अपने
यहां तो मरे को भी तब तक मरा नहीं मानते हैं जब तक कि डाक्टर उसे मृत घोषित न कर
दे। सोचिए अगर डाक्टर हड़ताल कर दें या ठान लें कि हम किसी को मृत घोषित नहीं
करेंगे तो लोगों का मरना कितना मुश्किल हो जाएगा। लेकिन इधर ऐसा नहीं है। अगर कोई
अपने जिन्दा रहने की घोषणा खुद नहीं करेगा तो पहली दिसंबर को अपने आप मरा मान लिया
जाएगा। पेंशन खाते में उसका अंतिम संस्कार हो जाएगा और शोकपत्र के साथ शेष रकम
नामांकित को दे कर हाथ जोड़ दिए जाएंगे। वह चीखता रहे कि मैं जिन्दा हूं, उधर से जवाब आएगा कि बाउजी ये दिसंबर है।
दिसंबर में जिन्दगी के पट बंद हो जाते हैं। जो नवंबर में मस्त थे वे दिसंबर में
अस्त माने जाएंगे।
अस्सी
वर्षीय दर्शन बाबू सरकार को भजते थकते नहीं हैं। नवंबर के इंतजार में कब और कैसे
बाकी ग्यारह महीने जी लेते हैं उन्हें खुद पता नहीं चलता है। नवंबर नहीं हो तो
उनकी सांसें ही थम जाएं। सेहत उनकी बढ़िया है, नवंबर की गुलाबी ठंड में
वे अपना शादी का सूट स्तरी करवाते हैं, जूतों पर पालश इतनी कि
लगता है जूते दिखा कर पेंशन लाने वाले हों। बगल में पहले सेंट होता था अब डीओ। कान
के उपर के बालों को छोड़ शेष रह गए कुछ बालों पर खिजाब और मूंछों पर तेल लगा कर
तैयार होते हैं। हाथ में एक बैग है जिस में जरूरी कागजों के अलावा हनुमानचालीसा भी
है। वे बाकायदा अगले ग्यारह महीनों की जिन्दगी लेने जा रहे होते हैं। जब लौटेंगे
तो उनके मुंह में पान होगा जिसके रस को वे अपने कोट के साथ शेयर कर रहे होंगे।
लेकिन कोई उन्हें कुछ नहीं कहेगा। नवंबर का महीना घर में दूध देती गाय के आने का
महीना है।
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