तुम शूद्र हो । तुम्हारे साथ कोई अन्याय नहीं हुआ है । तुम जो करते हो उसी के लिए बने हो ।“

       “ऐसा नहीं भाई , जो मुझे करना पड़ता है वो तुम भी कर सकते हो । सारा ठेका मेरा नहीं है । मालिक सिर्फ मेरे अकेले के मालिक नहीं हैं । मुझमें और तुममें सिर दाएं बाएं का अंतर है बाकी सब समान है । देख लो ।“ बाएं ने हाथ उठा कर रेखाओं सहित अपनी हथेली दिखाई ।

      जरा देर के मौन के बाद दायाँ बोल - “बाएं ... मेरे भाई ... मेरे पास भाषा है, मुझे हमेशा काफी सारा लिखना पड़ता है । बड़ा जिम्मेदारी का काम है । तुम तो हस्ताक्षर भी नहीं कर पाते हो ! ... फिर भी तुम मुझसे ज्यादा महत्वपूर्ण हो ... जहाँ तक तुम्हारी पहुँच हैं वहाँ तक किसी और की पहुँच नहीं है । किसी का बायाँ हाथ होना बड़ा ताकतवर होना माना जाता  है । राजनीति की तरफ देखो ... बायाँ हाथ बनने की होड़ मची है देश भर में । लोग लीडर को कम ढूंढते हैं उसके बाएं हाथ को ज्यादा । .... बताओ कैसा लग रहा है अब ? ठीक लगा ?”

“काहे की राजनीति !! ... एक पार्टी ने अपना चुनाव चिन्ह भी दायाँ हाथ रखा है ! मेरी तो सब जगह बेइज्जती है !”

“अरे पागल ... चुनाव चिन्ह तो एक पार्टी का है । मतदान के बाद निशान किस उँगली पर लगता है ? कौन सी उँगली दिखा कर लोग सेल्फ़ी लेते हैं ! तू लोकतंत्र की, मतदान की पहचान है । तू न हो तो सरकार ही नहीं बने देश की । कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत किस हाथ से उठाया था पता है ? बाएं हाथ से । ... अपने को छोटा मत समझ । पता है तेरे को, तू नहीं होता तो मालिक को कोई अपने पास बैठने भी नहीं देता ।... चल खुश हो जा और दे ताली ।“

      बाएं ने ताली तो दे दी .... लेकिन उसकी उलझन अभी भी दूर नहीं हुई ।

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मौका निकालो हग करो


 



                                                                                            लोकतंत्र किसी के लिए कुछ भी हो राजनीति वालों के लिए मानो लड़की का ससुराल होता है। जैसे ही कोई व्यक्ति सामने पड़े झुक जाओ, चरण छू लो या फिर लपक के उसे हग कर लो। हग दो तरफा क्रिया होती है इसलिए इज्जत भी रह जाती है। पता ही नहीं पड़ता कि कौन किसको कर रहा है। दोनों सीना भिड़ाए एक दूसरे कि पीठ सहलाते हैं। दोनों अपना बड़प्पन क्लेम कर लेते हैं। इसलिए जब भी जरूरत महसूस हो तुरंत हग करें और ससम्मान खुश रहें।

अपने बाउजी राजनीति के पुराने खिलाड़ी हैं लेकिन हक के मामले में अभी प्रोबेशन पीरियड पर हैं । उन्हें गुरु ने समझाया था की राजनीति में कोई स्थाई शत्रु या स्थाई मित्र नहीं होता है। यानी जो शत्रु है वह भी मौके पर मित्र है और जो मित्र है वह भी अंततः शत्रु ही है। गरज है तो फरज है। राजनीति में गरज बड़ी चीज होती है आदमी और सिद्धांत नहीं। कभी-कभी पिद्दा सा आदमी की बड़े काम का होता है।  ऐसे में उसके गले में हाथ डालना और खींच-खेंच कर अपने साथ खड़ा कर लेना जरूरी हो जाता है। बैठे आदमी का हग नहीं होता है, करो तो संसद हँसती है । इसलिए जैसे ही आदमी खड़ा हो लपक के उसका हग कर लो। सफल नेता बोलता कम है हग ज्यादा करता है। राजनीति में जानी दुश्मन भी जब चिपक के हक करते हैं तो मैसेज जाता है कि वे जबरदस्त मित्र हैं । मंच पर हों तो घोड़ा घास के चरण छू सकता है और शेरनी बकरे से अपनी मांग भरवा सकती है। राजनीति में और बॉलीवुड में जमने के लिए सब करना पड़ता है।

                  दुनियादारी का ज्ञान रखने वाले हमारे मित्र सरदार सच्चासिंह कहते हैं राजनीति बड़ी कुत्ती-चीज होती है। अवश्य होती होगी, अभी तक किसी शहरी-गैरशहरी कुत्ती-चीज ने आपत्ति दर्ज नहीं करवाई है। कुत्ती-चीजों का ऐसा है कि उनकी राजनीति बड़ी अलोकतांत्रिक होती है। उन्हें जब आपत्ति दर्ज कराना होती है तब अक्सर वे सहमत हो जाती हैं । इससे गलत संदेश जाता है और लोग उनके नक्शेकदम अपनी पार्टियाँ व निष्ठाएँ तक बदलने में देर नहीं करते हैं। वैश्विक राजनीति में भी इसी प्रकार की कुत्ती-अदाएं दिखाई देती है। कौन कब गुर्राने लगेगा, कब किस पर झपट पड़ेगा कुछ कहा जा सकता है ? दुनिया में शांति कायम रखना है तो बारूद-युद्ध नहीं हग-युद्ध कि जरूरत है । जिसने आगे बढ़ कर हग किया उसे फट्ट से  उतना ही हग मिला। अंतरराष्ट्रीय संबंधों में हग एक शोध का विषय हो सकता है। जो हग के कीड़े हैं वे हग की ताकत जानते हैं।

                    अपना देसी वाला हग थोड़ा अलग होता है । बाजार को हग का मुनाफा मालूम है। एक लाफ्टर शो वाला हग हग के अरबपति और नंबर वन हो गया। समय का संकेत है कि ‘गले पड़ के’ धंधा करो। कंपटीशन बहुत है। संस्थान सोच रहे हैं कि अब रिसेप्शनिस्ट के साथ-साथ हगीस्ट भी रखना पड़ेगा। रिसर्च वाले कह रहे हैं कि मेल फीमेल दोनों हगेरियंस की मांग में जबरदस्त उछाल आने वाला है । बाजार और राजनीति के उसूलों में ज्यादा अंतर नहीं है। धंधों में काम अलग-अलग हो सकता है लेकिन नियत एक ही होती है। तो चलिए, निकलिए बाहर, हग-मार्केट की ओर चलते हैं।

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