हाँ हलो, हलो... का हो बिंदा, ये क्या सुन रए हम !
तुमारे शैर में चुम्मालीस टेम्पोरेचर चल-रा हे ! ओर यहाँ तुमारी भौजी कल्लाई बैठी
हे कि कब यहाँ धूप जमीन पकड़े और कब हम कुडलई, पापड़, बड़ी बना लें फटाफट. और तो और
गेंहूँ में घुन लगे पड़े हैं पर धूप दिखाने का महूरत ही नहीं बन रहा है. घर में
दस बीस किलो होएं तो छान फटक लें शैर वालों जेसा, पर इधर तो तीन कोठी भरी पड़ी हें
!! करें क्या येई समज में नहीं आ रहा. एक तो धूप नहीं चटक रई ओर ऊपर से पेड़ और
हरियाली इत्ती हे कि धरती जो हे गरम नईं हो रई. सारा दिन पेड़ों पे चिड़ियों की
चें-चूं लगी रेती हे सो अलग. शैर वाले बड़े
समझदार हें पट्ठे, पेड़ सारे काट डाले ओर ऊँची ऊँची बिलडिंग होन बना ली मजे में. चिड़िया
की चें-चूं का झंझट ही नहीं. देखो अब, विकास की सुन तो रये कि गाँव का भी होगा,
पेड़ काटने लगें तो पक्का होए. इधर तो शाम सेई ठंडी हवा चलने लगाती है, लोगों के
घरों में दहेज़ में मिले पंखे-कूलर पड़े खराब हो रए हें. तुम लोग तो सुना है कि एसी
में सोते हो. ठाठ हैं भईया तुमारे, चुम्मालीस
टेम्पोरेचर के मजे तो बस शैर वालों के होते हें. यहाँ तो दही, छाछ, सत्तू
है पर सब बेकार, तपन लगे तो पियें खाएं. भरी दुपहरी में जो अमराई में लेट जाओ तो
आराम इतना कि यम के दूत आवें तो यहीं सो जाएँ ससुरे. तुमारी भौजी पूँछ रईं थीं कि
पूछ लो बिंदा से कि ना हो तो एक दो बोरा आलू भेज दें, खूब निकले हैं अबकी. उधर
चुम्मालीस है तो चिप्स बना-सुखा के भेज
देंगे और थोड़ा बहुत खुद भी रख लेंगे. बचपन में तुम्हें आलू की चिप्स कितनी पसंद थी
! हप्ता भर में तीन चार किलो तो अकेले खा जाते थे आराम से. पर छोडो तुम कहाँ
बनवाओगे. जरा सी तो गैलरी है तुमारे फ्लेट में. एक बार सोये थे हम वहां, पांव
लम्बे करने पर सिर टकराता रहा रात भर.
इस साल पंचायत वाले कोसिस कर रए हें कि सीमेंट वाली सड़क
बन जाये. अब देखो क्या होता है. सुने हैं कि सीमेंट वाली सड़क बनाने में पैसा खूब
खाने को मिलता है. इसीलिए उम्मीद हो गयी है, दबंग लोग लगे पड़े हैं. सुना है कि
सीमेंट वाली सड़क अच्छी तपती है, लोग आमलेट तक बना लेते हैं उसपे. अभी तो यहाँ
कच्ची सड़कें हैं, दिन ढलते ही ठंडी हो जाती हैं. तुम्हे तो पता है कि छोरा छोरी
नंगे पांव यहाँ वहां दौड़ते फिरते हैं. शैर के लोग पढ़े लिखे हैं, वहां फुटपाथ भी खुल्ला नहीं है. घर के बहार कदम रखो तो सीधे
सीमेंट की सड़क. तभी न एक से बढ़ के एक जूता चप्पल पहनने को मिलता है लोगों को. यहाँ
इतना सुख कहाँ, भरी दुपरिया में निकल जाओ तो ईनाम है जो पांव जल जाये. धिक्कार है,
अबकी सोच समझ कर वोट देने का फैसला किया है हमने. एक प्रदुषण युक्त, हरियाली मुक्त
विकास इधर भी होना सबको.
तुम लोग वहाँ पर छोटे छोटे प्लाट पर मकान बनाये हो और हर
घर में एक ठो बोरिंग भी छेदे हो. लेकिन यहाँ तो घिसी पीटी जोइंट फेमिली का चलन हे
सब लोग एक कुंए से काम चला लेते हैं. सोच रहे हैं कि शिक्षित समझदार जैसा व्यवहार
करें और सब भाई अलग हो जाएँ. अलग अलग बोरिंग करवा लें और पानी खीचें मजे में. ऊपर से
गोरमेंट नल में पानी भी देती हे ! आजकल शैर में जितने इन्सान रहते हैं उससे ज्यादा
मोटर कारें रहती हैं. सुना हे कि नल के पीने वाले पानी से कारें धोते हैं, कुत्ता नहलाते
हैं और फुलवारी सींचते हैं !! शैर तो समझो स्वरग है, बिंदा हम तो केरए भईया गरमी गरमी
अपनी भैंसे ले के आ जाएँ तुमरे शैर, नहा धो लेंगी बेचारी, आखिर दूध तो शैर वाले ही
पीते हैं उनका.
और हाँ, तुमे तो
मालूम हे अम्मा को गठिया हे. बैध जी बोले हैं की गरमी पड़ेगी तो थोड़ा सुधर जायेगा.
पर गरमी इधर पड़ ही नहीं रही ससुरी. हम कहे कि अम्मा शैर चली जाओ, वहाँ चुम्मालीस
हे पर सुनती ही नहीं. सुना हे कि दिल्ली में बहुत गर्मी हे. होनई चईये, चुम्मालीस नहीं
तो काहे की राजधानी. टीवी में देखे हैं कि दिल्ली वाले पट्ठे बहुत तेज चलते हें,
लगता नहीं कि किसी को गठिया होगा. अम्मा को तुमी समझाओ जरा, न हो तो आ के ले जाओ. ...
और सुनाओ बहू बच्चे ठीक हैं ? ..... क्या !! ..... रांग नंबर हैं !! रांग नंबर चल रहा था !! .... ठीक है .... चलो रखते
हें.
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