गुरुवार, 29 जनवरी 2015

सुनो जगदीश्वर !


आधी रात को अपने असलहे के साथ कवि ने उस वक्त मंदिर में प्रवेश किया जब वहां कोई नहीं था। हृदय की अंतिम गहराइयों से लगाकर आकाश के आखरी छोर तक फैली अपनी अनंत श्रद्धा के साथ उसने जगदीश्वर के सामने शीश नमाया। घूप-अगरबत्ती के घूंए और फूलों व जल की सीलन से भरा पूरा गर्भगृह कवि की सच्ची भक्ति भावना से गमक उठा। ऊबे-अलसाए बैठे जगदीश्वर में ऊर्जा का संचार हुआ, यंत्रवत उनका हाथ आशीर्वाद के लिए उठा लेकिन उनका ध्यान कवि के थैले पर अटक गया। आराधना का तांडव समाप्त कर कवि ने थैले का मुंह खोला और एक लंबी कविता निकाली, बोले-कृपया इरशाद कहें जगदीश्वर, कुछ कालजयी कविताएं पेश करता हूं, आशीर्वाद दीजिएगा, मेरी पहली  कविता है मंजर में खंजर
‘‘ ठहरो कवि, ये क्या हो रहा है !! जानते नहीं हो कि मंदिर में किसी भी व्यसन के साथ आना मना है ! बाहर सूचनापट्ट पर भी साफ साफ लिखा हुआ है।’’ जगदीश्वर ने आरंभ में ही आपत्ती लेना आवश्यक समझा।
‘‘ ये तो मेरी पूजा का हिस्सा है प्रभु ।’’
‘‘ किसने कहा कि पूजा कविता सुना कर की जाती है,  तुम यहां कविता नहीं सुना सकते हो। ’’ जगदीश्वर ने आज्ञा नहीं दी ।
‘‘ ऐसे कैसे नहीं सुना सकता हूं !! सारा संसार जानता है कि जिसकी कोई नहीं सुनता उसकी भगवान सुनता है। इस हिसाब से मेरा हक बनता है। ’’ कवि ने तर्क दिया।
‘‘ वो प्रार्थना के संदर्भ में कहा गया है। और यहां मैं केवल आरती सुनता हूं।’’
‘‘ आपको सुनना पड़ेगी जगदीश्वर, आपकी मर्जी के बगैर पत्ता भी खड़कता है। आपने ही मुझे कवि बनाया है, अब भुगतेगा कौन ’’
‘‘ पत्नी को सुनाओ ना, भारतीय हो , उस पर तो तुम हर तरह के अत्याचार कर सकते हो। ’’जगदीश्वर ने सुझाया।
‘‘ आपका सूचना तंत्र ठीक नहीं है जगदीश्वर । किसकी पत्नी सुनती है !! सुनती होती तो इतने कवि बनते,खरी-खोटी सुनी होगी पहले कवि ने, आह से निकला होगा खण्ड-काव्य। मुझे तो आश्चर्य है कि आप कवि क्यों नहीं हो गए अब तक !! ’’ कवि ने जगदीश्वर को लपेटा तो वे थोड़े नरम पड़े।  कविराज मैंने कानबहाद्दुर भी तो बनाए हैं। थोड़ा प्रयास करो, थोड़ा खर्च करो। एक भी मिल गया तो काम चल जाएगा। ’’
‘‘ आप एक नहीं हो क्या !, ..... अफवाह तो यह फैला रखी है कि ईश्वर एक है ! ..... अगर किसीकी सुनोगे नहीं तो हर कोई अपना अपना भगवान बना लेगा। प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी तो आपका बाजार बिगड़ेगा। आपकी लापरवाही के कारण अब लुच्चे-लफंगे तक भगवान हो रहे हैं। ’’ कवि ने जगदीश्वर को डराना शुरू किया।
‘‘ जहां तक मुझे याद आ रहा है तुम तो कामरेड हो कवि। ’’ जगदीश्वर ने घूरते हुए पूछा।
‘‘ तो इससे आपको क्या ! देर रात आता हूं, अंधेरे में आता हूं, गेट से नहीं कंपाउन्डवाल फांद कर आता हूं, अपना नगर छोड़ कर आता हूं, लेकिन आता हूं, ..... सारा रिस्क मेरा है। मैं किसी भी दक्षिणपंथी से ज्यादा विश्वास करता हूं आप पर, आपको तो प्रसन्न होना चाहिए मेरी काली-श्रद्धा से। ’’ कवि ने पूरे आत्मविश्वास  से उनकी बात खारिज कर दी।
‘‘ देखो कवि, .....  मैं थका हुआ हूं और अब सोना चाहता हूं। तुम अपने श्रोताओं को पकड़ो।’’
‘‘ कवियों के लिए श्रोता अब बचे ही कहां हैं, सब प्रधानमंत्री को ही सुनते हैं। नगर में कवियों के छत्ते के छत्ते हैं जो गुस्साए बैठे हैं। आपको एक एक कवि के पीछे कम से कम पांच पांच कानसेन भी बनाना चाहिए थे। ......  आप मेरी दो-तीन सुन लो वरना मैं अफवाह फैला दूंगा कि भगवान ने अब कथा सुनना बंद कर दिया है और  आजकल कविता ही सुन रहे हैं । ’’
‘‘ एक तो तुम आधी रात को आते हो, इस वक्त तो हरकोई थक-हार कर सो रहा होता है। ऊपर से धौंस देते हो !! ..... तुम मुझे क्षमा करो कामरेड। .... मैं तुम्हें एक ऐसा जीवित श्रोता देता हूं जिसे तुम चौबीस घंटे कविता सुना सकते हो। ये लो उसका फोन नंबर और जाओ प्लीज।  ’’जगदीश्वर ने हाथ जोड़ दिए।
मजबूर कवि ने नंबर लिया और अँधेरे में कंपाउन्डवाल की ओर चल दिया। जाते जाते बोला-‘‘आपकी कोई बात विश्वसनीय नहीं है जगदीश्वर । बाहर तो अफवाह है कि जगदीश्वर अब किसी की बलि नहीं लेते हैं !! ’’
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