मंगलवार, 5 जनवरी 2016

कदम कदम, पदम पदम !

                 
 गुरूदेव ने मेरा हाथ पकड़ा और खेंचते हुए सीढ़ियों तक ले गए, बोले- ‘‘ बस बारहवीं मंजिल तक चढ़ जाओ एक सांस में ..... फिर देखना, तुम्हारे हाथ क्या लग जाता है।’’
                  सोच में पड़ा देख वे जान गए कि ये प्राणी अल्पज्ञानी है। इधर मैं डर रहा था कि इतनी उपर चढूं और किसी ऐसे के हथ्थे चढ़ जाऊं जो उपदेश  देते हुए बारहवीं मंजिल से नीचे फैंक दे तो भविष्य  के साथ अतीत भी गया समझो। अरमानों का चौबे जब गिरता है तो कई बार दूबे भी नहीं रहता। बंधी मुट्ठी लाख की और चढ़ गए तो खाक की। संकोच में देख बात साफ करने के लिए वे फुसफुसाए, -‘‘ उपर पद्मश्री है, लपको वत्स, ..... कोई बुला कर नहीं देगा अब। इंतजार करोगे तो आरजू में ही कट जाएगी बची हुई भी । बढ़ा के हाथ जिसने उठा लिया, जाम उसका है। संत भी संकेत कर गए हैं कि ‘अप्प दीपो भव !’ वरमाला भी बहुत प्रयास के बाद गले में पड़ती है। समय की जरूरत है कि आदमी स्वयंसिद्ध होना चाहिए। गांधीजी भी कह गए हैं कि व्यक्ति को अपना काम स्वयं करना चाहिए। जो काहिल होते हैं वही दूसरों से आशा  रखते हैं। ’’
                    मैंने हाथ जोड़ दिए, -‘‘ आप की बातें सही हैं गुरूवर, लेकिन मैं पद्मश्री के योग्य नहीं हूं।’’ 
                ‘‘ इसीलिए तो !! ...... इसीलिए कह रहा हूं सीढ़ियां चढ़ो। जो योग्य नहीं होते हैं सीढ़ियां उन्ही के लिए होती हैं। योग्य तो सक्षम होते हैं, वे पीछे की पाइप लाइन पकड़ कर चढ़ जाते हैं। कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है, कीमत चुकानी पड़ती है। यही आज के समय का रिवाज है, इसलिए विलंब मत करो वत्स, पद्मश्री की पोटली लिए ‘वह’ अभी बारहवीं मंजिल पर बैठा है पता नहीं कब ताव या भाव खा जाए और बीसवी मंजिल पर जा बैठे तो !! ’’
                    ‘‘क्या यह शर्मनाक नहीं होगा गुरूदेव ?!’’
                  वे बोले - ‘‘ जिसने की शरम उसके फूटे करम। हर सुख के पहले शरम रास्ता रोकती है किन्तु वीरपुरुष रुकते हैं क्या ? शरम है क्या ! मिथ्या आवरण ही तो। विद्वान कह गए हैं कि सार सार गह ल्यो, थोथा देओ उड़ाय। समाज समृद्धि और सफलता की सराहना करता है बिना यह देखे कि इन्हें प्राप्त कैसे किया गया है। चलो, अपने पायजामें को उपर खेंच कर कमर में खोंसो और अपने पद श्री की ओर बढ़ाओ। ’’ 
                      ‘‘ बात ये है गुरूदेव कि आज के युग में कौन किसी को इज्जत देने के लिए पद्मश्री देखता है। बल्कि मुझे तो यह लगता है कि इससे तो मित्र भी अमित्र हो जाते हैं।’’ मुझे नहीं मालूम कि पद्मश्री में व्यवस्था क्या क्या ले लेती है और क्या टिका  देती है। 
                   ‘‘ हे संदेही नर, तुम्हारी बात किंचित सही भी है। दो पद्मश्रीवान एक दूसरे को सम्मान की दृष्टि  से नहीं देखते हैं क्योंकि वे ‘जानते’ हैं। नेता, अधिकारी और कुछ औद्योगिक घराने भी ‘जानते’ हैं। किन्तु तुम क्यों भूल जाते हो कि यह सवा सौ करोड़ लोगों का देश है जिनमें से नब्बे प्रतिशत लोग नहीं ‘जानते’ हैं। अज्ञानतावश  वे तुम्हारी भी  इज्जत कर सकते हैं, संभावना अनंत है। सफल व्यक्ति प्राप्ति उजागर करता है प्रक्रिया नहीं। अब चलो, बहुत हो गया। ’’
                     ‘‘गुरूवर, यदि उन्होंने सीसीटीवी के फुटेज दिखा दिए और सरे- नागपुर मुझे डस लिया तो !!’’
                      वे बोले, - ‘‘ चिंता मत कर चेले, अगर चुनाव न हों तो उनके बयानों पर कोई ध्यान नहीं देता है।’’ नेपथ्य से आवाज आने लगी, ‘ कदम कदम, पदम पदम, ......  कदम कदम, पदम पदम, चढ़ चढ़ अमर,  डर मत, हसरत कर,  पदम पर नजर रख, चल चल  अमर’।
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