लोकतंत्र किसी के लिए कुछ भी हो राजनीति वालों के लिए मानो लड़की का ससुराल होता है। जैसे ही कोई व्यक्ति सामने पड़े झुक जाओ, चरण छू लो या फिर लपक के उसे हग कर लो। हग दो तरफा क्रिया होती है इसलिए इज्जत भी रह जाती है। पता ही नहीं पड़ता कि कौन किसको कर रहा है। दोनों सीना भिड़ाए एक दूसरे कि पीठ सहलाते हैं। दोनों अपना बड़प्पन क्लेम कर लेते हैं। इसलिए जब भी जरूरत महसूस हो तुरंत हग करें और ससम्मान खुश रहें।
अपने बाउजी
राजनीति के पुराने खिलाड़ी हैं लेकिन हक के मामले में अभी प्रोबेशन पीरियड पर हैं
। उन्हें गुरु ने समझाया था की राजनीति में कोई स्थाई शत्रु या स्थाई मित्र नहीं
होता है। यानी जो शत्रु है वह भी मौके पर मित्र है और जो मित्र है वह भी अंततः
शत्रु ही है। गरज है तो फरज है। राजनीति में गरज बड़ी चीज होती है आदमी और
सिद्धांत नहीं। कभी-कभी पिद्दा सा आदमी की बड़े काम का होता है। ऐसे में उसके गले में हाथ डालना और खींच-खेंच कर
अपने साथ खड़ा कर लेना जरूरी हो जाता है। बैठे आदमी का हग नहीं होता है, करो तो
संसद हँसती है । इसलिए जैसे ही आदमी खड़ा हो लपक के उसका हग कर लो। सफल नेता बोलता
कम है हग ज्यादा करता है। राजनीति में जानी दुश्मन भी जब चिपक के हक करते हैं तो
मैसेज जाता है कि वे जबरदस्त मित्र हैं । मंच पर हों तो घोड़ा घास के चरण छू सकता
है और शेरनी बकरे से अपनी मांग भरवा सकती है। राजनीति में और बॉलीवुड में जमने के
लिए सब करना पड़ता है।
दुनियादारी
का ज्ञान रखने वाले हमारे मित्र सरदार सच्चासिंह कहते हैं राजनीति बड़ी कुत्ती-चीज
होती है। अवश्य होती होगी, अभी तक किसी शहरी-गैरशहरी
कुत्ती-चीज ने आपत्ति दर्ज नहीं करवाई है। कुत्ती-चीजों का ऐसा है कि उनकी राजनीति
बड़ी अलोकतांत्रिक होती है। उन्हें जब आपत्ति दर्ज कराना होती है तब अक्सर वे सहमत
हो जाती हैं । इससे गलत संदेश जाता है और लोग उनके नक्शेकदम अपनी पार्टियाँ व
निष्ठाएँ तक बदलने में देर नहीं करते हैं। वैश्विक राजनीति में भी इसी प्रकार की
कुत्ती-अदाएं दिखाई देती है। कौन कब गुर्राने लगेगा, कब किस पर
झपट पड़ेगा कुछ कहा जा सकता है ? दुनिया में शांति कायम रखना है तो बारूद-युद्ध
नहीं हग-युद्ध कि जरूरत है । जिसने आगे बढ़ कर हग किया उसे फट्ट से उतना ही हग मिला। अंतरराष्ट्रीय संबंधों में हग
एक शोध का विषय हो सकता है। जो हग के कीड़े हैं वे हग की ताकत जानते हैं।
अपना
देसी वाला हग थोड़ा अलग होता है । बाजार को हग का मुनाफा मालूम है। एक लाफ्टर शो
वाला हग हग के अरबपति और नंबर वन हो गया। समय का संकेत है कि ‘गले पड़ के’ धंधा
करो। कंपटीशन बहुत है। संस्थान सोच रहे हैं कि अब रिसेप्शनिस्ट के साथ-साथ हगीस्ट
भी रखना पड़ेगा। रिसर्च वाले कह रहे हैं कि मेल फीमेल दोनों हगेरियंस की मांग में
जबरदस्त उछाल आने वाला है । बाजार और राजनीति के उसूलों में ज्यादा अंतर नहीं है।
धंधों में काम अलग-अलग हो सकता है लेकिन नियत एक ही होती है। तो चलिए, निकलिए बाहर,
हग-मार्केट की ओर चलते हैं।
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